आखिरकार प्रदेश सरकार क्यों कर रही है ‘पत्रकारों’ के साथ सौतेला व्यवहार क्या इन्हें आपदा के समय राहत पैकेज पाने का अधिकार नहीं ?
क्या प्रदेश सरकार को सभी पत्रकारों का बीमा नहीं करवाना चाहिए ?

जीवन दांव पर लगाकर कर रहे रिपोर्टिंग,फिर भी प्रदेश सरकार है मुखदर्शक
आर.के.रॉय/संजीव मिश्रा
बिहार : हिंदुस्तान के इतिहास में शायद ऐसा पहली बार हुआ है,जब पूरा देश एक वायरस की वजह से पूरी तरह कहा जाय कर्फ्यू के तरह हालात हैं।
मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने भी प्रदेश में कुछ आपातकालीन सेवाओं को छोड़कर लॉक डाउन की घोषणा कर दी है ।
विश्व के करीब सौ करोड़ लोग आज कोरोना की चपेटे में हैं।
पूरी मानव जाति के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है।शुरुआती दौर में जहां हिंदुस्तान में इस संकट के फैलने की रफ्तार काफी धीमी थी,किन्तु मरकज में गए लोगों के कारण एक बार मामला बढ़ता दिख रहा है ।
मृतकों की संख्या भी हर दिन बढ़ती जा रही है।जिनकी संख्या रविवार तक अकेले बिहार में 37 पहुँच गयी है ।
पटना ,भागलपुर को स्वास्थ्य विभाग ने एलर्ट पर रहने के लिए बोल दिया है । ऐसे हालात में कुछ दिन पूर्व प्रदेश सरकार ने बिहार के कुल 40 पत्रकारों को खाते में पेंशन योजना के तहत राशि भेजी है। बिहार पत्रकार सम्मान पेंशन योजना के तहत अकेले पटना जिले से केवल चुनिंदा पत्रकारो को इस योजना का लाभ मिला है।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि पूरे प्रदेश के पत्रकारों को आखिर राहत क्यों नहीं दी गयी । क्या मात्र 40 पत्रकारो को ही इस विपदा की घड़ी में दिक्कत हो रही है। क्या सरकार इस बात को नहीं जान रही है कि प्रदेश के अंदर पत्रकारो के क्या हालत है । चंद बड़े बैनर के पत्रकारों को छोड़ दिया जाय तो स्थिति काफी दयनीय हो गयी है । खासतौर से अभी लॉक डाउन के हालात में स्थिति तो और काफी खराब हो गयी है । अपने जान जोखिम में डालकर मीडियाकर्मी समाचार संग्रह करते हैं, लोगों के बीच जाते हैं, क्या उन्हें कोरोना का भय नहीं है । अगर किसी पत्रकार बंधु के केस पोजिटिव आ जाये तो उन्हें देखने वाला कोई है ,शायद कोई नहीं ।कितने पत्रकार तो चार से 6 हजार में अखबार में काम करते हैं, किसी तरह से जीवन यापन करते हैं। मुख्य रूप से पत्रकार तो गरीब की श्रेणी में ही आते हैं। कुछ है तो मध्यम वर्ग के श्रेणी में आते हैं। किसी भी स्थिति में मरण दोनो ही वर्गों की होती है। जब प्रदेश की सरकार ने सबो के लिए कुछ ना कुछ राहत पैकेज का घोषणा किया है तो आखिर पत्रकारो के लिए कोई राहत पैकेज क्यों नहीं।

किसी भी मीडिया हाउस प्रिंट, एलेक्ट्रिनिक,या वेब मीडिया के हो अपने जवाबदेही से पीछे नहीं हट रहे हैं, अपने जान जोखिम में डालकर समाचार संग्रह कर लोगों को सत्य से रुबरु कराते हैं।
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल उठता है कि क्या बिहार के सभी पत्रकारों को सरकार से राहत नहीं मिलना चाहिए था ।
मीडियाकर्मी भी अपने व अपने परिवार की जान जोखिम में डालकर दिनभर रिपोर्टिंग करते हैं और राष्ट्र हित में प्रदेश के लोगों तक खबर उपलब्ध करवाते हैं।परन्तु अफसोस पत्रकार हमेशा ही सरकार की उपेक्षा के शिकार रहे हैं।
क्यो ना यह कहा जाय कि जो पत्रकार माननीय मुख्यमंत्री के करीबी है या कहा जाय उनके खिलाफ खबर नहीं लिखते हैं, उन्हें ही पत्रकार पेंसन योजना का लाभ मिला है।
आर्यावत,इंडियन नेशन ,जनशक्ति पटना दूरदर्शन आदि में कार्यरत वरिष्ट पत्रकार शिवनारायण सिंह जैसे विभूति को भी इसमें शामिल नही करना दुर्भाग्यपूर्ण है।
समस्तीपुर जिले के दैनिक जागरण में कार्यरत 15 वर्षो तक ब्यूरो चीफ पर रहे कार्यरत कोशलेन्द्र रॉय द्वारा सारी कागज देने के बाद भी इन्हें पेंसन नहीं मिलना दुर्भाग्यपूर्ण है ।हिंदुस्तान के लीगल संवाददाता एन. के.सिंह नवीन , जनसत्ता के समस्तीपुर संवाददाता , इमरजेंसी के दौरान जेल में रहे राजदेव चौधरी आदि कई ऐसे पत्रकार हैं जो इस योजना से वंचित हैं । 
इसके अलावे समस्तीपुर जिले के चर्चित पत्रकार आर्यावत और इंडियन नेशन के फाउंडर और टाइम्स ऑफ इंडिया और यूएनआई के 85 तक रहे यूएनआई के स्ट्रिंगर धनेश्वर प्रसाद सिंह उर्फ बाबू साहब को भी इस सुशाशन सरकार द्वारा उपेक्षित किया गया है । अगर उनके आयु और बात करे तो तकरीवन 100 वर्ष पार है । अभी बिहार में कई ऐसे वरिष्ट पत्रकार है जिनकी आयु 100 वर्ष है,उनको इस सम्मान का लाभ ना देना केवल पटना के चुनिंदा पत्रकारो को ही देना बहुत कुछ कहता है । सभी जानते है कि इसी वर्ष बिहार में विधानसभा चुनाव भी होना है ।
ऐसे में झंझट टाइम्स के संपादक ‘श्री आर. के रॉय’ ने इस पेंसन योजना को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कड़ी आलोचना की है । इन्होंने तो साफ कहा जो लोग उनकी जय जय करते है उनको ही ये संम्मान मिला है। अभी जो प्रदेश के हालात है कम से कम पेंसन योजना को छोड़ प्रदेश के सभी जिलों के पत्रकार को एक राहत पैकेज देना था। साथ ही इन्होंने प्रदेश सरकार से आग्रह किया है कि पूरे प्रदेश के मीडियाकर्मी चाहे प्रिंट, एलेक्ट्रिनिक या वेब मीडिया से आते हों जो रजिस्टर्ड पत्रकार हो,उनका सरकार 50 लाख का बीमा करे। क्योकि अभी जो भीषण आपदा की घड़ी है भगवान ना करें किन्हीं को कुछ हो जाता है तो उनके परिवार को देखने वाला कोंन होगा। उनका भरण पोषण कैसे होगा, इसलिए सरकार को इसपर गंभीरता से विचार करना चाहिए।

सर्वविदित है कि नीतीश सरकार पत्रकारो की शुरू से उपेक्षा करती आ रही है। इस भीषण महामारी के बीच में मुख्यमंत्री का पत्रकारों को राहत पैकेज से वंचित करना यह साबित भी करती है। लॉक डाउन का सोमवार को तेरहवाँ दिन है । कई पत्रकारो को खाने पर आफत है । किंतु वो ऐसे लोग हैं घर मे भूखे रहेंगे किन्तु किसी से मांगना पसंद नहीं करेंगे, क्योकि वो स्वाभिमानी मध्यमवर्गीय है । कई जिलों के पत्रकार अभी आक्रोशित है। जान जोखिम में डालकर रिपोर्टिग कर रहे हैं, लेकिन प्रदेश सरकार मजाक बना रही है।
प्रदेश सरकार को इस समस्या का समाधान अविलंब निकालना चाहिए,नहीं तो बहुत जल्द एक नई समस्या उत्पन्न हो सकती है।मीडिया को देश का चौथा स्तंभ माना जाता है,ऐसे में प्रदेश की सरकार इसी वर्ग के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है । ये सही है कि इनकी नैतिक जवाबदेही होती है समाज को सत्य दिखाने की।परन्तु सरकार की क्या कोई नैतिक जवाबदेही नहीं होती को लेकर।
बरहाल प्रदेश की सरकार को सभी मीडिया कर्मियों के हित के लिए गंभीरता से विचार करना होगा,अन्यथा स्थिति काफी भयावह हो सकती है,जिसकी जवाबदेही माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार की होगी। विपदा के समय मे आखिर प्रदेश सरकार ध्यान नहीं देगी तो कौन देगा।

