विद्वान के परिसर में मानवता, संवेदनशीलता का अभाव क्या तानाशाही रवैया को दर्शाता है

विद्वान के परिसर में मानवता, संवेदनशीलता का अभाव क्या तानाशाही रवैया को दर्शाता है

 

जे टी न्यूज़

समस्तीपुर: संत विनोबा भावे कहा करते थे व्यस्टि से समिस्टी की ओर समिस्टी पुर हमलोग बोलते हैँ, समस्तीपुर. ये स्थान बड़ा ही उन्नत रहा है. प्राचीन काल हो, मध्य काल हो या आधुनिक इतिहास का काल हो. इस जगह के आस – पास के लोग महत्वपूर्ण पन्नों में दर्ज रहे हैं. पूसा भी उसी की एक कड़ी है. कृषि के अनुसन्धान की दृष्टि से ये इतना महत्वपूर्ण रहा है कि इसी पूसा के नाम से दिल्ली में पूसा बना हुआ है. हम इसे महत्वपूर्ण समझ सकें या नहीं, ये हमारी समझ की बात है. इसी पूसा के डॉ. राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय का एक छात्र सड़क पर दुर्घटना का शिकार हुआ. नाम अखिल था, घर.. राजस्थान था.
दुर्घटना की सूचना मिलते ही उनके साथियों ने विश्वविद्यालय डिस्पेंसरी /अस्पताल लाये, जहाँ सही से फस्ट एड भी नहीं किया जा सका. फिर उन्हें मुजफ्फर पुर ले जाया गया. जहाँ उस छात्र की मृत्यु हो गई. यहाँ तक विश्वविद्यालय प्रशासन का कोई सहयोग नहीं हो सका. कोई भी स्टाफ सिवा एम्बुलेंस ड्राइवर के उस बालक के साथ नहीं थे.

पहले ये बिहार सरकार का था, अब भारत सरकार का है . उस परिसर में एक से एक विद्वान रहते हैं. फिर भी मानवता, संवेदनशीलता का अभाव रहा. इस अभाव ने उपस्थित छात्रों को असहज और उत्तेजित करने में आग में घी का काम किया. छात्र अखिल का डेड बॉडी मुजफ्फरपुर में ही था और तोड़ -फोड़,आग -जनी हो गई. देरी से सूचना देने की वजह से आग लगाने की घटना रोकी नहीं जा सकी. विश्वविद्यालय प्रशाशन ने घटना के बाद हॉस्टल खाली कराने का निर्णय लिया, निर्णय उचित हो, फिर भी सही इंतजाम करके तब कहीं भी भेजना चाहिये. छात्राओं के लिये भी कोई व्यवस्था नहीं किया जाना और अचानक हॉस्टल खाली करा देना वाजीव कैसे कहा जा सकता है?

 

भारत के विभिन्न प्रदेशों के बच्चे या बच्चियां बिना रीजर्वेशन के कैसे जायेंगे. उनके पास रूपये भी होंगे या नहीं, ये सोचना किनकी जेम्मवारी थी.
छात्र दुर्घनाग्रस्त हुए तो ईलाज कराने में विश्व विद्यालय की क्या भूमिका रही. विश्वविद्यालय होस्पीटल में ईलाज की क्या व्यवस्था थी ,
इन सभी विन्दुओं पर जिला प्रशासन को जाँच करनी चाहिये.
देश के विभिन्न राज्यों के विद्यार्थी यहाँ पढ़ते हैं. उनके माता -पिता पर इसका असर क्या होगा. लोगों की धारणा बिहार के बारे में कैसे बदलेगी?
यही समस्तीपुर है बूट पोलिस के 5पैसे के विवाद में गोली चली, रुपौंली के महेश चौधरी की मृत्यु हुई. पूरे राज्य में आंदोलन हो गये. सरकार हिल गई.
दुर्घटनाग्रस्त विद्यार्थी के ईलाज में यदि अग्रणी भूमिका में विश्वविद्यालय के लोग रहते तो छात्र उग्र नहीं होते. किसी भी रोड पर हुए दुर्घटना में घायल व्यक्ति को कोई दूसरा आदमी ही हॉस्पिटल पहुँचाता है. गाँव के लोग इतने संवेदनशील और यूनिवर्सिटी के लोग………?

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