*बापू को बाय, भागवत को हाय!*

*बापू को बाय, भागवत को हाय!*
*(व्यंग्य: राजेंद्र शर्मा)*

बापू ही थे। इतनी दुबली काया, फिर भी इतनी तेज चाल। उस पर आज तो जैसे भागे ही जाते थे। पीछे भागते-भागते पूछा, इतनी जल्दी मेंं कहां भागे जाते हैं। न रुके, न चाल धीमी की, उस पर आवाज भी धीमी कर के फुसफुसाते हुए निकल गए–जान बची और लाखों पाए, राजपथ छोड़, राजघाट आए! जिस तरफ से बापू भागते से चले आ रहे थे, उस तरफ पीछे जाकर देखा, तो पता चला कि संसद भवन के ऐन सामने की अपनी परमानेंट बैठकी से बापू गायब हैं। वह भी बर्थ डे पर। खबरिया चैनलों ने सुना तो छुट्टी की चादर ओढ़ के सो गए, फिर भी सोशल मीडिया ने खबर फैला दी। आइटी सैल वाले बदहवासी में ट्वीट पर ट्वीट करने लगे–यह “गोडसे जिंदाबाद” की जबर्दस्त ट्रेंडिंग से बौखलाए, सेकुलरवालों का षडयंत्र है। हम भी जान लड़ा देेंगे, पर “गोडसे जिंदाबाद” को ट्रेंडिंग से बाहर नहीं जाने देंगे।

गोदी युग के आठ साल बाद भी बचे रह गए, छोटे-बड़े दर्जनों खबरचियों ने राजपथ पहुंचकर बापू का घेराव सा कर लिया। पर बापू भी जैसे आज सब को खुश करने के मूड में थे, एक-एक सवाल का बड़े धीरज से और खुश होकर जवाब दे रहे थे। खबरचियों ने इतना खुश होने का राज पूछा तो, बापू ने वही दोहराया–जान बची और लाखों पाए! पर खबरची इस पर संतुष्ट कहां होने वाले थे। बापू भी दिल की बात सुनाने को तैयार बैठे थे। बताने लगे कि संसद के बाहर बैठे-बैठे सब कुछ होते सिर्फ देखते रहना, बड़ी तपस्या का काम है। उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उनकी गति, उनके ही तीन बंदरों जैसी हो जाएगी– न कुछ देख सकें, न कुछ सुन सकें और न कुछ बोल सकें। बस सब को धीरज बंधाते रहें ; भला कब तक। सो मैं तो राजपथ से जान छुड़ाकर भाग आया। खबरचियों ने फौरन सुधारा, अब राजपथ कहां रहा, वह तो कर्तव्य पथ हो गया है। बापू ने शरारती मुस्कान के साथ कहा, मेरा भी नाम बदल देते तो? मैं तो उससे पहले ही भाग आया।

खबरची आसानी से कहां टलने वाले थे। खोद-खोद कर पूछने लगे, मोदी जी आप को छुट्टी देने के लिए क्या आसानी से राजी हो गए। आप कहीं बिना बताए तो नहीं भाग आए? बिना बताए भाग आए हैं, तब तो मोदी जी के लिए बड़ा संकट पैदा हो जाएगा। आप नहीं होंगे, तो कर्तव्य पथ पर भारी शून्य पैदा हो जाएगा। विपक्षियों को संसद के अंदर तो कोई वैसे भी अब बोलने नहीं देता है, संसद के बाहर विरोध प्रदर्शन करने के लिए किस के सामने जाएंगे, वगैरह। बापू बोले, मेरे सामने विरोध प्रदर्शन करने का भी कोई फायदा था क्या, जब संसद की ऊंची चाहरदीवारी के बाहर कोई देख ही नहीं सकता। रही शून्य की बात तो, मैं इसलिए भी हटा हूं कि मेरी जगह भरने का अच्छा-खासा इंतजाम हो चुका है। राष्ट्रपिता के लिए भागवत जी का नाम भी चल चुका है। गोडसे जिंदाबाद ट्रेंड कर रहा है। और क्या चाहिए। मैं कम से कम इतना डैमोक्रेट जरूर हूं कि जनता और सरकार की भावनाएं समझ कर, सही टैम पर रिटायर हो जाऊं। बस अब सचमुच रिटायर्ड जीवन जीऊंगा, जमुना के किनारे चैन से चादर तान के सोऊंगा।

 

खबरचियों ने रुंआसे से सुर में कहा — पर इस तरह देश का क्या होगा? देश कहां जाएगा? बापू बोले — अमृतकाल में, और कहां! खबरची खिसिया के बोले, मजाक मत कीजिए, आपने सब देखा ही है। बापू अब सीरियस हो गए — मेरी मूर्तियों के ही भरोसे बैठे रहे तो वही होगा जो हो रहा है। उठते-उठते बोले — तुम भी जोर लगा के बोलो : बापू को बाय, भागवत को हाय!

*(लेखक प्रतिष्ठित पत्रकार और “लोकलहर” के संपादक हैं।)*

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