नवरात्रि में चौथे दिन देवी मां के चौथे (चतुर्थी) स्वरूप मां कूष्मांडा की उपासना, पूजा एवं पाठ होनी है…।

माता कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधियों-व्याधियों से सर्वथा विमुक्त करके उसे सुख, समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाती हैं- रामानंद झा।

समस्तीपुर

आज नवरात्रि में चौथे दिन देवी मां के चौथे (चतुर्थी) स्वरूप मां कूष्मांडा की उपासना, पूजा एवं पाठ होनी है। आइए जानते हैं पूजा एवं पाठ की विधि…।

दिन : शनिवार
दिनांक : 28.03.2020

मां का स्वरूप :

इनके तेज और प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है। मां की आठ भुजाएं हैं। अतः ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं। दुर्गा सप्तशती के अनुसार देवी कूष्माण्डा इस चराचार जगत की अधिष्ठात्री हैं।

इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है।

मां के पूजा की विधि :

दुर्गा पूजा के चौथे दिन माता कूष्माण्डा की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए। दुर्गा पूजा के चौथे दिन देवी कूष्माण्डा की पूजा का विधान उसी प्रकार है जिस प्रकार शक्ति अन्य रुपों को पूजन किया गया है।

इस दिन भी सर्वप्रथम कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करनी चाहिए। तत्पश्चात माता के साथ अन्य देवी देवताओं की पूजा करनी चाहिए, इनकी पूजा के पश्चात देवी कूष्माण्डा की पूजा करनी चाहिए।

पूजा शुरू करने से पूर्व हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम करना चाहिए तथा पवित्र मन से देवी का ध्यान करते हुए
“सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च! दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे!!” नामक मंत्र का जाप करना चाहिए।

 

मां का भोग :

मालपुए का भोग लगाएं।

बीज मंत्र :

सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च|
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ||

मिलने वाला आशीर्वाद:

मां कूष्मांडा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं। इनकी उपासना से सिद्धियों में निधियों को प्राप्त कर समस्त रोग-शोक दूर होकर आयु-यश में वृद्धि होती है। साथ ही मां कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधियों-व्याधियों से सर्वथा विमुक्त करके उसे सुख, समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाने वाली है।

 ठाकुर वरुण कुमार (ब्यूरो चीफ)।

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