चुनावी बांड घोटाला : एसआईटी की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर

चुनावी बांड घोटाला : एसआईटी की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर

जे टी न्यूज़, दिल्ली : चुनावी बांड घोटाले में अदालत की निगरानी में SIT के गठन के लिए कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (CPL) द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक पाचिका दायर की गई है। सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद चुनावी बांड का डाटा जो सार्वजनिक किया गया, उस से संकेत मिलता है की बॉन्ड्स के माध्यम से बड़े पैमाने पर संभावित लेन-देन (quid pro qu०) कंपनियों और राजनीतक दलों द्वारा किया गया। डेटा से पता बलता है कि जिन कंपनियों को बड़ी परियोजनाएँ मिलीं, उन्होंने परियोजनाएँ प्राप्त करने के करीब सत्तारूढ़ दलों को बांड के माध्यम से बड़ी रकम दान की। संभावित रिश्वत के अलावा, डेटा यह सूझता है कि चुनावी बांड के माध्यम से दान देने वाली कंपनियों पर विनियामक निष्क्रियता और घाटे में चल रही और राजनीतिक दलों को धन दान करने वाली शेल कंपनियों के साथ संभावित मनी लॉन्ड्रिग का खुलासा करता है। इसके अलावा, डेटा संभावित जबरन वसूली के मामलों को उजागर करता है, जिसमें प्रवर्तन निदेशालय (ED), CBI और IT विभाग जैसी एजेंसियां शामिल हैं। चुनावी बांड घोटाला संभवतः देश का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार घोटाला है, जिसकी एक स्वतंत्र संस्था द्वारा गहन जांच की आवश्यकता है।

15 फरवरी, 2024 को एक ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना (electoral bonds) को असंवैधानिक करार दिया और चुनावी बॉन्ड की आगे की बिक्री पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि चुनावी बॉन्ड संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत मतदाता के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करते हैं। सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने चुनावी बॉन्ड लाने के लिए विभिन्न कानूनों में किए गए संशोधनों को भी रद्द कर दिया। चुनावी बॉन्ड के माध्यम से पार्टियों द्वारा प्राप्त दान को रिपोर्टिंग आवश्यकताओं से छूट देकर दानकर्ता को पूर्ण गुमनामी में रहने की अनुमति देने के लिए जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, कंपनी अधिनियम और आयकर अधिनियम में बदलाव किए गए। कंपनी अधिनियम में संशोधन ने उस खंड को भी हटा दिया जो कंपनियों को पिछले तीन वित्तीय वर्ष में औसतन पूर्ण लाभ का केवल 7.5% दान करने की अनुमति देता था। आरबीआई (RBI) और चुनाव आयोग सहित विभिन्न प्राधिकरणों ने इस योजना के खतरों को उजागर करते हुए कहा कि इससे पारदर्शिता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, सिस्टम में मनी लॉन्ड्रिग और काले धन में वृद्धि होगी और शेल (shell) कंपनियों के माध्यम से फंडिंग को भी बढ़ावा मिलेगा। आरटीआई (RTI) अधिनियम के तहत प्राप्त योजना पर पत्राचार और विचार-विमर्श से पता चला कि सरकार ने इन चिंताओं को नजरअंदाज कर दिया और यह दावा करते हुए-योजना की आगे बढ़ाया कि दाता की गुमनामी सुनिश्चित करने और बैंकिंग चैनलों के माध्यम से बॉन्ड की खरीद से राजनीतिक दलों के वित्तपोषण में काले धन पर अंकुश लगेगा। अदालत ने इन तर्कों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि चुनावी बॉन्ड ट्रेड किया जा सकता है और मूल खरीदार अंतिम योगदानकर्ता न होने की आशंका है क्योंकि योजना में इस तरह के ट्रेड को रोकने के लिए कोई कोई उपाय नहीं है।

अपने ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने बेचे और भुनाए गए सभी बॉन्ड के विवरण का खुलासा करने का निर्देश दिया। जनता से महत्वपूर्ण जानकारी का खुलासा करने में देरी करने की एसबीआई (SBI) की कोशिश को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। अंततः, 12 अप्रैल, 2019 के बाद से खरीदे और भुनाए गए सभी चुनावी बॉन्ड का विवरण सार्वजनिक कर दिया गया, जिसमें ऐसा बॉन्ड नंबर भी शामिल था, जो बॉन्ड भुनाने वाले दलों के दानदाताओं की ट्रैकिंग और मिलान को सक्षम बनाता है। सामने आए आंकड़ों से पता चलता है कि कॉर्पोरेट समूहों, कंपनियों और व्यक्तियों द्वारा ₹12,155.1 करोड़ मूल्य के चुनावी बॉन्ड खरीदे गए और इसी अवधि के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा कुल ₹12,769.08 करोड़ मूल्य के चुनावी बॉन्ड भुनाए गए। भाजपा चुनावी बॉन्ड की सबसे बड़ी लाभार्थी थी, जिसका मूल्य ₹6,060 करोड़ था, जो भुनाए गए चुनावी बॉन्ड की कुल राशि का 47% से अधिक है।1. जबरन वसूली को सक्षम बनाना? कई कंपनियां जो ईडी (ED), सीबीआई (CBI) और आईटी विभाग (IT Department) के जांच के दायरे में थी. उन्होंने चुनावी बॉन्ड खरीदे और इसका एक महत्वपूर्ण हिस्से को केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा ने भुना लिया जो इन एजेंसियों पर प्रभाव और नियंत्रण रखती है।। राज्य एजेंसियों द्वारा कार्रवाई और उस राज्य में सत्ता में पार्टी को दान देने के भी इसी तरह के उदाहरण पाए गए हैं। मीडिया द्वारा कुछ उदाहरण रिपोर्ट किए गए-

हैदराबाद स्थित व्यवसायी सरथ रेड्डी अरबिंदो फार्मा लिमिटेड के निदेशकों में से एक हैं। उन्हें 10 नवंबर, 2022 को शराब घोटाला मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तार किया था। उनकी कंपनी अरबिंदो फार्मा ने 15 नवंबर को 5 करोड़ रुपये के चुनावी बांड खरीदे थे और बीजेपी को दिए। मई 2023 में जब रेड्डी की जमानत याचिका सुनवाई के लिए आई तो प्रवर्तन निदेशालय ने इसका विरोध नहीं किया. जेल से रिहा होने के बाद, रेड्डी जून, 2023 में मामले में सरकारी गवाह बन गए। 8 नवंबर, 2023 को अरबिंदो फार्मा ने बांड के माध्यम से भाजपा को 25 करोड़ रुपये का दान दिया, और उसी दिन अन्य 25 करोड़ रुपये दो कंपनियों- यूजिया फार्मा स्पेशलिटीज लिमिटेड (15 करोड़ रुपये) और एपीएल हेल्थकेयर (10 करोड़ रुपये) के माध्यम से किया गया, जो कि अरबिंदो फार्मा की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है। रेड्डी का बयान उन सबूतों का हिस्सा है जिनका इस्तेमाल कथित शराब घोटाला मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी को सही ठहराने

के लिए किया जा रहा है। कोलकाता स्थित आईएफबी एग्रो इंडस्ट्रीज के चुनावी बांड दान से कॉर्पोरेट योगदान पर कर/नियामक मुद्दों के प्रभाव का पता चलता है। आईएफबी एग्रो इंडस्ट्रीज, जिसने 92 करोड़ रुपये के बांड खरीदे तृणमूल कांग्रेस को 42 करोड़ रुपये मिले ने 1 अप्रैल, 2022 को स्टॉक एक्सचेंज फाइलिंग में कहा कि बोर्ड ने “कंपनी और उसके सभी हितधारकों के सर्वोत्तम हित में राजनीतिक योगदान को मंजूरी देने का फैसला किया है। जुलाई 2023 में अपने एजीएम में कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि चुनावी बांड का भुगतान “सरकार के निर्देशों के

अनुसार किया गया था।

2. संभावित लाभ के एवज में की गई व्यवस्थाएं (Quid pro quo)? चुनावी बांड की खरीद के तिथि के नज़दीक ही कई कंपनियों को बड़े ठेके दिए गए। चुनावी बांड घोटाले को भारत में अब तक का सबसे बड़ा घोटाला कहा जा रहा है, और शायद दुनिया में भी चुनावी बांड के Quid pro quo में लाखों करोड़ रुपये के ठेके/परियोजनाएं दिए गए. चुनावी बांड से दिए गए पैसे केवल रिश्वत या kickbacks का प्रतिनिधित्व करता है।

कुछ Openingइंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में पाया गया कि मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड, जो चुनावी बांड के माध्यम से दूसरा सबसे बड़ा दानकर्ता है, ने चुनावी बांड के माध्यम से कुल 966 करोड़ रुपये का दान दिया, जिसमें से लगभग 60 प्रतिशत भाजपा को मिला। कंपनी ने अप्रैल 2023 में 140 करोड़ रुपये के चुनावी बांड खरीदे, जिनमें से 115 करोड़ रुपये भाजपा द्वारा भुनाए गए इस से एक महीने पहले कंपनी को मुंबई में 14,400 करोड़ रुपये की सुरंग परियोजना सौंपी गई थी।

स्क्रॉल की एक जांच में पाया गया कि भारती समूह का भाजपा को 150 करोड़ रुपये का बांड दान मोदी सरकार के दूरसंचार यू-टर्न के साथ मेल खाता है. नीलामी की आवश्यकता को दूर करते हुए, एक प्रशासनिक आदेश के माध्यम से सैटेलाइट स्पेक्ट्रम आवंटित करने की अनुमति देने का प्रावधान टेलीकॉम बिल में लाया गया जिसको की जल्दबाज़ी में संसद में पारित कराया गया। सरकर ने नीलामी से दूर जाने के लिए न्यायिक मंजूरी की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक संदर्भ भी दायर किया।

स्क्रॉल ने यह भी बताया कि कोटक समूह की एक फर्म ने चुनावी बांड के माध्यम से भाजपा को कुल 60 करोड़ रुपये का दान दिया, जो कोटक महिंद्रा बैंक पर आरबीआई के महत्वपूर्ण निर्णयों के साथ मेल खाता है। कोटक समूह की फर्म, इनफिना फाइनेंस प्राइवेट लिमिटेड ने अप्रैल 2021 में सत्तारूढ़ पार्टी को 25 करोड़ रुपये का दान दिया – रिजर्व बैंक द्वारा नए दिशानिर्देशों की घोषणा से तीन सप्ताह से भी कम समय पहले, जिसने उदय

Related Articles

Back to top button