क्या चिराग अपनों के साज़िश के हुए शिकार नहीं बचा पाए बंगला अपनों ने किया बेघर

जे टी न्यूज़
दिल्ली डेस्क : 12 जनपथ नई दिल्ली का पता लोजपा संस्थापक रामविलास पासवान के नाम से 1989 से जाना जाता रहा है। लेकिन अब यह किसी और के नाम से जाना जाएगा।

आखिर क्यू तो बताता हु आपको 12 जनपथ तब चिराग से ले लिया गया जब पशुपति पारस ने चिराग को मंत्री नहीं बनने दिया और उसके जगह खुद बन गए। पारस के मंत्री बनने के बाद से ही यह माना जा रहा था कि अब चिराग और उनकी माँ को यह कोठी ख़ाली करनी होगी।

पारस मंत्री बनने के बाद चाहते तो कोठी को अपने नाम करा कर राम विलास पासवान के घर को बचा सकते थे। लेकिन ऐसा नहीं कर पारस ने साफ़ कर दिया कि पारस को राम विलास पासवान की धरोहर को बचाने में कोई दिलचस्पी नहीं ।

रामविलास के नाम पर केंद्र में मंत्री बने पारस और साथ में आए सांसद भी आज रामविलास पासवान की कोठी को ख़ाली करने में सफल हो गए। इन सब पर चिराग के साथीयों का कहना है की चिराग ने यह कोठी खुद छोड़ दी ताकि नियम का उल्लंघन ना हो। केंद्र में मात्र मंत्री बनने के लिए पारस और उनके सांसद एक हो गए और आज चिराग को बंगले से निकालने के साज़िश में कामयाब भी हो गए।

जिस केंद्र सरकार ने राम विलास पासवान के घर को बेरहमी से ख़ाली कराया उस सरकार में पारस मंत्री है पर उन्होंने इसका विरोध भी नहीं किया। कभी १२ जनपथ को राम विलास स्मारक घोषित करने की माँग करने वाले पारस आज अपनी कुर्सी के लालच में ख़ामोश है। जिस सरकार में वह मंत्री है उस के इस फ़ैसले पर उनका चुप रहना ना सिर्फ़ राम विलास पासवान बल्कि दलित समाज को धोखा देने जैसा है।

अपने आपको स्वतः पासवान का उतराधकारी घोषित करने वाले पारस आज अपने भगवान का मंदिर टूटता देख ख़ामोश है यह दर्शाता है की राम विलास पासवान से उनका सिर्फ़ स्वार्थ का रिश्ता था। पासवान समाज पशुपति पारस से पहले ही नाराज़ था पर अब खुल कर उनके ख़िलाफ़ आक्रोश जता रहा है। सोशल मीडिया पर उनका खूब विरोध हो रहा है।

राम विलास पासवान के समर्थक चिराग के साथ खड़े है। चिराग के एक युवा साथी ने कहा जल्द नया ठिकाना होगा और जल्द नया निशाना होगा। शायद नया निशाने वाली बात भाजपा को रास नहीं आए।

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