प्रदेश के कई शिक्षक, पत्रकारों की स्थिति दयनीय
आपदा की स्थिति में भी मध्यमवर्गीय लोगों को राहत पैकेज नहीं
‘निराशाजनक’ रहा प्रदेश सरकार का मध्यमवर्गीय लोगों के प्रति रवैया।
आर.के रॉय/संजीव मिश्रा
बिहार पूरा देश अभी कोरोना महामारी के चपेटे में है । प्रधानमंत्री द्वारा घोषित 21 दिन का लॉक डॉन है । एक सप्ताह शेष है लॉक डाउन की अवधि में । ऐसे अभी से कयास लगाए जा रहे हैं कि ये प्रक्रिया अभी लम्बा खींच सकता है ।
हालांकि अभी कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है । ऐसे हालात में गरीबों के साथ -साथ सबसे बुरा हालात मध्यम वर्ग के लोगों का है।
गरीबों के लिए तो केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार काफी घोषणा कर चुकी है ,जमीन पर अब दिखने भी लगा है जो एक अच्छी बात है।
किन्तु अभी तक मध्यम वर्ग को देखने ना तो केंद्र सरकार आगे आयी है ना ही प्रदेश सरकार।
ऐसे में सवाल उठता है कि ये अपना गुजर वसर कैसे करते होंगे। बात हम शिक्षकों की ही करते हैं । संबद्ध डिग्री महाविद्यालय कॉलेज की संख्या वर्त्तमान में 227 है ।
इन कॉलेजो में बिहार सरकार द्वारा 2011 के बाद आजतक कोई मानदेय नहीं प्राप्त हुआ है। जबकि सरकार ने घोषणा भी किया था कि जल्द बकाया मानदेय भुगतान कर दिया जाएगा। बावजूद ये लोग लॉक डाउन के पहले तक अपना योगदान जैसे तैसे देते रहे । आज आपदा की घड़ी है क्या प्रदेश सरकार नहीं जान रही कि इनको खाने तक मे आफत है । क्या ये राहत पैकेज के हकदार नहीं है ।
दूसरी और समान काम के बदले बदले समान वेतन को लेकर बिहार के शिक्षक पिछले कई महीनों से हड़ताल पर है । अबतक करीब 900 शिक्षक पर प्राथिमिकी भी सरकार द्वारा दर्ज करा दी गयी है।
इनका कोई वेतन नहीं है
प्रदेश अभी बुरे हालात से गुजर रहा है कोरोना को लेकर ,क्या सरकार को अभी इनपर ध्यान नहीं देना चाहिए । आखिर ये भी तो यहां के ही जनता है। नाम ना छापने की शर्त पर कई ऐसे अंगीभूत कॉलेज के शिक्षक ने अपनी व्यथा सुनाई जिससे स्थिति का अंदाजा लगा। खाने तक के उनके पास पैसे नहीं है ।
मध्यम वर्गीय लोग तो इस मिट्टी के बने है कि घर मे भूखे रहेंगे किन्तु किसी से कुछ मांगेंगे नहीं । कई ऐसे गैर सरकारी शिक्षक भी है जिनकी हालात बिगड़ी हुई है। खाने पर आफत है
क्या सरकार का कोई जवाबदेही नहीं है इनके प्रति। वही बिगड़े हालात हैं पूरे प्रदेश के पत्रकारो का। कई ऐसे पत्रकार बंधु है जो 4 से 6 हजार में काम करते हैं, कोरोना को लेकर सब अभी बंद है। ऊपर से घर चलाने का दवाब। सरकार पत्रकारो के लिए भी कोई घोषणा आज तक नहीं कर पाई। जबकि चंद पत्रकारो को छोड़कर मुख्य रूप से पत्रकार गरीब ही होते हैं।
किंतु शिक्षा प्राप्त किये होने के वजह से ये मध्यम वर्गीय श्रेणी में आते हैं। अपनी जान जोखिम में डालकर रिपोर्टिंग करते हैं ।किन्तु सरकार का कोई जवाबदेही नहीं होता इस आपदा के समय में भी। आखिर शुरू से ही मध्यम वर्ग उपेक्षित का शिकार हुआ है । कई ऐसे संस्थान है जिनका दुकान बंद पड़ा है, ना उनके पास राशन कार्ड है ना कोई सुविधा ना जन धन में खाता । ऐसे में उन्हें कोई लाभ नही मिल रहा है ।
भुखमरी के कगार पर है। ऐसे में प्रदेश की सरकार हो या केंद्र की सरकार इस मध्यम वर्ग पर ध्यान देना होगा, अन्यथा ये वर्ग भुखमरी के शिकार होंगे, बावजूद किसी से कुछ कहेंगे नहीं। प्रदेश सरकार को तो सारा आंकड़ा मालूम है । यही आशा कर सकते हैं कि जल्द सरकार मध्यमवर्गीय परिवार पर ध्यान दे ताकि इनकी मौत भूख से ना हों।