डॉ उदय नारायण तिवारी के अध्यक्षता में विश्वविद्यालय प्राचीन भारतीय इतिहास पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग में एक दिवसीय पर्यटन तकनीक विषयक कार्यशाला का आयोजन

डॉ उदय नारायण तिवारी के अध्यक्षता में विश्वविद्यालय प्राचीन भारतीय इतिहास पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग में एक दिवसीय पर्यटन तकनीक विषयक कार्यशाला का आयोजन


जे टी न्यूज़

दरभंगा : आज डॉ उदय नारायण तिवारी के अध्यक्षता में विश्वविद्यालय प्राचीन भारतीय इतिहास पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा में एक दिवसीय पर्यटन तकनीक विषयक कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला का प्रारंभ सरस्वती वंदना से हुआ, जिसमें विभागाध्यक्ष डॉ तिवारी के साथ स्वेता भारती और रूपा कुमारी किया और पंडित गोविंद नारायण झा ने मंगलाचरण वाचन से किया। विषय प्रवेश करते हुए पर्यटन निदेशक डॉ अयोध्या नाथ झा ने कहा कि “शोध कार्य हेतु किए जाने वाले पर्यटन के पूर्व एक सुनियोजित योजना तैयार कर लेनी चाहिए और पर्यटन के समय सामने मौजूद दृश्यों का बारिक अध्ययन हेतु एक अच्छा कैमरा के साथ फोटोग्राफी की उन्नत शैली भी होनी चाहिए। साथ ही अवशेषों को पुरातत्व की दृष्टि से देखनी चाहिए। अध्ययन क्षेत्र वह कारखाना है, जहां कल के भारत का निर्माण किया जाता है।”

कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए विभागीय शोधार्थी गिरिन्द्र मोहन ठाकुर ने कोल्हुआ के खंडहरों का विस्तृत ऐतिहासिक विश्लेषण करते हुए कहा कि “अशोक स्तंभ विभिन्न कालों में भिन्न-भिन्न महत्व के साथ हमारे सामने प्रस्तुत हुआ है तथा यह स्तंभ हमारे तर्क के अनुसार एकश्म प्रस्तर से निर्मित नहीं है और अशोक से पूर्व काल का है।” शोधार्थी अंजू कुमारी ने वैशाली संग्रहालय के पुरावशेषों का विस्तृत चर्चा करते हुए मृण मूर्तियों के अलग-अलग काल खंडों में हुए निर्माण शैली को अपने शोध परक विचारों से स्पष्ट किया।

” शोधार्थी गौतम प्रकाश ने वैशाली संग्रहालय में संग्रहित मृदभांडावशेषों के हर प्रकारों का व्याख्या प्रस्तुत किया तथा शौचालय पैनल के आधार पर तत्कालीन स्वच्छता व्यवस्था को प्रदर्शित किया। शोधार्थी पुष्पांजलि कुमारी वैशाली के इस पर्यटन का मुख्य हिस्सा रही और उन्होंने पुरास्थलों और पुरावशेषों का रेखांकन तैयार करते हुए मंच संचालन का कार्य किया। कार्यशाला में प्रस्तुत आलेखों का मूल्यांकन करते हुए डा झा ने कहा कि “गिरिंद्र मोहन के मत का इतिहास के दृष्टिकोण से अध्यन करना चाहिए। अंजू कुमारी ने मृणमूर्तियों का जो विवरण प्रस्तुत किया उस परिपेक्ष में अध्यन होना चाहिए। गौतम प्रकाश ने जो प्राचीन मृण सौचालय पैन का विवरण प्रस्तुत किया उस आधार पर कह सकते हैं कि इस क्षेत्र में प्राचीन काल से ही शौचालय निर्माण होता रहा। इस तरह यह कार्यशाला एक सफल कार्यशाला के रूप में सिद्ध हुआ और प्रतिभागियों को बहुत कुछ सीखने का अवसर मिला।

अध्यक्षीय संबोधन करते हुए विभागाध्यक्ष डॉ तिवारी ने कहा कि “डा अयोध्या नाथ झा ने जो परंपरा विभाग में डाली है उसे हम आगे बढ़ाने का कार्य करेंगे। सभी छात्रों की समस्याओं का समाधान करते हुए इसको परंपरागत रुप प्रदान करूंगा, आज का यह कार्यशाला विभाग के लिए मील का पत्थर है तथा इस तरह के कार्यशालाओं का आयोजन विभाग हमेशा करता रहेगा यह मैं आश्वस्त करता हूं।” साज-सज्जा का कार्य विभागीय छात्र कृष्ण कुमार एवं विकास कुमार ने किया।

धन्यवाद ज्ञापन अतिथि शिक्षिका डॉ प्रतिभा किरण ने किया और इस कार्यशाला में शोधार्थी मुरारी कुमार झा, सौरभ कुमार, चंद्र प्रकाश, प्रगति कुमारी, पूर्णिमा कुमारी के साथ प्रभाकर कुमार, गोपाल जी, कमरुल, गोविंद, रश्मि, सुष्मिता, श्वेता गुप्ता आदि सैकड़ों अन्य उपस्थित हुए।

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