वैश्वीकरण की दौड़ में कितने सफल हो पाते हैं स्टार्टअप्स
वैश्वीकरण की दौड़ में कितने सफल हो पाते हैं स्टार्टअप्स
जे टी न्यूज़, ग्वालियर(लक्ष्मी दीक्षित) – हमारी सनातन संस्कृति की विचारधारा है वासुदेव कुटुंभकम। अर्थात पूरी धरती ही परिवार है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी संस्कृत का ये श्लोक लिपिबद्ध है। तब इस श्लोक को शायद इस परिपेक्ष में देखते होंगे कि सभी चैतन्य शरीरों में ज्योति रूप जो जीवात्मा है वो उस एकम परमात्मा का ही अंश है। इक्कीसवीं सदी में अगर इस श्लोक की व्याख्या की जाए तो एक ही शब्द है इसके लिए, वैश्वीकरण। वैश्वीकरण का अर्थ है विभिन्न देशों के संसाधनों को इस प्रकार विकसित किया जाए की वो विश्व स्तर पर क्रय-विक्रय हेतु उन प्रत्येक मापदंडों पर खरे उतरे जो विभिन्न देशों ने अपने आर्थिक हितों और अपने नागरिकों की आवश्यकता को ध्यान में रखकर बनाए हैं। वैश्वीकरण से विभिन्न देशों के लोग एक दूसरे के संसाधनों का उपयोग करते हैं। इससे न सिर्फ उनकी जरुरते समान होने लगती हैं बल्कि उनका रहन-सहन, खानपान, पहनावा भी एक होने लगता है। वस्तुओं की खरीद फरोख्त से बाज़ार में तरलता बढ़ती है जिससे अर्थव्यवस्था में सुधार आता है। वैश्वीकरण के जहां अनेकों लाभ हैं वहीं इसके नुकसान भी कम नहीं हैं। वैश्वीकरण जहां समाजों को पास लाता है वहीं इससे सभ्यताएं अपनी मूल संस्कृति को छोड़ कर दूसरी संस्कृति को बढ़ावा देने लगती हैं। परसंस्कृति को अवसात करना आधुनिकता कहलाती है। वो कहते हैं न घर की मुर्गी दाल बराबर। ऐसे ही अपनी संस्कृति से अधिक लुभावनी दूसरी संस्कृति लगने लगती है और इस प्रलोभन में सबसे अधिक प्रभावित होता है युवा वर्ग। युवा वर्ग को लुभाना बड़ी-बड़ी वैश्विक कंपनियों के लिए आसान होता है और वो अपना आर्थिक फ़ायदा युवा वर्ग को अपनी चकाचौंध में फंसा कर करती हैं। वैश्वीकरण से देसी उत्पादों और नौकरियों को भी नुकसान होता है। जिनके पास अपने उत्पादों को विश्व स्तर पर प्रचारित करने के लिए धन नही होता वो इस रेस में पिछड़ जाती हैं और धीरे-धीरे अपना अस्तित्व को देती हैं। नतीजतन, जनसंख्या का एक बड़ा वर्ग बेरोज़गार हो जाता है।
ये सही है कि आजकल खुद का स्टार्टअप लगाने पर ज़ोर दिया जा रहा है और सरकार भी इसमें सस्ते लोन दे कर वित्तिय सहायता प्रदान कर रही है। लेकिन इनमें से कितने स्टार्टअप पूर्व स्थापित विदेशी उत्पादों के सामने ठहर पाते हैं। आंकड़े बताते हैं कि 90% स्टार्टअप असफल हो जाते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2023 में 16 स्टार्टअप अपने सारे कर्मचारियों को नौकरी से निकाल चुके हैं और इनमें से 3 भारत के हैं। लगभग 10% स्टार्टअप पहले वर्ष में ही असफल हो जाते हैं। यूनाइटेड स्टेट्स ब्यूरो ऑफ़ लेबर स्टैटिस्टिक्स के मुताबिक स्टार्टअप के असफल होने की दर समय के साथ बढ़ती है।