आज गरीबों के मसीहा 1974-77 छात्र आंदोलन के नायक, जेपी को आदर्श मानकर, जन नायक कर्पूरी के नेतृत्व को स्वीकार कर राजनीति सफर करने वाले, बिहार में सामाजिक न्याय के अग्रदूत माननीय लालू प्रसाद यादव जी का 11 जून 73वां जन्मदिन है।
जी हां अगर लालू के राजनीतिक सफर पर नजर डालें तो सबसे अहम बात यह निकल कर आती है कि लालू हमेशा से गरीबों के मसीहा रहे हैं और आज भी है।
लालू यादव का राजनीतिक 1970 में छात्र राजनीति से शुरू हुआ, जब वो पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के महासचिव के रूप में पहला चुनाव जीता। जयप्रकाश नारायण, राज नारायण, कर्पूरी ठाकुर और सत्येंद्र नारायण सिन्हा से प्रेरित होकर लालू ने छात्र आंदोलन का नेतृत्व किया। तत्कालीन जनता पार्टी के अध्यक्ष सत्येंद्र नारायण ने लालू को लोकसभा चुनाव लड़ने की सलाह दी और फुल सपोर्ट किया। उनके लिये प्रचार भी किया। छठी लोकसभा में जनता पार्टी के टिकट से लालू यादव मात्र 30 वर्ष की आयु में लोकसभा चुनाव जीत कर संसद पहुंचे। उस समय लालू सबसे युवा सांसदों में से एक थे।
10 साल के भीतर लालू ने बिहार में अपना सिक्का जमा लिया। कमजोर वर्गों, मुसलमानों और यादवों के बीच लालू प्रख्यात नेता के रूप में उभरे। उस दौरान ज्यादातर मुसलमान कांग्रेस के समर्थक हुआ करते थे, लेकिन लालू ने वह वोटबैंक तोड़ दिया। 1987 में जन नायक कर्पूरी ठाकुर जी के निधन के बाद समाजवादी विचारधारा की बिहार में नेतृत्व की जिम्मेदारी लालू यादव जी पर आ गई।
1989 में आम चुनावों और राज्य विधानसभा चुनावों में नेशनल फ्रंट का नेतृत्व लालू ने किया। 1990 में लालू को बिहार का मुख्यमंत्री चुना गया। 1990 के दशक में लालू ने बिहार को आर्थिक रूप से मजबूत किया, जिसकी तारीफ विश्व बैंक तक ने की। साथ ही बिहार में लालू प्रसाद यादव ने सामाजिक न्याय की आवाज उठाने लगी। परिणाम स्वरूप पिछड़ों, दलितों में आत्म सम्मान बढ़ने लगा। सामंती समाज के लोगों ने मजदूरों को बंधुआ मजदूर बना रखा था। इस बेरियर से लागू यादव ने बाहर निकाल कर आज़ाद किया। सामाजिक रूप से बराबरी का अधिकार संविधान के अंतर्गत व्यवहार में दिलाया।
लालू यादव के इस साहस को देख कर बिहार के 85% पिछड़ा, अतिपिछड़ा, अनुसूचित जाति, जनजाति के लोग एकजुट होकर लालू यादव को अपना मसीहा मानने लगा। लालू यादव की यही लोकप्रियता देश के सामंती समाज के लोगों के नज़र में खटकने लगा।
देश स्तर पर लालू यादव को फंसाने का एक जाल बिछाया गया। 1980 से पशुपालन विभाग में कुछ हेरा-फेरी की जा रही थी, उसके आर में 1996 में लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री बिहार को चारा घोटाला केस में सीबीआई के द्वारा फंसा दिया गया। जबकि लालू को इस घोटाले के बारे में जानकारी जब मिली तो लालू ने विभिन्न थानों में एफआईआर कराया था। लेकिन एक साज़िश के तहत इस केस में लालू यादव को ही पुरा चार्ज लगा दिया गया।
जबकि आजाद भारत में अभी तक देश के विभिन्न योजनाओं को लूटकर सामंती समाज के लोगों ने लूटकर देश के 90% संसाधनों पर गैरकानूनी ढंग से कब्जा कर भारत को लहुलुहान कर दिया है। लेकिन किसी भी सामंती लूटेरों कोई नहीं पकड़ने वाले हैं।
1997 के 5 जुलाई को जनता दल से अलग लालू यादव ने राष्ट्रीय जनता दल नाम से राजनीति पार्टी का गठन किया।
14वीं लोकसभा में लालू छपरा और मधेपुरा से जीतकर संसद पहुंचे। उन्होंने भाजपा के राजीव प्रताप रूडी को छपरा में और जदयू के शरद यादव को मधेपुरा में हराया। बाद में उन्होंने मधेपुरा सीट छोड़ दी। आगे चलकर लालू केंद्रीय रेल मंत्री बने।
लालू यादव के रेल मंत्री बनने पर मिट्टी के कुल्हड़ को तरजीह दे कर स्थानीय कलाकारों के रोजगार को बढ़ावा दिया।
लालू ने बतौर रेल मंत्री सबसे पहले रेलवे स्टेशनों और ट्रेनों पर कुल्हड़ों में चाय बेचने की अनिवार्यता को बढ़ावा दिया। उन्होंने प्लास्टिक कप पर बैन कर दिये। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में भारी मात्रा में रोजगार जुटाया। उन्होंने बटर मिल्क और खादी को भी बढ़ावा दिया। इस दौरान लालू अकसर अचानक रेलवे स्टेशन पर पहुंच कर औचक निरीक्षण किया करते थे।
रेल मंत्रालय…
रेलवे को दिया भारी प्रॉफिट… लालू ने जिस समय रेल मंत्रालय संभाला था, उस समय रेलवे घाटे में चल रहा था, जबकि कार्यकाल पूरा करते-करते लालू ने रेलवे को 2.50 बिलियन रुपए का जबर्दस्त लाभ दिलाया। इतना प्रॉफिट रेलवे को आज तक किसी भी रेलमंत्री ने नहीं दिया है। जबकि मुझ जैसे कार्यकर्त्ता राम सुदिष्ट यादव मधुबनी बिहार को “साऊथ ईस्ट रेलवे जोन में मेंबर बनाकर सम्मानित करने काम किया था। साथ ही देश भर में सामाजिक कार्यकर्ता को रेलवे परामर्शदात्री समिति में सदस्य बना कर सम्मान देने का काम किए थे।
लालू यादव गरीबों के मसीहा…
लालू ने यात्रियों का हमेशा खयाल रखा। लालू के कार्यकाल में ही सबसे पहले गरीब रथ चलायी और उन्होने ही गरीबों के लिये बनाये जाने वाले अनारक्षित डिब्बे में कुशन सीटें लगाने के आदेश दिये। यानी आप कह सकते हैं कि लालू हमेशा से ही गरीबों के महीहा रहे।
लालू यादव से…
हारवर्ड विश्वविद्यालय भी लालू से प्रभावित हुआ था।
लालू के मैनेजमेंट स्किल इतने ज्यादा प्रभावी थे कि हारवर्ड विश्वविद्यालय की एक टीम भी भारत आयी और उसने लालू के मैनेजमेंट स्किल्स का अध्ययन किया। लालू ने एक बार हारवर्ड और वार्टन के छात्रों को संबोधित भी किया था।
आज लालू यादव को सभी कानून को सुपरसीड करते हुए जबरन जेल में बंद किए हुए हैं। मनुवादी कानून,जज, वकील, मुन्सीफ के षड्यंत्र का शिकार है सामाजिक न्याय के योद्धा। लालू से पूर्व भी जो जो सामाजिक न्याय की लड़ाई की अगुआई की शासक वर्ग इसी तरह उसके हिम्मत को तोड़ने का प्रयास करते रहे हैं। इसका उदाहरण पेरियार रामास्वामी नायकर, ज्योतिबा फुले, शाहुजी महराज, संत गाडगे, वाल्मीकि रामायण के शम्बूक ऋषि, संत कवीर, संत रविदास डॉ भीमराव अम्बेडकर आदि को भी भिन्न भिन्न सामंती समाज में सामाजिक यातनाओं से गुजरना पड़ा था।
आज 11 जून है, सामाजिक न्याय के योद्धा लालू प्रसाद यादव जी की जन्मदिन एवं गरीब सम्मान दिवस के अवसर पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। राम सुदिष्ट यादव समाजवादी पार्टी मधुबनी विधानसभा बिहार।