वर्षा गीत

वर्षा गीत

 

धूम मचाती जल बरसाती,वर्षा रानी आई।
आज मगन मन वृक्ष ले रहे,झूम-झूम अँगड़ाई।।

पानी पाकर ताल-तलैया,गड्ढे हैं उतराए।
पिया बिना मैं एक अभागिन,रह-रह जी घबड़ाए।।
विरह अगिन के ताप धधकती,इस उर की अँगनाई।
आज मगन-मन वृक्ष ले रहे,झूम-झूम अँगड़ाई।।

मानसून के आते धरती,सोंधी-सोंधी महकी।
पके आम के मध्य बाग में,काली कोयल चहकी।।
मेरे तो सारे जीवन की,विगत हुई निपुनाई।
आज मगन-मन वृक्ष ले रहे,झूम-झूम अँगड़ाई।।

बदरा-बदरी पर चढ़ते हैं,यह शृंगार अनोखा।
लेकिन मेरा हृदय व्यथित है,देखे नयन झरोखा।।
यादों के चिंतन में प्रियतम,उनको याद न आई।
आज मगन-मन वृक्ष ले रहे,झूम-झूम अँगड़ाई।।

मौसम मानसून का आया,बादल-गरजे-बरसे।
शिशु गण भीग रहे हैं बाहर,पर मेरा मन तरसे।।
इस मौसम में प्रियतम होते,घुलती हृदय मिठाई।
आज मगन-मन वृक्ष ले रहे,झूम-झूम अँगड़ाई।।

गीत ध्वनित होते खेतों से,धान जा रहे रोपे।
मुझे लग रहा मेरे प्रियतम,अतिशय मुझ पर कोपे।
मुझे न प्रियता दे पाते हैं,करते सौत कमाई।
आज मगन-मन वृक्ष हो रहे,झूम-झूम अँगड़ाई।।

कभी धरा के नियरे बादल,आकर वर्षा करते।
प्रियतम जैसे तने गगन पर,अधिक उमस हैं भरते।।
पूजा को देखे मौसम यह,आती है उबकाई।
आज मगन-मन वृक्ष ले रहे,झूम-झूम अँगड़ाई।।

कु.पूजा दुबे। सागर मध्य प्रदेश

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