198वां जन्मदिवस पर याद किए गए महर्षि दयानंद सरस्वती

198वां जन्मदिवस पर याद किए गए महर्षि दयानंद सरस्वती

उन्होंने नारी जाति के उद्धार, विधवाओं की दुर्दशा को सुधारने और बाल विवाह जैसी कुरीतियों को दूर करने पर बल दिया :अभय शास्त्री


जेटी न्यूज

डी एन कुशवाहा

रामगढ़वा पूर्वी चंपारण – पूरे विश्व में आर्य समाज के संस्थापक युग प्रवर्तक महर्षि दयानंद सरस्वती जी का 26 फरवरी को 198वां जन्मदिवस मनाया जा रहा है। इस संबंध में प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए पूर्वी चंपारण अंतर्गत रामगढ़वा के भटवलिया गांव निवासी व हरियाणा के रोहतक शहर स्थित डीएवी स्कूल के शिक्षक आचार्य अभय कुमार शास्त्री ने कहा कि महर्षि दयानंद सरस्वती के बचपन का नाम ‘मूल शंकर’ था, का 198वां जन्मदिवस तथा 1 मार्च को महाशिवरात्रि का पावन पर्व है, जिसे आर्य समाज ‘ऋषि बोधोत्सव’ के रूप में मनाता है। उन्होंने कहा कि महर्षि दयानंद जी की आयु जब 14 वर्ष की थी तो उनके पिता कर्षन जी तिवारी ने उन्हें शिवरात्रि का व्रत रखने के लिए कहा। उन्होंने अपने पिता के आदेश पर शिवरात्रि का व्रत रखा और रात को जागरण के लिए उनके साथ शिव मंदिर में गए। जब सभी सो गए तो बालक मूलशंकर शिव दर्शन की अभिलाषा से जागता रहा।

कुछ देर के बाद उन्होंने देखा कि चूहे अपने बिल से निकल कर शिवलिंग पर उछल-कूद कर रहे हैं और चढ़ाए हुए प्रसाद को खा रहे हैं। उसी समय उन्होंने अपने पिता को जगा कर सच्चे शिव के बारे में पूछा परंतु उनके पिता उन्हें संतुष्ट नहीं कर पाए और बालक मूलशंकर ने उसी समय सच्चे शिव की प्राप्ति का संकल्प ले लिया। इसी कारण शिवरात्रि का पर्व सम्पूर्ण आर्य जगत के लिए कल्याण रात्रि बन गई जिसने केवल भारत को ही नहीं, सम्पूर्ण विश्व को एक नई राह दिखाई।


इस रात्रि को बालक मूलशंकर के मन में ज्ञान का जो अंकुर प्रस्फुटित हुआ था, वह महर्षि दयानंद के रूप में विशाल वटवृक्ष बनकर मानवता का उद्धारक बन गया। महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने आर्य समाज की स्थापना करके समस्त मानव जाति का जो उपकार किया है, महर्षि के उस ऋण को नहीं चुकाया जा सकता। जितना सन्मार्ग महर्षि दयानंद ने दिखाया है, जितनी कुरीतियों के विरुद्ध महर्षि दयानंद ने कार्य किया, उसके लिए उन्हें सदा याद रखा जाएगा।
महर्षि दयानंद ने धार्मिक क्षेत्र में पाखंड, मूर्ति पूजा, अंधविश्वास पर जमकर प्रहार किया। राजनीति के क्षेत्र में उन्होंने स्वराज प्राप्ति पर जोर दिया।

सामाजिक क्षेत्र में उन्होंने नारी जाति के उद्धार, विधवाओं की दुर्दशा को सुधारने और बाल विवाह जैसी कुरीतियों को दूर करने पर बल दिया।
आर्य समाज के दस नियमों में महर्षि दयानंद अपने देश के हित को ही नहीं, सम्पूर्ण विश्व के हितों को समाहित किए हुए हैं, जिसका उदाहरण हमें आर्य समाज के छठे नियम में देखने को मिलता है- ‘संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है, अर्थात शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना।’

श्री शास्त्री ने कहा कि आर्य समाज और महर्षि दयानंद का दृष्टिकोण सार्वभौम है। आर्य समाज के नियमों को बनाते समय महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने आर्य समाज का जो लक्ष्य निर्धारित किया है, उसे पूर्ण करने के लिए एकजुट होने की आवश्यकता है। उन्होंने मात्र अपने राष्ट्र और आर्य समाज का ही नहीं अपितु संसार का उपकार करना मुख्य उद्देश्य बताया ताकि हम अपने उद्देश्य से भटक न जाएं।

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