विश्विद्यालय चाहें तो प्रथम और द्वितीय वर्ष की परीक्षा ले सकते हैं – सुप्रीम कोर्ट


कार्यालय, जेटी न्यूज
नई दिल्ली/दरभंगा। प्रथम और द्वितीय वर्ष की परीक्षा लेना विश्वविद्यालय पर निर्भर है। अगर कोई विश्वविद्यालय चाहे तो ऐसा कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका को खारिज करते हुए उक्त बातें कही है। बताते चलें कि याचिकाकर्ता ने इग्नू समेत कुछ विश्विद्यालयों की तरफ से परीक्षाएं आयोजित करने का मसला उठाया था। इस बाबत जानकारी देते हुए दरभंगा स्थित ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के सूचना पदाधिकारी डॉ रतन कुमार ने बताया कि, पिछले दिनों इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) के छात्र आयुष येसुदास की याचिका में उपरोक्त मामले में कहा गया था कि तमाम विश्विद्यालयों ने पहले और दूसरे साल की परीक्षाओं को रद्द कर अपने छात्रों को प्रमोट किया है।

लेकिन इग्नू ने 22 जुलाई को जारी अपने सर्क्युलर में कहा है कि वह दिसंबर में परीक्षा लेगा। ऐसा करना न सिर्फ छात्रों के स्वास्थ्य को खतरे में डालेगा, बल्कि उन्हें समानता के अधिकार से भी वंचित करेगा, क्योंकि दूसरे विश्विद्यालय परीक्षा नहीं ले रहे हैं। डॉ रतन ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने 28 अगस्त को दिए अपने फैसले में अंतिम वर्ष की परीक्षा को अनिवार्य करने वाले यूजीसी के सर्क्युलर को सही करार देते हुए कहा था कि 6 जुलाई को जारी सर्क्युलर यूजीसी के अधिकार क्षेत्र में आता है। हर विश्विद्यालय को उस सर्क्युलर के मुताबिक 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षा पूरी करनी होगी. कोई राज्य सरकार अगर डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत परीक्षा टालने पर फैसला करती है, तो वहां यूजीसी की सहमति से बाद में परीक्षा हो सकती है। लेकिन अंतिम वर्ष की परीक्षा दिए वगैर छात्रों को डिग्री नहीं मिलेगी।

प्रथम और द्वितीय वर्ष की परीक्षा पर स्पष्टीकरण मांगने वाली याचिका आज उसी बेंच के सामने लगी जिसने अंतिम वर्ष की परीक्षा पर फैसला दिया था। याचिकाकर्ता के वकील प्रतीक बोम्बारडे ने जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली बेंच को बताया कि इग्नू अंतिम वर्ष की परीक्षा बाकी विश्विद्यालयों की तरह सितंबर में ले रहा है। लेकिन उनकी तरह प्रथम और द्वितीय वर्ष के छात्रों को प्रमोट नहीं किया है। छात्रों से कहा गया है कि परीक्षा दिसंबर में ली जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि
याचिकाकर्ता चाहे तो अपने विश्वविद्यालय को ज्ञापन सौंप कर मांग रख सकता है।
इस पर बेंच ने कहा कि यूजीसी के सर्क्युलर में अंतिम वर्ष की परीक्षा को अनिवार्य ज़रूर रखा गया है। लेकिन बाकी परीक्षा पर भी कोई मनाही नहीं की गई है। उसका फैसला विश्विद्यालय पर छोड़ा गया है। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता चाहे तो अपने विश्वविद्यालय को ज्ञापन सौंप कर मांग रख सकता है. लेकिन याचिकाकर्ता पक्ष ने कोर्ट से ही आदेश जारी करने की मांग की. इसे गैरज़रूरी बताते हुए कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।

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