भारत और जापान के विशेषज्ञों ने हाइड्रोजन आधारित प्रौद्योगिकी में नवाचार के लिए साझेदारी हेतु विचार-विमर्श किया

भारत और जापान के विशेषज्ञों ने हाइड्रोजन आधारित प्रौद्योगिकी में नवाचार के लिए साझेदारी हेतु विचार-विमर्श किया

भारत और जापान के विशेषज्ञों ने डी-कार्बनाइजेशन: हाइड्रोजन की संभावनाओं और नवाचार प्रौद्योगिकी पर एक वेबिनार में हाइड्रोजन आधारित प्रौद्योगिकी और इससे संबंधित नवाचार, रुझान, समस्याओं तथा समाधान आदि साझेदारी वाले क्षेत्रों में संभावनाओं का पता लगाने हेतु विचार-विमर्श किया।

आईआईटी, बॉम्बे में ऊर्जा विज्ञान एवं अभियांत्रिकी विभाग में प्रोफ़ेसर रंजन बनर्जी ने भारत और जापान के लिए हाइड्रोजन से जुड़ी महत्वपूर्ण चुनौतियों में-अनुसंधान की लागत में कमी लाना, ईंधन सेल का क्षमता वर्धन, हाइड्रोजन भंडारण, व्यवहार्य ग्रीनहाइड्रोजन का प्रसंस्करण और इसके वाणिज्यिकरण हेतु मदद के लिए अनुसंधान संबंधी बुनियादी ढांचे में महत्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता शामिल है।

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जापान का हिरोशिमा विश्वविद्यालय

जापान के हिरोशिमा विश्वविद्यालय में बुनियादी अनुसंधान एवं विकास के राष्ट्रीय विज्ञान केंद्र में वरिष्ठ प्रोफेसर कोजिमा योषित्सुगु ने कहा कि अमोनिया संभावित हाइड्रोजन कैरियर हो सकता है क्योंकि इसकी हाइड्रोजन डेंसिटी उच्च होती है। अमोनिया को सीधे प्रज्वलित किया जाना संभव है वह भी बिना कार्बन डाई  ऑक्साइड के उत्सर्जन के। उन्होंने आगे कहा कि अमोनिया के जलने पर निकलने वाली ऊष्मा तरल हाइड्रोजन की तुलना में 1.3 गुना अधिक होती है।

इस वेबिनार का आयोजन जापान में भारतीय दूतावास और भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग तथा जापान के वैश्विक पर्यावरण रणनीतिक संस्थान (आईजीईएस) और भारत के ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान (टीईआरआई) द्वारा 19 अप्रैल, 2021 को संयुक्त रूप से किया गया। यह आयोजन एक ऐसा मंच था जिसमें वक्ताओं ने हालिया अनुसन्धानों, रुझानों, चिंताओं के साथ-साथ व्यावहारिक चुनौतियों से निपटने के लिए उपायों पर अपने विचार रखे।

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जापान का टोक्यो विश्वविद्यालय

जापान के टोक्यो विश्वविद्यालय में आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी अनुसंधान केंद्र के सुगियामा मसाकाज़ू ने हानिकारक डी-कार्बनाईजेशन के लिए नवीकरणीय हाइड्रोजन के बारे में अपने विचार प्रकट किए। 

हाइड्रोजन की क्षमता बहुत अधिक होती है और इससे हानिकारक गैसों का उत्सर्जन लगभग शून्य है। आईजीईएस में जलवायु और ऊर्जा के शोध प्रबन्धक श्री नंदकुमार जनार्दन ने कहा कि ग्रीन हाइड्रोजन औद्योगिक प्रसंस्करण, रसायनों के उत्पादन, लौह एवं इस्पात, खाद्य एवं सेमीकंडक्टर्स तथा शोधन संयंत्रों के क्षेत्र में इस्तेमाल के लिए अच्छा विकल्प होगा। उन्होंने कहा कि पेट्रोलियम उत्पादों पर निर्भरता को कम करने के लिए ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में साथ मिलकर नवाचार को बढ़ावा देने की संभावनाओं का पता लगाना चाहिए।

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भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास में रसायन अभियांत्रिकी विभाग में प्रोफेसर डॉ रघुराम चेट्टी

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास में रसायन अभियांत्रिकी विभाग में प्रोफेसर डॉ रघुराम चेट्टी ने कहा कि आईआईडी मद्रास शोध पार्क, उद्योग क्षेत्र की साझेदारी से शोध एवं अनुसंधान (आर एंड डी) को बढ़ावा देता है, जो नई संभावनाओं के विकास तथा आर्थिक प्रगति को प्रोत्साहन देता है। उन्होंने ईंधन सेल्स के इस्तेमाल में चुनौतियों पर चर्चा की जिसमें हाइड्रोजन ईंधन बुनियादी ढांचे की अनुपलब्धता और हाइड्रोजन का भंडारण तथा इसके परिवहन से जुड़ी चुनौतियाँ शामिल हैं।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बैंगलोर के एस दासप्पा ने बायोमास समेत विभिन्न श्रोतों से हाइड्रोजन के उत्पादन से लेकर इसके उपयोग, भंडारण, और वितरण आदि महत्वपूर्ण मुद्दों को रेखांकित किया, जो कि ग्रीन हाइड्रोजन के लिए एक टिकाऊ व्यवस्था होगी।

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जापान का तोहोकू विश्वविद्यालय

तोहोकू विश्वविद्यालय में शोध संस्थान के प्रोफेसर तात्सुओकी कोनो ने कहा कि हाइड्रोजन गैस एक ऐसा ईंधन है जिसमें व्यापक क्षमताएं हैं। लेकिन इसकी उच्च प्रज्वलन क्षमता के कारण इसका सुरक्षित ढंग से प्रबंधन महत्वपूर्ण मुद्दा है। उन्होंने कहा कि हाइड्रोजन गैस, हाइड्रोजन ऊर्जा तंत्र का सबसे अधिक लाभकारी पक्ष है जिसका उत्पादन नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से होता है ना कि जीवाश्म ईंधन से। इसका भंडारण सुरक्षित ढंग से किया जाता है, और यह एक ऐसा ऊर्जा स्रोत है जो न सिर्फ पारंपरिक ऊर्जा की तुलना में स्वच्छ है बल्कि सौर ऊर्जा के समान यह कभी खत्म न होने वाले ऊर्जा स्रोतों पर निर्भर होगा।

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बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) आईआईटी

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) आईआईटी में यांत्रिक अभियांत्रिकी विभाग के ऊर्जा संसाधन और विकास उत्कृष्टता केंद्र के संस्थापक समन्वयक प्रोफेसर शैलेंद्र शुक्ल ने कहा कि भारत में हाइड्रोजन की मांग में बहुत तेजी से वृद्धि की प्रबल संभावनाएं हैं। उन्होंने कहा कि ग्रीन हाइड्रोजन अधिकतम 2030 तक जीवाश्म ईंधन से प्रतिस्पर्धात्मक कीमत के स्तर पर उत्पादित होने लगेगी। उन्होंने यह भी कहा कि हाइड्रोजन को सबसे उन क्षेत्रों के लिए लक्षित किया जाना चाहिए जिन क्षेत्रों में सीधे विद्युतीकरण की व्यवस्था उपलब्ध नहीं है।

जापान की ऊर्जा अर्थशास्त्र संस्थान में विद्युत ऊर्जा उद्योग और नवीन तथा नवीकरणीय ऊर्जा इकाई में प्रबन्धक शिबाता योशियाकी ने ग्रीन हाइड्रोजन और सिस्टम की ऊर्जा के एकीकरण के महत्व पर ज़ोर दिया।

राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम (एनटीपीसी) के मोहित भार्गव ने कहा कि ग्रीन हाइड्रोजन आने वाले समय में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। उन्होंने बताया कि एनटीपीसी उर्वरक निर्माताओं/ शोधन संयंत्रों/ लंबी दूरी के लिए भारी माल ढुलाई, गैस ग्रिड में इसके मिश्रण और ऊर्जा भंडारण इत्यादि क्षेत्रों में पारंपरिक ऊर्जा के स्थान पर ग्रीन हाइड्रोजन/ ग्रीन अमोनिया/ ग्रीन मेथनोल इत्यादि का इस्तेमाल शुरू करने के लिए प्रयास कर रहा है।

विशेषज्ञों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि हाइड्रोजन अपनी अधिक क्षमता और कम उत्सर्जन के चलते एक अच्छा विकल्प हो सकता है इसलिए भारत-जापान के समूहों के बीच साझेदारी की संभावनाओं का पता लगाया जाना चाहिए।

(साभारः पीआईबी)

संपादिकृतः ठाकुर वरूण कुमार  

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