एक नदी की हत्या”

कहानी कोई व्यक्ति की नहीं है, न ही किसी जानवर की कहानी है। ये है हमारे उत्तरी बिहार का जमुआरी नदी जो पहले कभी हमारे क्षेत्र का जल संचय का तथा जल निकासी का साधन हुआ करता था पर आज बेजान सा निर्जीव परा हुआ है। जिस जमुआरी नदी में वर्षों पानी हुआ करता था वही आज फसल उपजाने का साधन बना हुआ है। तो आइए हम इस बेजान सी नदी की हत्या की कहानी सुनाते हैं। इस नदी का जन्म कब हुआ मुझे नहीं पता,बड़ा कब हुआ मालूम नहीं,किसने इसे बनाया मालूम नहीं पर इसकी हत्या की कहानी हम लोगों के सामने ही लिखी गई। बात उस समय की है जब जल संसाधन मंत्री विजय कुमार चौधरी जी थे जो अभी वर्तमान में वित्त मंत्री हैं। इनके करकमलों द्वारा उक्त जमूआरी नदी के बीचोबीच कॉलेज बनवाने का आदेश की स्वीकृति दे दिए। अब आप पूछेंगे की यह नदी इतनी महत्वपूर्ण क्यों है? तो आइए इसके अतीत की सैर पर निकलते हैं,तो मित्रों शीट बेल्ट बांध लीजिए।
समस्तीपुर। प्रखंड क्षेत्र से गुजरने वाली ऐतिहासिक जमुआरी नदी प्रशासनिक उपेक्षा एवं सामूहिक जिम्मेवारी की घटती प्रवृति के कारण आज लुप्त होने के कगार पर है। यह नदी मुजफ्फरपुर जिले के सकरा प्रखंड एवं समस्तीपुर जिले के पूसा, ताजपुर, मोरवा एवं सरायरंजन प्रखंड से होकर गुजरती है। उत्तर दिशा में सकरा प्रखंड के जहांगीरपुर चौक स्थित बूढ़ी गंडक से निकलकर यह नदी दक्षिण दिशा में सरायरंजन प्रखंड अरमौली गांव स्थित नून व बलान नदी में जा मिलती है। इतिहासकारों की मानें तो इस नदी का अस्तित्व उतना ही पुराना है, जितना कि गंगा और बूढ़ी गंडक का। यह नदी सती सावित्री व सत्यवान की घटना की मूक गवाह है। इस नदी की लम्बाई करीब 60 किमी. है, वहीं इसकी चौड़ाई करीब डेढ़ सौ मीटर है। आरंभिक दिनों में यह नदी उपर्युक्त पांचों प्रखंडों में ¨सचाई की रीढ़ थी। बूढ़ी गंडक से आवश्यक जल वितरण होता था, जो इसके बहाव के पूरे क्षेत्र में हजारों एकड़ जमीन को सींचता था। नदी की जमीन सरकारी-गैरमजरूआ एवं रैयती¨सचाई एवं आवागमन के लिए नदी में पर्याप्त जल रहने के कारण ही अंग्रेजों ने इस नदी के किनारे की जमीन का अधिग्रहण किया था। जमुआरी किनारे हर¨सगपुर स्थित अंग्रेजो की कोठी इस नदी की ऐतिहासिकता को वयां करती दिख रही है। बड़े-बुजुर्गो के अनुसार नदी के बीचोंबीच बहाववाली जमीन सरकारी एवं गैरमजरूआ है, जबकि नदी के दोनों किनारे की जमीन रैयती है। चार दशक पूर्व इस नदी में अक्सर पानी दिखता था, पर धीरे-धीरे मिट्टी के भर जाने से यह नदी उथरी होती गयी। रही-सही कसर इसके उद्गम स्थल पर स्लूइस गेट के द्वारा बंद कर जल प्रवाह को रोक दी गयी। नतीजतन बूढ़ी गंडक से जल प्रवाह के रूक जाने से यह नदी पूरी तरह बरसाती नदी बन कर रह गयी। आजादी के सातवें दसक तक केन्द्र व राज्य सरकार लगातार किसानों की बेहतरी के लिए योजनाए बनती रही, लेकिन किसी ने नहीं ली जमुआरी की सुधि।

नदी की जमीन पर हो रहा अवैध कब्जा- हाल के वर्षों में स्थानीय लोगों ने इस नदी के पाट को भर-भर कर घर बनाना शुरू कर दिया है। वहीं कई जगह लोगों ने बगीचा लगा दिया है। अधिकांश जगहों पर नदी के सुख जाने से बगल की रैयती जमीनवालों ने नदी के बहाववाली जमीन को जोत की जमीन के रूप में अवैध कब्जा जमा लिया है। नदी के उथरी होने और पाट के सिमटने का खामियाजा क्षेत्र के लोग 2007 में भुगत चुके हैं। बावजूद इसके न तो किसी संगठन या किसी व्यक्ति ने इसके संरक्षण की मांग उठायी और न ही जिला प्रशासन ने ऐसी पहलकदमी की। यदि प्रशासन एवं स्थानीय लोग सचेत नहीं हुये तो आने वाले दिनों में जल निकासी की भारी समस्या का सामना करना पड़ेगा।जमुअरी का संरक्षा जरूरीे

– जमुआरी नदी का संरक्षण जरूरी है। राज्य सरकार को चाहिये कि वह मुख्य बहाववाली जमीन को अतिक्रमणमुक्त करावे, ताकि यह नदी जलनिकासी के साधन के साथ-साथ ¨सचाई के काम में आ सके।
जिले के हजारों किसानों की जीवन रक्षक जमुआरी नदी आज स्वयं अस्तित्व संकट के दौर से गुजर रही है। यथाशीघ्र जिला प्रशासन द्वारा इस नदी की जमीन से अवैध कब्जा हटा कर इसके वास्तविक स्वरूप को लौटाने की जरूरत है।इस ऐतिहासिक नदी की उड़ाही करा कर कम से कम नहर के रूप में लाया जाये ताकि इसके बहाव क्षेत्र के दोनों ओर के हजारों किसानों को सस्ता व सुलभ ¨सचाई का साधन मिल सके।
यही है नदी की हत्या की पूरी कहानी। सरकार को सिर्फ गरीबों की झुग्गी झोंपड़ी
जलाना,उजाड़ना होता है,गरीबों की झोंपड़ी उजाड़कर जलजीवन हरियाली करती है लेकिन इस जमुआरी नदी को अतिक्रमण करने वालों पर हाथ नहीं डाल रही है।

जेटी न्यूज़

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