?विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष?

रामगढ़वा पू च -: इस बार लॉकडाउन में जीवन की रफ्तार थोड़ी धीमी तो हुई है, लेकिन हमें अपने आसपास प्रकृति की समृद्ध विविधता को देखने का अवसर भी मिला है। 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस है ! पर्यावरण सीधा हमारे जीवन से जुड़ा है। इस पर्यावरण दिवस पर कुछ ऐसा संकल्प अवश्य लें कि प्रकृति के साथ हमारा रिश्ता और गहरा हो! पर्यावरण खतरे में है! जंगल लुप्त हो रहे हैं! कीट -पतंगे, पशु-पक्षी, जलवायु और प्राकृतिक सौंदर्य की नैसर्गिक दृश्यावालियां…हम कुछ भी तो नहीं सहेज पा रहे हैं! उक्त बातें समाजसेवी रजनीश प्रियदर्शी ने प्रेस वार्ता के दौरान शुक्रवार को कही। साथ ही उन्होंने कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि प्रकृति के सामने किसी की भी कोई हैसियत नहीं है, अपने प्रकोप से गाहे-बगाहे वह हमें इशारा भी करती है! इन सब सारी बातों के जानने और समझने के बाद भी विकास के नाम पर प्रकृति से छेड़छाड़ करना छुटता नहीं! फलस्वरूप हम प्राकृतिक आपदा, बाढ़, सुखा का तांडव को भुगतना पड़ रहा है! बीते चन्द महीनों से समूची दुनिया कोरोना महामारी से जंग लड़ रही है तथा इस महामारी की चपेट में कई लाख लोग संक्रमित हैं तथा भारी संख्या में लोग काल के गाल में समा गये हैं ! साथ ही लगातार चक्रवाती तूफान एवं भारी बारिश की विनाशलीला से भूस्खलन एवं जानमाल का भारी नुकसान की खबरें हमें डरा रही हैं !विश्व पर्यावरण दिवस’पर इस साल का थीम इकोसिस्टम रिस्टोरेशन ( Ecosystem Restoration) यानि कि परिस्थितिकी तंत्र की बहाली है ! आज इस बात में तनिक संशय नहीं है कि पर्यावरण अंतर्राष्ट्रीय चिंता का विषय बन चुका है! जलवायु परिवर्तन भी अंतर्राष्ट्रीय जगत में बहस का गंभीर विषय है! गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन से विश्व के सभी देश प्रभावित हैं! ग्लोबल वार्मिंग के चलते पर्यावरण ही नहीं, बल्कि राजनीति, अर्थव्यवस्था और कृषि उत्पादन के साथ आम जनजीवन पर भी पड़ा है! हमारे देश में भी पर्यावरण लेकर हम संजीदा नहीं है! नतीजतन देश कई तरह के खतरों से जुझ रहा है! पहाड़, नदियाँ, जंगल बेतरतीब विकास की कीमत चुका रहें है! नदियाँ एवं पेड़ -पौधे जिन्हें हम सदैव पूजते आ रहे हैं, हम उनके अस्तित्व मिटाने पर तुले हैं! पहाड़ों का क्षरण, अंधाधुंध कटते वन और अदूरदर्शिता से बने बाँधों ने सदियों से चले आ रहे प्राकृतिक संतुलन को इस कदर बिगाड़ा है कि कहीं बाढ़ तो कहीं सुखा के हालात पैदा हो गये है! पेयजल का गंभीर संकट खड़ा हो गया है! सरकारी स्तर पर जो कदम इस संकट से निपटने के लिए किया जा रहा है नाकाफी है! आम लोगों का भी नजरिया सकारात्मक नहीं है! आज आधुनिकता एवं विकास के नाम पर तमाम प्राकृतिक संसाधनों से छेड़छाड़ और परंपरागत जल स्त्रोतों की अनदेखी करने वालों में हम सभी आगे हैं! देश की तमाम छोटी -बड़ी नदियाँ प्रदुषित हो गयी हैं! आज देश के प्रत्येक शहर कम या ज्यादा प्रदूषण के शिकार हैं! वर्तमान स्थिति देख यही अनुमान लगाया जा सकता है कि हमें आने वाले समय की भयावहता का अंदाजा नहीं है तथा हम कुछ भी सीखने को तैयार नहीं है! हमारा यह रवैया हमारे लिए ही घातक है! वक्त का तकाज़ा है कि हम विश्व पर्यावरण दिवस पर यह संकल्प लें कि पर्यावरण संतुलन बनाये रखने में हम हर संभव प्रयास करेंगे वरना आने वाली हमारी नयी पीढ़ी कभी हमें कभी माफ नहीं करेगी! उम्मीद है इस कोरोना काल में हम सभी पर्यावरण को लेकर आत्मचिंतन करें तथा इसके संवर्धन के लिए संकल्पबद्ध हों नहीं तो आने वाला समय हमारे लिए और अधिक मुश्किल होगा .

Edited By :- savita maurya

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