1974 बिहार छात्र आंदोलन के 50 साल अधिनायकवाद बनाम फासीवाद

1974 बिहार छात्र आंदोलन के 50 साल अधिनायकवाद बनाम फासीवाद

आलेख – प्रभुराज नारायण राव

जे टी न्यूज
1974 की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अधिनायकवादी नीतियों के खिलाफ बिहार में प्रारंभ हुए छात्र आंदोलन का आज 50 साल गुजर गए। वह छात्र आंदोलन बढ़ती महंगाई , बेरोजगारी , भ्रष्टाचार और शिक्षा में आमूल परिवर्तन के लिए हुआ था ।उस आंदोलन की शुरुआत बिहार के पश्चिम चंपारण के जिला मुख्यालय बेतिया स्थित महारानी जानकी कुंवर महाविद्यालय के प्रांगण से हुआ था । भारत का छात्र फेडरेशन एस एफ आई के पश्चिमी चंपारण के नेतृत्वकारी छात्रों के नेतृत्व में 16 मार्च 1974 को 1:00 बजे दिन में महाविद्यालय प्रांगण से निकाला गया और वर्तमान केंद्र की सरकार की भ्रष्टाचार , उनकी गलत नीतियों के चलते लगातार बढ़ रही महंगाई , बेरोजगारों की बढ़ते कतार और शिक्षा का स्तर लगातार निजी क्षेत्र के हाथों में जाने के खिलाफ ,वह आंदोलन था । लेकिन उसे आंदोलन में शहर के छटे हुए कुछ उपद्रवी तत्वों के शामिल जाने के चलते कुछ दुकानों को नुकसान भी पहुंचा ।लेकिन प्रदर्शन राज देवढ़ी स्थित पश्चिम चंपारण जिला समाहरणालय पर पहुंच गया और स्मार पत्र देने के पूर्व चल रहे नारेबाजी से आक्रोशित तत्कालीन पुलिस अधीक्षक रामविलास राम ने अपनी रिवाल्वर निकाल कर प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाई ।जिसकी गोली से एक छात्र का घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई । फिर एस पी पश्चिम चम्पारण ने गोली चलाने का आदेश पुलिस कर्मियों को दे दिया । अब धुआंधार गोलियां चलने लगी। 44 राउंड गोलियां चली और उसमें सात प्रदर्शनकारी शहीद हो गए ।इस तरीके से पश्चिम चंपारण की धरती पर भयावह स्थिति पैदा हो गई । आक्रोश बढ़ने लगे। बेतिया और आस पास के कई जगहों पर 16 मार्च की संध्या से ही कर्फ्यू लगा दिया गया और देखते ही गोली मार देने का लाउड स्पीकर से प्रचार शुरू हो गया ।


घर से निकलना संभव नहीं था। बावजूद इसके नौजवानों ने यह मन बना लिया कि 18 मार्च को पटने में होने वाले छात्र प्रदर्शन में पश्चिम चंपारण से भी छात्र जाएंगे । जबकि पुलिस कर्मियों द्वारा रेलवे प्लेटफार्म और बस स्टैंड में छात्रों की खोजी होती रही ।बावजूद इसके भारी संख्या में 17 तारीख की रात में यहां के छात्र पटना प्रदर्शन में भाग लेने के लिए कूच कर गए । गोली पटने में भी चली और उसमें भी एक छात्र शहीद हुआ।अब इस छात्र आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए एक सर्वमान्य नेतृत्वकारी की आवश्यकता को समझ महान स्वतंत्रता सेनानी ,प्रखर समाजवादी व क्रांतिकारी नेता जयप्रकाश नारायण जी से नेतृत्व करने का आग्रह किया गया । कुछ शर्तों के साथ उन्होंने अगुवाई करने की जिम्मेदारी मान ली । अब यह आंदोलन जो पश्चिम चंपारण की बेतिया की धरती से छात्रों की शहादत और उनके खून की लपटें बिहार के कोने कोने में फैल गई। यह छात्र आंदोलन तो अब बिहार का ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय छात्र आंदोलन का स्वरूप ले लिया । देश की इंदिरा गांधी की अधिनायक वादी नीतियों के खिलाफ, बढ़ रहे महंगाई ,बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन का लॉ बढ़ता गया । जब नियंत्रण नहीं कर पाने की स्थिति में चारों तरफ छात्रों पर लाठियां बरसाई गई । गोलियां चलाई गई।
हजारों हजार की तादाद में छात्रों की गिरफ्तारियां शुरू हो गई । लेकिन इन सारे दमनात्मक कारवाइयों से यह आंदोलन कहां रुकने वाला था। सर्वप्रथम इस आंदोलन में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की पश्चिमी चंपारण जिला कमेटी के सचिव तथा अधिवक्ता कामरेड सत्येंद्र नारायण मित्र तथा दूसरी गिरफ्तारी साम्यवादी विचारक एम जे के कॉलेज बेतिया के वरिष्ठ प्राध्यापक कामरेड पी झा की हुई । इतिहास इसका गवाह है कि जब भी किसी परिवर्तन की आंधी चलती है, तो उसमें एक व्यवस्था की जगह दूसरी व्यवस्था को लाने के लिए ही संघर्ष का मकसद होता है।
ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ाई के दौर में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा बुलंद करने वाले महात्मा गांधी को संघर्ष की ताकत और जनशक्ति चम्पारण से ही मिला था । इतिहास के पन्नों में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ चंपारण विद्रोह को शामिल नहीं किया जाए । तो शायद अंग्रेजी दासता की पूरी कहानी का मायने ही बदल जाएगा। क्योंकि चंपारण के आंदोलन का नेतृत्व मोहनदास करमचंद गांधी ने किया था । जिनको चंपारण की जनता ने महात्मा की उपाधि दी थी और पूरी दुनिया में आज भी गांधी को महात्मा जी के नाम से जाना जाता है ।
2014 में लोकसभा चुनाव के बाद देश में एक नई व्यवस्था की हुकूमत बनी और वह हुकूमत सांप्रदायिकता , धर्म और झूठ पर आधारित एक व्यवस्था बनी । जिसे फासीवादी व्यवस्था के रूप में पूरी दुनिया में जाना जाता है । जर्मनी के हिटलर का प्रचार मंत्री गोयबॉल्स ने कहा था कि एक झूठ को एक सौ बार बोलने से वह सच हो जाता है ।आज हमारे देश की शासन व्यवस्था इस फासीवादी आधार पर चल रही है। जिसके नायक के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा भारतीय जनता पार्टी के द्वारा प्रस्तावित नरेंद्र मोदी कर रहे हैं । इनका महंगाई ,बेरोजगारी ,भ्रष्टाचार और शिक्षा से कोई सरोकार नहीं है । बल्कि उनकी सरकार झूठ पर आधारित एक व्यवस्था है । जिसका मुख्य हथियार सांप्रदायिकता और धर्म है । ये उसी के माथे पर सवार होकर लगातार आगे बढ़ रहे हैं।
इन्होंने 2014 में देश के पैसे जो काले धन के रूप में विदेश में जमा है उसे वापस लाकर 15 15 लाख रुपए सभी परिवार के खाते में देने का वादा किया था और 2014 का लोकसभा चुनाव जीत कर प्रथम बार देश के प्रधानमंत्री बन गए । दूसरी बार इन्होंने 2019 में बेरोजगार नौजवानों को प्रत्येक साल 2 करोड़ नौकरी देने की वादा करी,तो देश के किसानों को 2022 तक उनकी आमदनी को दोगुनी कर देने की लालच देकर दूसरी बार भी सत्ता पर कब्जा कर लिया ।अबकी बार यह मंदिर निर्माण , प्राण प्रतिष्ठा , सनातन धर्म की रक्षा और उसके साथ देश के अंदर सांप्रदायिक उन्माद , नफरत के बीज बोने का काम और चुनाव के ठीक पहले सी ए ए कानून को लागू कर तीसरी बार देश की सत्ता पर कब्जा करना चाहते हैं । इन्होंने सत्ता के लिए भारतीय संविधान की हत्या कर दी है।लोकतंत्र का नामो निशान मिटा देना चाहते।1975 में लगी आपातकाल तो घोषित था । लेकिन आज सही मायने में देश में अघोषित आपातकाल लागू है ।
विपक्ष के लोगों पर देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसियों को लगा दिया गया है । जो उनकी सरकार के खिलाफ बोलता है । उसके खिलाफ परिवर्तन निदेशालय ई डी, इनकम टैक्स , सीबीआई न जाने कैसे कैसे एजेंसी उनके ऊपर दबाव बनाते जा रहे हैं और जो इनकी गुलामी को स्वीकार कर लेता है
तो उसके ऊपर से एजेंसी को हटा दिया जाता है ।


आज देश के बड़े कालाबाजारियों से स्टेट बैंक द्वारा जारी चुनावी बांड जो 16000 करोड रुपए से ज्यादा का है । वह किन-किन दलों को प्राप्त हुआ और किन के द्वारा प्राप्त हुआ । इसकी जानकारी यह नहीं देना चाहते थे । लेकिन भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने सुप्रीम कोर्ट में एक अपील दायर कर मांग किया कि भारतीय स्टेट बैंक के द्वारा जारी चुनावी बॉन्ड में बड़े पैमाने पर काला धन के रूप में कुछ एजेंसियों ने बड़े दलों को दिया है ।इसकी जांच होने से एक बड़े घोटाले से पर्दा उठेगा और देश की जनता को सही जानकारी प्राप्त हो पाएगी । सुप्रीम कोर्ट गंभीरता से लिया और 12 मार्च तक किसी भी स्थिति में स्टेट बैंक द्वारा जारी चुनावी बांड किन लोगों के द्वारा बॉन्ड खरीदे गए और किस दल को दिए गए । इसकी पूरी जानकारी की मांग की और कल ही यानी 14 मार्च को सुप्रीम कोर्ट को बॉन्ड की पूरी जानकारी प्राप्त होने के बाद अपने वेबसाइट पर डाल दिया गया है और एक बड़ा घोटाला जो नरेंद्र मोदी की सरकार उनके नेतृत्व में फलने फुलने वाले कालाबाजारी और कॉरपोरेट घराने का काला चिट्ठा खुलकर सामने आ गया है ।
आज इस गंभीर स्थिति में 74 के छात्र आंदोलन करने वाले छात्रों और जन संघर्ष के कार्यकर्ताओं को सलाम करते हैं और आज एक बार फिर जो देश मांग रहा है कि हम अपने देश की सभ्यता और संस्कृति का हिफाजत करें । संविधान और लोकतंत्र की रक्षा करें और जर्मनी के हिटलर रूपी भारत के फासीवादी नेता नरेंद्र मोदी को आगामी 2024 के लोकसभा चुनाव में एकजुट हो पराजित करने का कठोर जिम्मेदारी लें।

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