कोर्ट -कचहरी , पुलिस -प्रशासन की मौजूदगी के बावजूद शहर में अवैध कारनामें हो रहे हैं , तो देहात का क्या कहना !
समस्तीपुर : विधि –कोर्ट -कचहरी , पुलिस -प्रशासन की मौजूदगी के बावजूद शहर में अवैध कारनामें हो रहे हैँ, तो देहात का क्या कहना!
पुलिस गिरफ्तार भी करती है, कचहरी में मुकदमा भी चलता है , सजा भी मिलती है, बावजूद इसके अपराध रुकते नहीं, कारण क्या है?
पहले बोला जाता था, नेता पुलिस पर दबाब बनाती है, अपराधियों को छोड़ ने के लिए, श्री नीतिश कुमार साहब के शासन में आने के बाद ये बातें भी खत्म हो गई. उन्होंने कहा -क़ानून अपना काम करेगा ,फिर भी वातावरण में पुलिस की उपस्थिति का एहसास नहीं है.
ऐसी स्थिति में शोले फ़िल्म के गब्बर का डायलॉग ‘गाँव की रक्षा करता हूँ, बदले में थोड़ी सी अनाज लेता हूँ, क्या जुल्म करता हूँ?`
तुलसी दास ने भी बंदऊ संत -असंतन चरणा, कहना ही उचित समझा था.
बुद्ध ने अंगुलीमाल को डाकू -हत्यारा से रामायण रचियता बाल्मीकि बना दिया. लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने चम्बल के लुटेरों को आत्म समर्पण कराकर , चम्बल के आतंक को समाप्त किया.
जब मैं पंचायती राज संस्था का गठन कर रहा था . आदरणीय राम विलास मिश्र जी को उपाध्यक्ष बनाया था. जन नायक कर्पूरी ठाकुर जी ने संरक्षक पद स्वीकार करते हुए कहा था ‘दुर्गा जी, मैं ऐसा पंचायती राज चाहता हूँ, जहाँ गाँव में पुलिस की जरुरत ही खत्म हो जाय.’
पंचायती राज के जो भी प्रतिनिधि गलत कामों में संलग्न हैँ, वो पंचायती राज को कमजोर कर रहे हैँ और खुद भी कमजोर हो रहे हैँ.
सी. आर. पी. सी एवं अन्य क़ानून में समीक्षा कर संशोधन की जरुरत है.
भारत की सार्वभौमिकता नागरिकों में निहित है. इसीलिए हमें सोचने और करने की जरुरत है. शरीफों की चुप्पी समाज को बर्बादी की ओर ले जा रही है.
चुप्पी छोड़, प्रेमचंद की उन बातों को याद करें ‘हार या बिगाड़ के डर से ईमान की बातें नहीं कहोगे?