लोकनायक के विचारों में आत्मनिर्भर भारत की नींव

लोकनायक के विचारों में आत्मनिर्भर भारत की नींव

 

लोकनायक जयप्रकाश नारायण केवल एक राजनेता नहीं, बल्कि भारत की आत्मा की आवाज़ थे। उनका जीवन और चिंतन इस बात के प्रतीक थे कि सच्चा विकास तभी संभव है जब समाज आत्मनिर्भर, जागरूक और नैतिक रूप से सशक्त हो।
जयप्रकाश नारायण का “संपूर्ण क्रांति” का विचार केवल राजनीतिक परिवर्तन तक सीमित नहीं था; बल्कि उसमें आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक और नैतिक क्रांति की परिकल्पना थी। वे मानते थे कि भारत की शक्ति उसके गाँवों, युवाओं और श्रमशील जनता में निहित है। गांधीजी की तरह वे भी मानते थे कि आत्मनिर्भरता का अर्थ है – “स्वावलंबन के माध्यम से स्वतंत्रता का सशक्तिकरण।”


आज जब भारत “आत्मनिर्भर भारत अभियान” की दिशा में आगे बढ़ रहा है, तब जयप्रकाश नारायण के विचार पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं। वे केंद्रीकृत सत्ता और पूंजी पर आधारित विकास मॉडल के विरोधी थे। उनका मानना था कि समाज का पुनर्निर्माण तभी संभव है जब हर व्यक्ति, हर गाँव अपनी जरूरतें स्वयं पूरी करने की क्षमता विकसित करे। उन्होंने कहा था — “लोकतंत्र का असली अर्थ है जनता का सशक्तिकरण, न कि सत्ता का केंद्रीकरण।”.


जयप्रकाश जी का आत्मनिर्भर दृष्टिकोण न केवल आर्थिक स्वावलंबन, बल्कि आत्मिक स्वतंत्रता का भी संदेश देता है। वे चाहते थे कि भारत आधुनिक तकनीक अपनाए, पर अपनी संस्कृति, श्रम और स्वाभिमान के मूल्यों से समझौता न करे। आज के भारत के लिए उनका दर्शन प्रेरणा है — कि आत्मनिर्भरता केवल नीति नहीं, बल्कि नैतिक शक्ति और सामाजिक एकता का प्रतीक है।

डॉ विजय कुमार गुप्ता
वरीय सहायक प्राध्यापक,
अर्थशास्त्र विभाग, वीमेंस कॉलेज, समस्तीपुर

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