मारवाड़ी कॉलेज के संस्कृत विभाग द्वारा “भारत में बौद्ध धर्म की जीवन्त भोटी परम्परा” विषयक दो दिवसीय वेबिनार का हुआ उद्घाटन

मारवाड़ी कॉलेज के संस्कृत विभाग द्वारा “भारत में बौद्ध धर्म की जीवन्त भोटी परम्परा” विषयक दो दिवसीय वेबिनार का हुआ उद्घाटन
जे टी न्यूज़

दरभंगा: मारवाड़ी महाविद्यालय, दरभंगा के संस्कृत विभाग द्वारा “भारत में बौद्ध धर्म की जीवन्त भोटी परम्परा” विषय पर गूगल मीट द्वारा ऑनलाइन दो दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार का उद्घाटन करते हुए मारवाड़ी महाविद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ दिलीप कुमार ने कहा कि बिहार की धरती से संभोट द्वारा सीखी गई लिपिविद्या और संस्कृत भाषा से भोट लिपि और भोटी भाषा का आरंभ हुआ। प्रधानाचार्य ने इस आयोजन हेतु संस्कृत विभागाध्यक्ष डा विकास कुमार सिंह को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं दी।
वेबिनार के संयोजक व मारवाड़ी महाविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ विकास सिंह ने बौद्ध धर्म की पालि, संस्कृत, अपभ्रंश एवं भोटी परंपराओं में संकलित नालंदा परंपरा की बौद्ध वैचारिकी के ग्रंथों के संग्रह होने के कारण समकालीन दौर में भोटी की प्रासंगिकता पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि लोक आस्था से लेकर धर्म, संस्कृति और परिवेश की जीवित भाषा है भोटी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 के तहत भारत सरकार ने मातृ भाषाओं में शिक्षा- दीक्षा की व्यवस्था की है, जिसके प्रतिफलनस्वरूप भोटी का विकास अखिल भारतीय हिमालयी क्षेत्रों में होगा और भविष्य में आठवीं अनुसूची में सम्मिलित होने के लिए यह आगे बढ़ेगी।


उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के मानविकी विद्यापीठ की निदेशिका प्रो कौशल पंवार ने कहा कि भोटी भाषा ने भोटी संस्कृति एवं परंपरा को जीवित रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भोटी भाषा सीखने के साथ- साथ उसमें निहित कला एवं संस्कृति को सीखने की ओर शोधार्थियों-विद्यार्थियों को आगे आना चाहिए।
वेबिनार के मुख्य अतिथि अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ, दिल्ली के ज्वॉइंट सेक्रेटरी एवं संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के परिषद् सदस्य परम पूज्य लामा शरत्से खेंसूर रिनपोछे जंगचुप छोडेन थे। उन्होंने कहा कि आधुनिक भारत में बौद्ध धर्म की पालि एवं भोटी परंपराएं जीवंत हैं। भोटी का विकास विशेष रूप से हिमालयी क्षेत्रों में देखा जाता है। कला, धर्म, दर्शन, संस्कृति आदि में भोटी का महत्त्वपूर्ण योगदान है। भोटी भाषा के साथ- साथ भोटी लिपि पर भी ध्यान देना अत्यावश्यक है।
लद्दाख स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ बुद्धिस्ट स्टडीज के भोटी साहित्य के डॉ त्सेवांग यांगजोर ने उद्घाटन सत्र में बीज वक्तव्य देते हुए कहा कि भोटी भारतीय भाषा है। भोटी भाषा का व्याकरण और साहित्य विस्तृत एवं विशाल है। सातवीं सदी में तिब्बत के 32वें सम्राट सौंगत्सेन गैंपो ने भोट लिपि और भोटी भाषा को स्थापित करवाया, जिसका श्रेय तिब्बत के रहने वाले नालंदा के विद्वान संभोट को जाता है, जिन्होंने तत्कालीन ब्राह्मी लिपि से भोटी को विकसित किया। सातवीं शताब्दी से लेकर 14वें दलाई लामा तक उन्होंने भोटी भाषा की विकास यात्रा की चर्चा की। बौद्ध धर्म- दर्शन भारत का खजाना है, जिसका रास्ता भोटी में होकर गुजरता है, क्योंकि बुद्ध वचन भोटी में संरक्षित हैं।


कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो सत्येन्द्र नारायण सिंह ने विशिष्ट अतिथि के रूप में वक्तव्य देते हुए कहा कि भोट शब्द बौद्ध शब्द से बना है। भोटी लोगों ने भगवान बुद्ध की बातों को संरक्षित करके रखा हुआ है। उन्होंने भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को आधार बनाकर विभिन्न पालि और संस्कृत के संदर्भों के आधार पर धम्म के बारे में विस्तार से चर्चा की और भोटी के संदर्भ में उच्च स्तरीय शोध को बढ़ावा देने के बारे में बतलाया।
वेबिनार का आरंभ त्रिशरण वंदना से हुआ, जिसे महाचूलांग कोर्नराजविद्यालय विश्वविद्यालय, थाईलैंड के परम पूज्य भिक्खु दीपरतन ने प्रस्तुत किया। स्वागत वक्तव्य स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ आर एन चौरसिया ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन सांची विश्वविद्यालय के अनुसंधाता अवनीश बर्मन ने किया और सत्र की रिपोर्ट स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय की शोधार्थी नाज़मा हासन ने तैयार की।
उद्घाटन सत्र में परम पूज्य भिक्खु करुणाशील राहुल, डा विनोद बैठा, डा प्रमोद इंगोले, डा साधना शर्मा, डा सुनीता कुमारी, डा कृष्णा कुमारी, डा रवि कुमार राम, डा नीरज तिवारी, प्रो श्यामनाथ मिश्र, डा राम कृष्ण, बाल कृष्ण कुमार सिंह, अजय कुमार, सरस्वती कुमारी, आशीष रंजन, धर्मेंद्र राय, गोविंद कुमार झा, रौशन कुमार, सारिका केदार, सोमनाथ दास, श्वेता कुमारी, गोलू कुमार मिश्र, शेखर आज़ाद, सतेंद्र नारायण, अशोक पाठक, मो आसिफ़ मंसूरी, मुकेश पटेल, राजेश राज, जयशास्त्री, नीरज कुमार सिंह, श्वेता सरस्वती आदि 50 से अधिक प्रतिभागी कार्यक्रम में जुड़े हुए थे।

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