किसानों का कमर तोड़ने का मतलब मजबूर होकर कारपोरेट को जमीन दे दे -प्रभु नारायण राव

किसानों का कमर तोड़ने का मतलब मजबूर होकर कारपोरेट को जमीन दे दे -प्रभु नारायण राव

जे टी न्यूज़

बेतिया : बिहार राज्य किसान सभा के उपाध्यक्ष प्रभुराज नारायण राव ने केंद्र सरकार की किसान विरोधी रणनीति पर भारी चिंता व्यक्त की है । उन्होंने कहा की 20 23-24 में किसानों को गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य एमएसपी 2135 रुपए प्रति क्विंटल दिया गया । यह किसानों को घाटा पहुंचाने के नियत से इस एमएसपी का निर्धारण किया गया । क्योंकि प्रमाण के रूप में सामने आ गया कि बिहार के किसानों के घर पर आकर बड़े-बड़े व्यापारियों के बिचौलिए 2200 और 2300 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से गेहूं खरीद कर ले गए । जबकि सरकार ने सरकारी दर पर गेहूं की खरीद की जो किसानों के फसल में लागत से ज्यादा मुनाफा देने की नियत से निर्धारित की । इसी तरीके से धान का एमएसपी भी निहायती कम दर पर घोषित हुई थी । यही कारण था कि जहां 10 लाख टन बिहार सरकार को धान खरीदने का लक्ष्य था । वह मात्र 3064 टन ही धान की खरीद हो सकी।

इसी तरीके से हम महाराष्ट्र में देखते हैं कि प्याज का दाम इतना गिर गया की 2 से 5 प्रति किलो प्याज खरीदने के लिए व्यापारी नहीं मिल रहे थे । कपास की भी यही हाल थी ।किसानों की कमर तोड़ने वाली सरकार की नीतियों के खिलाफ अखिल भारतीय किसान सभा की महाराष्ट्र राज्य किसान कौंसिल ने नासिक से मुंबई तक 200 किलोमीटर पदयात्रा का ऐलान किया । 50 हजार किसान इस यात्रा में शामिल हुए । जब किसान ठाणे पहुंचे । तो महाराष्ट्र सरकार की घबराहट बढ़ गई । बेचैनी इतनी की मुख्यमंत्री शिंदे , उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस सहित महाराष्ट्र सरकार के 6 मंत्री कॉमरेड अशोक ढवले राष्ट्रीय अध्यक्ष के नेतृत्व में 15 सदस्यीय किसान प्रतिनिधियों से वार्ता करनी शुरू कर दी और फिर सरकार मजबूर होकर 350 प्रति क्विंटल प्याज पर अनुदान देने की घोषणा कर दी । लेकिन उससे आंदोलनकारी किसान संतुष्ट नहीं थे ।

क्योंकि पिछली नासिक से मुंबई किसान मार्च के समय किसानों के सारे कर्जा माफ कर देने सहित अन्य मांगों को माल लेने वाली महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार किसानों को धोखा दिया था । इसलिए किसान उसे विधानसभा में पारित कराकर लिखित पत्र लेकर ही आंदोलन को समाप्त किए । आज एक जबरदस्त आंदोलन मोदी सरकार के खिलाफ खड़ा करने की जरूरत है। इसी रोशनी में पिछले दिनों दिल्ली में 5 अप्रैल को मजदूर किसान संघर्ष रैली रामलीला मैदान में आयोजित की गई थी। उस रैली ने यह संदेश तो दे ही दिया कि देश के किसान और मजदूर हाथ पर हाथ धरकर बैठे नहीं रहेंगे । उसके बाद 30 अप्रैल को 200 से ज्यादा किसान संगठनों का दिल्ली कन्वेंशन राष्ट्रव्यापी आंदोलन करने की घोषणा कर दी ।धीरे-धीरे गाजीपुर बॉर्डर , सिंधु बॉर्डर पर किसानों का जमघट जो 13 महीने तक चला था । जब वह आंदोलन दिल्ली की बॉर्डर से गांव की ओर बढ़ने लगा। तो बेचैनी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो तीन काले कानून किसानों के खिलाफ बनाए थे । उसे वापस ले लिया था और बाकी मांगों पर एक कमेटी का गठन कर आगामी दिनों में हल कर देने का आश्वासन दिया था ।एक बार फिर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।

इस तरह हम देख रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी , कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इशारे पर अपने कारपोरेट पक्षी सरकार को चला रहे हैं । यही कारण है कि आज किसानों की कमर तोड़े जा रहे हैं। हम दुष्यंत के शब्दों में एक बार कहना चाहते हैं कि यह जिस्म सारा झुक कर द्वारा हुआ होगा । मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा

Related Articles

Back to top button