राष्ट्रीय स्तर की जलवायु संबंधी खतरों की आकलन रिपोर्ट जारी की जाएगी

प्रिलिम्स फैक्ट्स (29 Jun, 2020)

नई दिल्लीः देश के सभी राज्यों और जिलों की जलवायु संबंधी खतरों के विषय में राष्ट्रीय स्तर पर एक विस्तृत रिपोर्ट 17 अप्रैल, 2021 को जारी की जाएगी।

राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सक्रिय भागीदारी और सहयोग से किए गए आकलन और प्रशिक्षण तथा क्षमता निर्माण अभ्यास के ज़रिए ऐसे संवेदनशील जिलों की पहचान की गई है, जो नीति-निर्माताओं को उचित जलवायु क्रियाओं को शुरू करने में मदद करेंगे। इससे बेहतर तरीके से जलवायु परिवर्तन अनुकूलन परियोजनाएं तैयार की जा सकेंगी और उनके ज़रिए जलवायु परिवर्तन का दंश झेल रहे देश के विभिन्न समुदायों को लाभ होगा।

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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) तथा स्विस एजेंसी फॉर डेवलपमेंट एंड कोऑपरेशन के समर्थन से किए गए इस देशव्यापी अभ्यास में 24 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के कुल 94 प्रतिनिधियों ने भागीदारी की।

रिपोर्ट का शीर्षक है-क्लाइमेट वल्नरेबिलिटी एसेसमेंट फॉर एडाप्टेशन प्लानिंग इन इंडिया यूसिंग ए कॉमन फ्रेमवर्क। इस रिपोर्ट में भारत के ऐसे सबसे संवेदनशील राज्यों और जिलों की पहचान की गई है जो मौजूदा जलवायु संबंधी खतरों और संवेदनशीलता के मुख्य कारकों से जूझ रहे हैं। रिपोर्ट को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा जारी करेंगे ।

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भारत जैसे विकासशील देश में संवेदनशीलता के आकलन को उपयुक्त अनुकूलन परियोजनाओं और कार्यक्रमों को लागू करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है। हालांकि विभिन्न राज्यों और जिलों का संवेदनशीलता आकलन हमारे पास मौजूद है लेकिन, उनकी आपस में तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि इन आकलनों के लिए जिन पैमानों का इस्तेमाल किया गया है, वे अलग अलग हैं, इसलिए ये नीतिगत और प्रशासनिक स्तर पर निर्णय लेने की क्षमता को सीमित करते हैं।

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इस ज़रूरत को ध्यान में रखते हुए डीएसटी और एसडीसी ने हिमालयी क्षेत्र के संवेदनशीलता आकलन के लिए एक समान प्रारूप बनाने का समर्थन किया। यह जलवायु परिवर्तन संबंधी अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की पांचवीं मूल्यांकन रिपोर्ट (एआर 5) पर आधारित था। इस समान प्रारूप और इसे लागू करने के लिए ज़रूरी मैनुअल को आईआईटी मंडी, आईआईटी गुवाहाटी और भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु ने तैयार किया। इस प्रारूप को भारतीय हिमालयी क्षेत्र के सभी 12 राज्यों (अविभाजित जम्मू-कश्मीर समेत) में क्षमता निर्माण प्रक्रिया के जरिए लागू किया गया ।

इस दिशा में किए गए प्रयासों के नतीजे हिमालयी राज्यों के साथ बांटे गए जिसके कई सकारात्मक परिणाम सामने आए जैसे कि इनमें से कई राज्यों ने पहले से ही संवेदनशीलता मूल्यांकन आधारित जलवायु परिवर्तन अनुकूलन कार्यों को प्राथमिकता दी है और उन्हें लागू भी कर चुके हैं।

राज्यों से मिली सकारात्मक प्रतिक्रिया और हिमालयी राज्यों में इनके लागू होने की उपयोगिता को देखते हुए यह निर्णय किया गया कि राज्यों की क्षमता निर्माण के जरिए पूरे देश के लिए एक जलवायु संवेदनशीलता आकलन अभ्यास शुरू किया जाए।

यह कार्य उसी दल को सौंपा गया जिसने देश की राज्य सरकारों के लिए संवेदनशीलता आकलन क्षमता निर्माण के वास्ते प्रशिक्षण कार्यशालाओं की एक पूरी श्रृंखला चलाई थी।

जलवायु परिवर्तन संबंधी राष्ट्रीय कार्य योजना के हिस्से के तौर पर डीएसटी अब तक जलवायु परिवर्तन पर दो राष्ट्रीय मिशन लागू कर चुका है, ये हैं हिमालय क्षेत्र की पारिस्थितिकी को टिकाऊ बनाने का राष्ट्रीय मिशन (एनएमएसएचई) और जलवायु परिवर्तन संबंधी रणनीतिक जानकारी जुटाने का राष्ट्रीय मिशन (एनएमएसकेसीसी)। इन दोनों मिशन के तहत डीएसटी 25 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में राज्य जलवायु परिवर्तन प्रकोष्ठों को समर्थन दे रहा है। राज्यों के इन जलवायु परिवर्तन प्रकोष्ठों पर अन्य कामों के अलावा प्रारंभिक रूप से जलवायु परिवर्तन के कारण जिला और उप जिला स्तर पर आ रही संवेदनशीलता का आकलन करने की जिम्मेदारी है और राष्ट्रीय स्तर पर संवेदनशीलता के आकलन का काम इसी का विस्तार है।

 

(साभारः पीआईबी)

संपादिकृतः ठाकुर वरूण कुमार 

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