महका नेह दुलार तुम्हारे आँगन में। रूप खिला कचनार तुम्हारे आँगन में।
महका नेह दुलार तुम्हारे आँगन में।
रूप खिला कचनार तुम्हारे आँगन में।
खुली लटों के बादल छूते गालों को,
गले मोतियों हार तुम्हारे आँगन में।
दीवालों पर छापे हल्दी चावल के,
तन यौवन का भार तुम्हारे आँगन में।
अलग अनोखा ढंग हो गया पलकों का,
नयनन कजरी मार तुम्हारे आँगन में।
हल्का-हल्का प्यार मान है अपना पन,
अपनी अब सरकार तुम्हारे आँगन में।
रंग-गन्ध का मौसम कैसा गदराया,
बही बसंत बयार तुम्हारे आँगन में।
अहिबाती गीतों का अमृत रंग घोले,
पूजा सुक्ख अपार तुम्हारे आँगन में।
कु,पूजा दुबे सागर, मध्य प्रदेश