महान स्वतंत्रता सेनानी, तिलकामांझी की 235 वी शहादत दिवस पर दी गई भावभीनी श्रद्धांजलि! 

 

जेटी न्यूज।

 

बेतिया/पश्चिम चम्पारण:- अमर शहीद तिलका मांझी के 235 वी शहादत दिवस पर सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया !जिसमें विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों, बुद्धिजीवियों एवं छात्र- छात्राओं ने भाग लिया! इस अवसर पर, अंतरराष्ट्रीय पीस एंबेस्डर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन, डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता ने महान स्वतंत्रता सेनानी तिलकामांझी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि आज ही के दिन आज से 235 वर्ष पूर्व 13 जनवरी 1785 को शहादत पाई! उनका सारा जीवन मातृभूमि की स्वाधीनता, जल, जमीन, जंगल एवं पर्यावरण के लिए समर्पित रहा! देश की स्वाधीनता के बाद सरकार ने महान स्वतंत्रता सेनानी, तिलकामांझी के सम्मान में, तिलकामांझी विश्वविद्यालय भागलपुर की स्थापना की, तिलका मांझी के सम्मान में स्थापित, तिलकामांझी विश्वविद्यालय भागलपुर, देश- विदेश में स्वाधीनता, शिक्षा, पर्यावरण संरक्षण एवं अनेक विद्याओं को नई पीढ़ी को पहुंचा रहा है! साथी तिलकामांझी के उद्देश्य एवं लक्ष्य को पूरा कर रहा है, तिलका मांझी के आंदोलनों में संघर्षों की विस्तृत दास्तान हैं! उन्होंने स्थानीय सूदखोर, ज़मींदारों एवं अंग्रेज़ी शासकों को जीते जी कभी चैन की नींद सोने नहीं दिया, अंग्रेज़ी सेना ने एड़ी चोटी का जोर लगा लिया, लेकिन वे तिलका को नहीं पकड़ पाए। ऐसे में, उन्होंने अपनी सबसे पुरानी नीति, ‘फूट डालो और राज करो’ से काम लिया। ब्रिटिश हुक्मरानों ने उनके अपने समुदाय के लोगों को भड़काना और ललचाना शुरू कर दिया। उनका यह फ़रेब रंग लाया और तिलका के समुदाय से ही एक गद्दार ने उनके बारे में सूचना अंग्रेज़ों तक पहुंचाई।

सुचना मिलते ही, रात के अँधेरे में अंग्रेज़ सेनापति ,आयरकूट ने तिलका के ठिकाने पर हमला कर दिया, लेकिन किसी तरह वे बच निकले और उन्होंने पहाड़ियों में शरण लेकर ,अंग्रेज़ों के खिलाफ़ छापेमारी जारी रखी,ऐसे में, अंग्रेज़ों ने पहाड़ों की घेराबंदी करके उन तक पहुंचने वाली तमाम सहायता रोक दी।

इसकी वजह से तिलका मांझी को अन्न और पानी के अभाव में, पहाड़ों से निकल कर लड़ना पड़ा और एक दिन वह पकड़े गए। कहा जाता है कि तिलका मांझी को चार घोड़ों से घसीट कर भागलपुर ले जाया गया। 13 जनवरी 1785 को उन्हें एक बरगद के पेड़ से लटकाकर फांसी दे दी गई थी।

ब्रिटिश सरकार को लगा कि तिलका का ऐसा हाल देखकर कोई भी भारतीय फिर से उनके खिलाफ़ आवाज़ उठाने की कोशिश भी नहीं करेगा।

तिलका मांझी ,आदिवासियों की स्मृतियों और उनके गीतों में, हमेशा ज़िंदा रहे,अनेक गीतों तथा कविताओं में तिलका मांझी को विभिन्न रूपों में याद किया जाता है!।

Website Editor :- Neha Kumari

Related Articles

Back to top button