*केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा भारत के राष्ट्रपति को संयुक्त ज्ञापन*

*केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा भारत के राष्ट्रपति को संयुक्त ज्ञापन*

26 नवंबर 2024

*श्रीमती द्रौपदी मुर्मू*
*भारत की राष्ट्रपति*
राष्ट्रपति भवन,
नई दिल्ली।
*(उपायुक्त के माध्यम से)*

आदरणीय महोदया,

हम मजदूर और किसान आज पूरे भारत में अपने मुद्दों पर प्रकाश डालने और उनके निवारण की मांग को लेकर संयुक्त रूप से विरोध कर रहे हैं। हम यह ज्ञापन आपको इस उम्मीद के साथ भेज रहे हैं कि आप हस्तक्षेप कर देश की इन दो प्रमुख उत्पादन शक्तियों के पक्ष में काम करेंगी। हमने 26 नवंबर को जन लामबंदी के माध्यम से विरोध दिवस के रूप में मनाने के लिए इस लिये चुना है, क्योंकि यह वह दिन है 2020 में जब ट्रेड यूनियनों ने मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताओं के विरोध में राष्ट्रव्यापी हड़ताल की थी और किसानों ने तीन काले कृषि कानूनों के खिलाफ संसद की ओर अपना ऐतिहासिक मार्च शुरू किया था।
किसानों के लंबे संघर्ष के बाद जब कृषि कानून वापस लिए गए थे, तब किसानों से किए गए वादे आज तक पूरे नहीं हुए हैं।
हम नीचे बताई गई दयनीय स्थिति के बारे में आपके सामने कुछ तथ्य रखना चाहते हैं और इस पर आपका हस्तक्षेप चाहते हैं।

 

लगातार चली आ रही एनडीए की इस तीसरी सरकार की नीतियों से भारत के मेहनतकश लोगों को गहरे संकट का सामना करना पड़ रहा है, इनका उद्देश्य कॉरपोरेट और अति अमीरों को समृद्ध करना है। जबकि खेती की लागत और मुद्रास्फीति हर साल 12-15% से अधिक बढ़ रही है, सरकार एमएसपी में केवल 2 से 7% की वृद्धि कर रही है। इसने सी2+50% फॉर्मूले को लागू किए बिना और खरीद की कोई गारंटी दिए बिना 2024-25 में धान के एमएसपी को केवल 5.35% बढ़ाकर 2300 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया। इससे पहले कम से कम पंजाब और हरियाणा में धान और गेहूं की खरीद हो जाती थी। लेकिन केंद्र सरकार पिछले साल खरीदी गई फसल को मंडियों से उठाने में विफल रही, जिससे इस साल मंडियों में जगह की कमी के कारण धान की खरीद ठप हो गई। किसान अपने आधे अधूरे एमएसपी, एपीएमसी मंडियों, एफसीआई और राशन प्रणाली आपूर्ति को बचाने के लिए फिर से सड़कों पर उतरने को मजबूर हैं।

बहुराष्ट्रीय कंपनियों की मदद के लिए, केंद्रीय बजट 2024-25 में घोषित डिजिटल कृषि मिशन-डीएएम के माध्यम से सरकार भूमि और फसलों का डिजिटलीकरण लागू कर रही है। संविदा खेती (कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग) को बढ़ावा देने और खाद्यान्न फसलों की जगह वाणिज्य फसलों को उगने पर जोर दे फसल पद्धति को बदलने की योजनाएँ चल रही हैं, जो कॉर्पोरेट बाज़ार की आपूर्ति में सहायक हैं। 2017 में लगाया गया जीएसटी और 2019 में गठित केंद्रीय सहकारिता मंत्रालय राज्य सरकार की शक्तियों पर आक्रमण था तथा इसके द्वारा राज्यों के कर एकत्रित करने के अधिकारों को कम कर दिया। बजट 2024-25 में घोषित राष्ट्रीय सहयोग नीति का उद्देश्य फसल कटाई के बाद के कार्यों को कॉर्पोरेट द्वारा अपने नियंत्रण में लेना और सहकारी क्षेत्र के कर्ज को कॉर्पोरेट की ओर मोड़ना है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ कई समझौते किए हैं। सार्वजनिक क्षेत्र में, एफसीआई भंडारण, केंद्रीय भंडारण निगम और एपीएमसी मार्केट यार्ड सभी को अडानी और अंबानी जैसी कॉर्पोरेट कंपनियों को किराए पर दिया जा रहा है।

खेती में लगातार घाटा बढ़ने से किसानों पर कर्ज बढ़ता जा रहा है और उनकी खेती से बेदखली बढ़ती जा रहीं है। तीव्र कृषि संकट लाखों ग्रामीण युवाओं को शहरों की ओर पलायन कर मज़दूरों की आरक्षित सेना को बढ़ाने के लिए मजबूर करता है। इसका औद्योगिक और सेवा क्षेत्रों में मज़दूरों पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। केंद्र सरकार द्वारा लगाए जा रहे चार श्रम कोड। – न्यूनतम मजदूरी, सुरक्षित रोजगार, उचित कार्य समय और यूनियन बनाने के अधिकार की किसी भी गारंटी को ख़त्म करते है। निजीकरण, ठेकाप्रथा और भर्ती न करने की नीतियां मौजूदा मज़दूरों और नौकरी चाहने वाले युवाओं को वस्तुतः गुलामी की ओर धकेलती हैं। ट्रेड यूनियन बनाने के मौलिक अधिकार, पुरानी पेंशन योजना को पुनर्जीवित करने, सेवानिवृत्ति के अधिकार, खाद्य और स्वास्थ्य सुरक्षा, शिकायतों के निवारण के लिए प्रभावी कानूनी तंत्र आदि की रक्षा के लिए भी ट्रेड यूनियन संघर्ष पथ पर हैं । हमारा मानना है कि किसानों को गरीबी और कृषि संकट से मुक्ति दिलाने एवं मज़दूरों को उनके माँगें से हाजिल करने के लिए मजदूर-किसान एकता का निर्माण और इसे मजबूत करना राष्ट्रीय हित में अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है।

रक्षा सहित सभी रणनीतिक उत्पादन और रेलवे, बिजली एवं अन्य परिवहन सहित बुनियादी, महत्वपूर्ण सेवाओं का निजीकरण देश की आत्मनिर्भरता को पूरी तरह से खतरे में डाल देगा और सरकार की आय को प्रभावित करेगा।

सरकार ने पिछले तीन वर्षों में लगातार खाद्य सब्सिडी में 60,470 करोड़ रुपये (272,802 करोड़ रुपये से 2,12,332 करोड़ रुपये) और उर्वरक सब्सिडी में 62,445 करोड़ रुपये (2,51,339 करोड़ रुपये से 1,88,894 करोड़ रुपये) की कटौती की है। विश्व व्यापार संगठन के निर्देशों के अनुसार कई राज्यों में नकद हस्तांतरण योजना के माध्यम से सार्वजनिक वितरण प्रणाली को ध्वस्त कर दिया गया है। नकद हस्तांतरण की राशि बहुत कम है, जबकि बाजार में खाद्यान्न बहुत महंगा है। मजदूरों और गरीब लोगों के लिए खाद्यान्न की कमी की समस्या बढ़ती जा रही है। 5 वर्ष से कम आयु के 36% बच्चों का वजन कम हैं, 21% बच्चे कमज़ोरी का शिकार हैं, जबकि 38% भोजन की कमी के कारण बौने हैं। 57% महिलाएँ और 67% बच्चे खून की कमी से ग्रसित हैं। लेकिन सरकार आईसीडीएस, एमडीएम जैसी बुनियादी सेवा योजनाओं के लिए बजट आवंटन में कटौती कर रही है और उनका निजीकरण कर रही है।

औद्योगीकरण के नाम पर कृषि भूमि का जबरन अधिग्रहण किया जा रहा है, लेकिन वास्तव में यह भूमि अति-धनवानों के मनोरंजन, वाणिज्यिक उपयोग, पर्यटन, रियल एस्टेट आदि के लिए दी जा रही है, जबकि सरकार बेशर्मी से भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 और वन अधिकार अधिनियम- को लागू करने से इनकार कर रही है।

कॉर्पोरेट कंपनियां बिजली के स्मार्ट मीटर, मोबाइल नेटवर्क के उच्च रिचार्ज शुल्क, बढ़ते टोल शुल्क, रसोई गैस व डीजल एवं पेट्रोल की बढ़ती कीमतों और जीएसटी के विस्तार के माध्यम से मोटी कमाई कर रही हैं। इसके विपरीत, कामकाजी लोग – किसान, औद्योगिक एवं खेत मज़दूर और मध्यम वर्ग कर्ज के बोझ मे दबा जा रहा हैं। भूमिहीनों को जीवनयापन के लिए उच्च ब्याज दरों पर स्वयं सहायता समूहों से कर्ज़ा लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है। ग्रामीण भारत में ठेका मजदूरों की मजदूरी बहुत कम है। सरकार द्वारा कॉरपोरेट घरानों का 16.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज़ा माफ कर दिया है, जबकि किसानों और खेत मज़दूरों को ऋणग्रस्तता से मुक्त करने से इनकार कर दिया।

सरकार द्वारा संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के साथ 9 दिसंबर 2021 के लिखित समझौते का उल्लंघन किया गया है।

इस पृष्ठभूमि में 24 अगस्त 2023 को तालकटोरा स्टेडियम में पहली बार अखिल भारतीय स्तर पर हुए मजदूर-किसान अधिवेशन द्वारा मांगों पत्र अपनाया था और निरंतर संघर्ष का आह्वान किया गया था। इसके बाद 2023 नवंबर में राज्यों की राजधानीयों मे महापड़ाव, 16 फरवरी 2024 को औद्योगिक हड़ताल एवं ग्रामीण बंद और इस के बाद सरकार की मजदूर-विरोधी, किसान-विरोधी नीतियों का पर्दाफाश करने और उनका विरोध करने के लिए अभियान हमारे लगातार किये गये विरोध के उदाहरण हैं, जिन्होंने सरकार का ध्यान आकर्षित किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। इन मांगों पर बार-बार विरोध के बावजूद सरकार जवाब देने में विफल रही है।

इसलिए 3 काले कृषि कानूनों के खिलाफ़ महा-संघर्ष की 4वीं वर्षगांठ पर एक बार फिर अपनी मांगों को उठाने के लिए देशभर के जिलों में 26 नवंबर को किसानों, ग्रामीण गरीब और औद्योगिक मज़दूरों की बड़े पैमाने पर लामबंदी का यह निर्णय लिया गया है। विरोध कार्रवाई 12 मुख्य मांगों और 24 अगस्त 2023 को तालकटोरा स्टेडियम नई दिल्ली में हुए पहले अखिल भारतीय मज़दूर किसानों महाधिवेशन द्वारा अपनाए गए मांगों पत्र पर आधारित है।

हम आपके सामने अपने आंदोलन का मांगपत्र रखते हैं और मजदूरों व किसानों तथा हमारे देश के हित में इन मुद्दों को गंभीरता से संबोधित करने के लिए एनडीए सरकार दबाव बनाने के लिए आपके हस्तक्षेप की मांग करते हैं।

12 सूत्री मुख्य मांगें हैं:
1. सभी फसलों के लिए कानूनी रूप से गारंटीकृत खरीद के साथ सी2+50% के अनुसार एमएसपी।
2. चार श्रम संहिताओं को निरस्त करें, श्रम की आउटसोर्सिंग और ठेकेदारी को समाप्त करें, सभी के लिए रोजगार सुनिश्चित करें।
3. संगठित, असंगठित, स्कीम वर्कर और अनुबंध मज़दूरों एवं कृषि क्षेत्र सहित सभी मज़दूरों के लिए 26000 रुपये प्रति माह का राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन और 10000 रुपये प्रति माह पेंशन और सामाजिक सुरक्षा लाभ लागू करें।
4. ऋणग्रस्तता और किसान आत्महत्या को समाप्त करने के लिए व्यापक कर्ज़ मुक्ती।
5. रक्षा, रेलवे, स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली सहित सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और सार्वजनिक सेवाओं का निजीकरण बंद किया जाए। राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) को खत्म किया जाए। प्रीपेड स्मार्ट मीटर समाप्त किया जाए, कृषि पंपों के लिए मुफ्त बिजली, घरेलू उपयोगकर्ताओं और दुकानों को 300 यूनिट मुफ्त बिजली दी जाए।
6. डिजिटल कृषि मिशन (डीएएम), राष्ट्रीय सहयोग नीति और राज्य सरकारों के अधिकारों का अतिक्रमण करने और कृषि के निगमीकरण को बढ़ावा देने वाले बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ आईसीएआर समझौते को रोका जाए।
7. अंधाधुंध भूमि अधिग्रहण को समाप्त करो, भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 और वन अधिकार कानून को लागू करो।
8. मनरेगा के तहत 200 दिन काम और 600 रुपये प्रतिदिन मजदूरी। योजना को कृषि एवं पशुपालन के लिए वाटरशेड योजना से जोड़ जाए।
9. फसलों और मवेशियों के लिए व्यापक सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा योजना, काश्तकारों के लिए फसल बीमा एवं सभी बाकी सभी योजनाओं का लाभ सुनिश्चित किया जाए।
10. जो किसी भी योजना में शामिल नहीं हैं उन सभी लोगों के लिए 60 वर्ष की आयु से 10,000 रुपये मासिक पेंशन सुनिश्चित की जाए।
11. सार्वजनिक संपत्ति के निगमीकरण और लोगों को विभाजित करने के लिए विभाजनकारी नीतियों के उद्देश्य से कॉर्पोरेट-साम्प्रदायिक नीतियों को खत्म किया जाए।
12. महिला सशक्तिकरण और फास्ट ट्रैक न्यायिक प्रणाली के माध्यम से महिलाओं एवं बच्चों के खिलाफ हिंसा को समाप्त किया जाए। दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों सहित सभी हाशिए पर पड़े वर्गों के खिलाफ हिंसा, सामाजिक उत्पीड़न और जाति-सांप्रदायिक भेदभाव को समाप्त किया जाए।

आपसे अपेक्षा है कि आप भारत के संविधान में निहित न्याय और समानता के पक्ष में हमारे मांगो को पूरा करने के लिए तत्काल कार्यवाही करेंगी।

धन्यवाद सहित,

*संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) एवं केंद्रीय ट्रेड यूनियनों (सीटीयू) और स्वतंत्र क्षेत्रीय संघों/एसोसिएशनों का संयुक्त मंच*

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