विलुप्त हो रही है पारम्परिक झिझिया ।

*जे०टी०न्यूज:-*

 

केसरिया/पू०च०

 

 

झिझिया गीत महिलाओं का लोक प्रीय नृत्य एवं गीत रही है। जो शारदीय नवरात्र के अवसर पर दस दिनों तक युवतियां व घरेलु महिलाएं सदियों से करती आ रही है। इस लोक नृत्य में कुवॉरी लड़कियां अपने सिर मिट्टी के कलश में छोटे छोटे सुराग बनाकर उसमें दीपक जलाकर घर घर घुम कर गीत गाती हैं।जिसे सभी घर वाले उपहार स्वरुप कुछ अन्य या पैसे देते हैं जिससे प्रसाद खरिद कर पूजा करती हैं। शारदीय नवरात्र में प्रसिद्ध झिझिया उत्सव प्रारंभ की शुरुआत होती है जो दशमी को झिझिया का समापन हो जाती है। अब वह विलुप्त होती इस परंपरा को आज भी प्रखंड क्षेत्र में कई छोटे-छोटे बच्चे इसका आयोजन करती है और अपनी टूटी फूटी भाषा में झिझिया गीत गाकर लोगों को मंत्रमुग्ध कर देती है। विलुप्त हो रहे झिझिया नृत्य को बचाने के लिए फिल्मों और स्कूल में भी बच्चों को इस लोक पारम्परिक झिझिया के बारे में जानकारी दी जाती है। मगर इससे कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। लोग अब इस परमपरा को भूलते जा रहे हैं। भोजपुरी विकास मंच के अध्यक्ष व भोजपुरी कवि राम कुमार चम्पारणी   कहते हैं कि इस विलुप्त हो रहे परमपरा को बचाने की जरूरत है। इसके लोगों को जागरूक किया जाएगा। पेनशनर समाज के सचिव मदन सिंह कहते हैं कि इस झिझिया गीत से हमारी सस्कृति झलकती है। वही विविध कला विकास समिति के अध्यक्ष आलम महमद ने बताया कि सदियों पुरानी परम्पराएँ विलुप्त होती दिख रही है लेकिन हमारे संस्था के कलाकार दुर्गा पूजा के समय होने वाले रामलीला के मंच पर इस लोक परम्परा झिझिया गीत व नृत्य का मंचन करती रहती है।

Website Editor :- Neha Kumari

Related Articles

Back to top button