*26 नवंबर 2020 आम हड़ताल, गांव बंद और 27 नवंबर को दिल्ली में मजदूर किसान प्रतिरोध मार्च* 

 

जेटी न्यूज

बेतिया(कार्यालय):- किसान विरोधी तीनों कृषि कानूनों और चार श्रम कानूनों का स्थापित होना बड़ी पूंजी के समक्ष मोदी सरकार के आत्मसमर्पण को दर्शाता है। राज्य अपनी खाद्य सुरक्षा, कृषि उपज की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी ) और न्यूनतम मजदूरी प्रदान करने की जिम्मेदारी से पीछे हट रहा है। ट्रेड यूनियन बनाने और मजदूरों के शोषण के खिलाफ सामूहिक लड़ाई के मौलिक अधिकार को ख़त्म किया जा रहा है। इन काले कानूनों का पूरे देश के किसान और मजदूरों को एड़ी से चोटी तक का जोर लगा कर समाप्ति तक विरोध करना होगा । केंद्र सहित राज्य सरकारों को सहकारी समितियों को बढ़ावा देने और किसानी कृषि को बचाने वाले, किसान पक्षीय कानून बनाने होगे। मज़दूरों के अधिकारों के संरक्षण के लिए ऐसे कानूनों की जरुरत है,जो सम्मानजनक मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा और यूनियनों के गठन के अधिकार को मज़बूती से सुनिश्चित करते हो ।

यह तीनों कृषि कानून अत्यन्तं खतरनाक हैं और कृषि के निगमीकरण को सुविधाजनक बनाते है। आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम अनाज, दाल, तिलहन, प्याज और आलू के व्यापार को अनियंत्रित करता है। वास्तव में यह जमाखोरी और कालाबाजारी को वैधता प्रदान करने वाला कानून है। कारपोरेट हाउस भण्डारण व मूल्य संवर्धन कर के, किसानों को निचोड़ और उपभोक्ताओं को लूट कर दोनों तरीकों से असीम लाभ कमा सकते हैं। यह सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) का व्यवस्थागत उन्मूलन करेगा और भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के निजीकरण के माध्यम से लोगों की खाद्य सुरक्षा को खतरे में डालेगा।

कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम 2020 भारत के संविधान की संघीय प्रकृति पर एक हमला है। कृषि संविधान की सातवीं अनुसूची में सूचीबद्ध है और केंद्र सरकार के पास, राज्य सरकारों को विश्वास में लिए बिना इस विषय पर कानून बनाने का कोई निर्विवाद अधिकार नहीं है। इस अधिनियम की धाराएं कॉरपोरेट शक्तियों को ई-व्यापार प्लेटफार्मों की सहायता से किसी भी प्रकार के विनियमन के बिना कृषि उपज के राज्य के अंदर और अंतरराज्यीय व्यापार में संलग्न होने की अनुमति देती हैं। ई-व्यापार और खेती की प्रक्रिया के डिजिटलीकरण पर कॉर्पोरेट प्रभुत्व से अंततः उत्पादन और उत्पादकता पर एकाधिकार पूंजी का नियंत्रण हो जाएगा। कॉर्पोरेट शक्तियों पर व्यापारिक गतिविधियों के लिए बाजार विनियमन, नीलामी प्रणाली, बाजार शुल्क भुगतान और उपकर या शुल्क का कोई दायित्व नहीं है। यह अधिनियम ‘एक राष्ट्र एक बाजार’ के नारे के तहत कॉर्पोरेट पूंजी को असीमित स्वतंत्रता प्रदान कर रहा है, हालांकि प्रधानमंत्री जी द्वारा इसे किसानों के लिए स्वतंत्रता’ के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है।

मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) अनुबंध विधेयक 2020, भूमि प्रबंधन, खरीद, प्रसंस्करण और मूल्य आदि के महत्वपूर्ण प्रश्न से संबंधित है। इसअधिनियम के प्रावधान कॉरपोरेट पूंजी को संविदा कृषि (कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग) में प्रवेश करने के लिए सक्षम बनाते है, जिससे किसानों की भूमि का विशाल हिस्सा कॉरपोरेट प्रबंधन के अधिन चला जाएगा। यह भूमि संसाधनों व भूमि उपयोग के केंद्रीकरण करने और उस पर एकाधिकार नियंत्रण स्थापित कर कॉर्पोरेट हितों को पूरा करने के लिए भूमि सुधारों को पलटने के मार्ग को प्रशस्त करता है। हालांकि इस अधिनियम के शीर्षक में ‘मूल्य आश्वासन पर समझौतो’ का जिक्र है, पर इस अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं हैं जो स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार सी2 +50% (कम से कम लागत का डेढ़ गुना दाम) की लाभकारी एमएसपी कीमत पर कृषि उपज की खरीद सुनिश्चित करता हो। यह प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई वाली सरकार के तहत किसानों द्वारा अनुभव की जाने वाली त्रासदी है। यह अधिनियम असमान भागीदारों के बीच व्यापार और सेवाओं की सुविधा प्रदान करता है, जो छोटे और मंझोले किसानों के बड़े हिस्से को असमान और अनुचित समझौतों के तहत शक्तिशाली कॉर्पोरेट घरानों द्वारा तय की जा रही कीमत को मानने पर मजबूर करता है। इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार यह किसी भी सिविल कोर्ट के अधिकार क्षेत्र से बाहर है; इसलिए किसान अपनी शिकायतों के निवारण के लिए अदालतों में भी नहीं जा सकते।ये अधिनियम अंततः कॉर्पोरेट कृषि को बढ़ावा देगे और अपने एकाधिकार के तहत भूमि के बड़े हिस्से पर खेती के लिए किसानी कृषि की प्रणाली को समाप्त कर देगा। कॉरपोरेट ताकतों का दबाव किसानो को कम लाभ पर सामाज के लिए महत्वपूर्ण खाद्यान्न की फसलों की बजाय आधिक लाभकारी नकदी फसलों की खेती करने के लिए मजबूर करेगा जो की गंभीर चिंता का विषय है। यह आगे चलकर किसानी में पहले से ही व्याप्त गरीबी और सर्वहाराकरण को तीव्र गति से आगे बढ़ाएगा। छोटे और मंझोले किसान अपनी जमीन और पशुओ को खोकर भूमिहीन मजदूर में तब्दील हो जाएगे और रोजगार व जीवन व्यापन के लिए प्रवासी श्रमिकों में शामिल हो यहाँ से वहा भटकेगें या दैनिक मजदूरी वाले मजदूरों के तौर पर काम करने पर मजबूर होगें।श्रम संहिता- मोदी सरकार ने चार श्रम संहिताएँ लागू की हैं, जो की मजदूरों से अधिकतम आठ घंटे के काम, न्यूनतम वेतन और संगठन की स्वतंत्रता के माध्यम से सामूहिक हितो के लिए संघर्ष और ट्रेड यूनियन बनाने के अधिकार को छीनता है । ये अधिकार किसी शासक द्वारा उपहार में नहीं दिए गए थे, बल्कि अनगिनत शहीदों के जीवन कुर्बानियां दे कर शासक वर्गों के खिलाफ लड़ कर संघर्षों के माध्यम से जीते गए थे, यहां तक की ब्रिटिश साम्राज्यवाद के दौर में भी ये संघर्ष लड़े गए थे। भाजपा-आरएसएस नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने मजदूर वर्ग के शोषण में इज़ाफा करते हुए कॉर्पोरेट मुनाफाखोरी सुनिश्चित करने के लिए यह श्रम संहिता लागू की है।

संघीय ढांचे पर हमला- अंततः यह कृषि अधिनियम, श्रम संहिता, माल और सेवा कर प्रणाली (जीएसटी) के साथ सभी वित्तीय संसाधनों को छीन कर राज्य सरकारों को कमजोर कर देगी । केंद्र के पास शक्तियों का केन्द्रियकरण और कॉरपोरेट पूंजी द्वारा नियंत्रित शासन की बढ़ती एकात्मक प्रणाली संसाधनों के समान वितरण और विकास के संतुलन को खतरे में डाल देगी। यह लोगों में असंतोष पैदा करेगा और भारत की एकता के लिए खतरा पैदा कर सकता है। राज्यों के हितों और देश की एकता की रक्षा के लिए सभी राज्य सरकारों को इन अधिनियमों के विरोध में आगे आना होगा। उन्हें कृषि, उद्योग और व्यापार को बचाने के लिए वैकल्पिक कानून बनाने होगें।संसदीय प्रणाली का खात्मा – भाजपा के नेतृत्व में हुए इन परिवर्तनों ने पूंजीवादी व्यवस्था के तहत लोकतांत्रिक संसदीय प्रणाली के खोखलेपन को उजागर किया है। सबसे खतरनाक, कठोर काले कानून जो पूरे मेहनतकश अवाम और किसानो की आजीविका को खतरे में डालेंगे को संसद के दोनों सदनों में सदस्यों के असहमति दर्ज करने के अधिकार की अनुमति के बिना अधिनियमों को पास कर दिया गया। यह इस तथ्य को रेखांकित करता है कि नव-उदारवाद और कॉर्पोरेट मुनाफाखोरी को आक्रामक तरीके से आगे बढ़ाने के लिए संसदीय लोकतंत्र को किस प्रकार से विकृत किया जा रहा है। संगठन बनाने, ट्रेड यूनियनों के गठन व सामूहिक हितों के लिए संघर्ष के अधिकार की स्वतंत्रता के बिना किसी भी नागरिक समाज में कोई भी स्वतंत्रता नहीं रह सकती है। इसी प्रकार किसानों का अपनी जमीन पर अधिकार, एमएसपी कीमतों पर खरीददारी की गारंटी, बाजार तक पहुंच, कोल्ड चेन और भंडारण व मूल्यवर्धन भी गरिमापूर्ण जीवन के लिए मौलिक जरूरते हैं। इसलिए मजदूर विरोधी श्रम संहिता और किसान विरोधी कृषि अधिनियमों के खिलाफ संघर्ष भारत के लोगों की स्वतंत्रता और स्वाधीनता की रक्षा के संघर्ष का अभिन्न अंग हैं।

बढ़ते प्रतिरोध – अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) जिसमें 250 से अधिक किसानों व खेत मजदूरों के संगठन हैं और 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के मंच द्वारा नरेंद्र मोदी सरकार की कॉर्पोरेट पक्षीय नीतियों के खिलाफ अथक संघर्ष किये जा रहे हैं। 26 नवंबर, 2020 को मजदूर और किसान आम हड़ताल व ग्रामीण बंद का आयोजन करेंगे। 26-27 नवंबर 2020, को मजदूर-किसान दिल्ली में मार्च करेगे साथ ही सभी राज्यों में भी कृषि अधिनियमों और श्रम संहिता को वापस लिए जाने की मांग की जाएगीं। भविष्य में यह संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक कि कॉर्पोरेट पूंजी के शोषण के खिलाफ मजदूरों और किसानों के अधिकारों को जीत नहीं लिया जाता।हम मांग करते हैं – तीनों कृषि अधिनियमों व चारों श्रम संहिताओं को निरस्त किया जाए और राज्य व केंद्र सरकारे सहकारी कृषि एवं औद्योगिक संबंधों के लिए कानून बनाए, जिस से न्यूनतम मजदूरी, लाभकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य और रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा के अधिकार को सुनिश्चित किया जा सके।

अखिल भारतीय किसान सभा- देश के किसानों के सबसे बड़े आंदोलन और अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के 250 से भी अधिक किसान संगठनों द्वारा समस्त जनता से कॉर्पोरेट पूंजी के खिलाफ संघर्ष का समर्थन करने और मेहनतकश जनता की जीत सुनिश्चित करने के लिए आगे आने की अपील करती है।।

Website Editor :- Neha Kumari

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