प्रत्येक मां ही है जगज्जननी, प्रत्येक नारी ही है अपनी मां का विभिन्न रूप: श्री श्री ठाकुर
प्रत्येक मां ही है जगज्जननी, प्रत्येक नारी ही है अपनी मां का विभिन्न रूप: श्री श्री ठाकुर
जेटी न्यूज
डी एन कुशवाहा
रामगढ़वा पूर्वी चंपारण- कल्कि अवतार, अवतारी पुरुष व युग पुरुषोत्तम परमप्रेममय श्री श्री ठाकुर अनुकूल चंद्र जी ने मात्र 23 वर्ष की अवस्था में स्व हस्तलिखित अपनी पवित्र पुस्तक सत्यानुसारण के माध्यम से प्रत्येक मानव को यह आगाह करते हुए कहा है कि जगत में मनुष्य जो कुछ भी दुःख पाता है उनमें अधिकांश कामिनी- कांच्चन की आसक्ति से आते हैं। इन दोनों से जितनी दूर हट कर रहा जाए उतना ही मंगल। उन्होंने कहा है कि भगवान श्री श्री रामकृष्ण देव ने सभी को विशेष रूप से कहा है कि कामिनी कांच्चन से दूर-दूर बहुत दूर रहो। कामिनी से काम हटा देने से ही ये मां हो पड़ती हैं। विष अमृत हो जाता है।
और मां, मां ही है, कामिनी नहीं। मां शब्द के अंत में “गी” जोड़कर सोचने से ही सर्वनाश। सावधान! मां को “मागी” सोच न मरो! उन्होंने कहा है कि प्रत्येक कि मां ही हैं जगजननी! प्रत्येक नारी ही है अपनी मां का विभिन्न रूप, इस प्रकार सोचना चाहिए। श्री श्री ठाकुर ने कहा है कि मातृभाव ह्रदय में प्रतिष्ठित हुए बिना स्त्रियों को स्पर्श नहीं करना चाहिए।उनसे जितनी दूर रहा जाए उतना ही अच्छा; यहां तक कि मुख दर्शन तक नहीं करना और भी अच्छा है।
श्री श्री ठाकुर जी ने कहा है मेरे काम- क्रोध आदि नहीं गए ,नहीं गए- कहकर चिल्लाने से वे कभी नहीं जाते। ऐसा कर्म, ऐसी चिंता का अभ्यास कर लेना चाहिए जिसमें काम- क्रोध आदि की गंध भी नहीं रहे- मन जिससे उन सबको भूल जाए। मन में काम- क्रोध आदि का भाव नहीं आने से वह कैसे प्रकाश पाएंगे? उपाय है -उच्चतर उदार भाव में निमज्जित रहना। सृष्टितत्व, गणित विद्या, रसायन शास्त्र इत्यादि की आलोचना से काम- रिपु का दमन होता है। कामिनी- कांच्चन संबंधित किसी प्रकार की आलोचना ही उनमें आसक्ति ला दे सकती है। उन सभी आलोचनाओं से जितनी दूर रहा जाए उतना ही अच्छा है।