पति के दीर्घायु होने की कामना को लेकर महिलाओं ने निर्जला रहकर की तीज व्रत

जे टी न्यूज़ : संगमविहार, दिल्ली: हरतालिका तीज व्रत भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस व्रत को निर्जला रह कर किया जाता है। वही आचार्य पंडित अभिषेक पांडे ने बताया कि इस व्रत में महिलाएं शिव पार्वती और गणेश की पूजा करती हैं तथा अपने सुहाग की रक्षा की कामना करती है।

इस व्रत को कुंवारी लड़कियां एवं महिलाएं करती है। वही इस व्रत में पूजा अर्चना के बाद में हरतालिका तीज व्रत का कथा का सुनने का विशेष महत्व है। इस पूजा में शिव पार्वती गणेश का पार्थिव बनाकर पूजा अर्चना किया जाता है। इस व्रत में मिट्टी बेलपत्र शमी पत्र धतूरे अकवन वस्त्र के साथ-साथ मेहंदी चूड़ी बिछिया काजल बिंदी कुमकुम कपूर शक्कर ऋतु फल वस्त्र से पूजा कर कामना की । 

वही आरती कुमारी, सुलेखा कुमारी ने पूजा अर्चना कर दीर्घायु होने की कामना की। पूजा में नीतू त्यागी, खुशी  राणा, किरण कुमारी, सपना झा, बबिता झा ने पूजा के अवसर पर गायन किया।

हर‌ियाली तीज का उत्सव श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है।[1] यह उत्सव महिलाओं का उत्सव है। सावन में जब सम्पूर्ण प्रकृति हरी ओढ़नी से आच्छादित होती है उस अवसर पर महिलाओं के मन मयूर नृत्य करने लगते हैं। वृक्ष की शाखाओं में झूले पड़ जाते हैं। सुहागन स्त्रियों के लिए यह व्रत बहुत महत्व रखता है।

आस्था, उमंग, सौंदर्य और प्रेम का यह उत्सव शिव-पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। चारों ओर हरियाली होने के कारण इसे हरियाली तीज कहते हैं। इस अवसर पर महिलाएं झूला झूलती हैं, लोकगीत गाती हैं और आनन्द मनाती हैं। इस उत्सव में कुमारी कन्याओं से लेकर विवाहित युवा और वृद्ध महिलाएं सम्मिलित होती हैं।

नव विवाहित युवतियां प्रथम सावन में मायके आकर इस हरियाली तीज में सम्मिलित होने की परम्परा है। हरियाली तीज के दिन सुहागन हरे रंग का श्रृंगार करती हैं। मेंहदी सुहाग का प्रतीक चिन्ह माना जाता है। इसलिए महिलाएं सुहाग पर्व में मेंहदी अवश्य लगाती है। इसकी शीतल प्रकृति प्रेम और उमंग को संतुलन प्रदान करने का भी काम करती है।

ऐसा माना जाता है कि सावन में काम की भावना बढ़ जाती है। मेंहदी इस भावना को नियंत्रित करता है। हरियाली तीज का नियम है कि क्रोध को मन में नहीं आने दें। मेंहदी का औषधीय गुण इसमें महिलाओं की सहायता करता है। इस व्रत में सास और बड़े नई दुल्हन को वस्‍त्र, श्रृंगार सामग्री भेंट करती हैं। इनका उद्देश्य होता है दुल्हन का श्रृंगार और सुहाग सदा बना रहे और वंश की वृद्ध की कामना करती है।

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