गीत

गीत
जे टी न्यूज


छलका-छलका मन अकास का,
बदरा घिरे बही पुरवाई ।।

लोच आ गई डाल-डाल में,
लगी थिरकने है अमराई।
निखरा-निखरा रंग पात का,
हरियाली खुलकर मुस्काई ।।

कल की अमिया आम हो गई,
निखर गया यौवन बागों का।
भाव ढल गए स्वयं गीत में,
मेला संवर गया रागों का ।।

दरस-परस की इक पियास है,
सपनीली सी जगी आस है,
सकुचाया सा तन गदराया ,
काजल लगी पलक अलसाई।।
छलका-छलका मन अकास का,
बदरा घिरे बही पुरवाई ।।

अब बिंदास संकोच हो गया,
नयनों के डोरे अरुणाए ।
रंग लिए जादू-मन्तर के,
यौवन को सपने पछुआए ।।

उलझ गया मन भटकाओ में,
जैसे मन खोजे कस्तूरी ।
कुछ विस्तारित अधिक हो गई,
प्राणों से प्राणों की दूरी ।।

बालापन कुछ ढीठ हो गया,
बतरस भी अब मीठ हो गया।
पावस रितु का रोग लग गया,
मचल गई कोरी तरुणाई ।।
छलका-छलका मन अकास का
बदरा घिरे बही पुरवाई ।।

ढंग अलग है अपना दिखता,
जगते नयन देखते सपना।
मुस्कानों में यह मुस्कानें,
खोज रही जन्मों का अपना ।।

पग-पग पर भारी पड़ता है,
इस अपने यौवन को ढोना।
किसकी-किसकी बात सुने मन,
किसका-किसका अनखे रोना ।।

नजर हो गई है बनजारा,
है अच्छी लगती मझधारा।
रोमांचो ने ताप जगाया ,
साँसों की सरगम मदिराई।।
छलका-छलका मन अकास का,
बदरा घिरे बही पुरवाई ।।
।कु0पूजा दुबे

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