ओ वसंत
ओ वसंत
जे टी न्यूज
शरद को हांकते हुए..
आया वसंत गर्मी को ले
भौंरे मंद मंद मुस्काये..
नव-कलियों ने पट खोले
चहूं ओर हरी-पीत छटा
पतझर का कवच हटा
नई कोंपल करे सलाम!
ओ वसंत तुम्हें झुककर प्रणाम!!
धरा – वधू सा रूप धरे
मन-हरण पीक गान सुनाए
कवि विरह की व्यथा में
मुग्ध नये नित छंद बनाए
नदियां कल-कल छोड़ें तरंग
लालिमा लाया भोर-गगन
भावना-बह कवि करे आराम!
ओ वसंत तुम्हें झुककर प्रणाम!
गंध-मिट्टी मोहक नजारा
बादल बरखा कर हँसे
कीट-पतंगें शब नाचे
दादुर,बगुले सरवर लसे
मयूर पंख फैलाए डोले
शुक,कपोत हर्षित तरु बोले
बौरें आयी झर-झर आम!
ओ वसंत तुम्हें झुककर प्रणाम!!
खलिहानों के रंग बदले
खेतिहर भाग्य उदय माने
भोर,दुपहरी,गोधुलि में
खुशी आंसू के छोड़ें तराने
बालक बन वसंत रास करे
पंछी शोरमय आकाश करे
दे जाता सर्दी को अविराम!
ओ वसंत तुम्हें झुककर प्रणाम!!
रोहताश वर्मा ‘मुसाफिर’
खरसंडी, राजस्थान