विश्वकर्मा जयंती, विश्वकर्मा पूजा दिव्य वास्तुकार कब , कहा और क्यों मनाई जाती है।

जे टी न्यूज़
विश्वकर्मा जयन्ती भारत के कर्नाटक, असम, पश्चिमी बंगाल, बिहार, झारखण्ड, ओडिशा और त्रिपुरा आदि प्रदेशों में यह आम तौर पर हर साल 17 सितंबर की तिथि को मनायी जाती है। यह उत्सव प्रायः कारखानों एवं औद्योगिक क्षेत्रों में मनाया जाता है। विश्वकर्मा को विश्व का निर्माता तथा देवताओं का वास्तुकार माना गया है। यह हिंदू कैलेंडर की ‘कन्या संक्रांति’ पर पड़ता है। त्योहार मुख्य रूप से कारखानों और औद्योगिक क्षेत्रों में मनाया जाता है, अक्सर दुकान के फर्श पर न केवल अभियन्ता और वास्तु समुदाय द्वारा बल्कि कारीगरों, शिल्पकारों, यांत्रिकी, स्मिथ, वेल्डर, द्वारा पूजा के दिन को श्रद्धापूर्वक चिह्नित किया जाता है। औद्योगिक श्रमिकों, कारखाने के श्रमिकों और अन्य। वे बेहतर भविष्य, सुरक्षित कामकाजी परिस्थितियों और सबसे बढ़कर, अपने-अपने क्षेत्र में सफलता के लिए प्रार्थना करते हैं। श्रमिक विभिन्न मशीनों के सुचारू संचालन के लिए भी प्रार्थना करते हैं।

विश्वकर्मा जयंती, विश्वकर्मा, एक हिंदू भगवान, दिव्य वास्तुकार के लिए उत्सव का दिन है। उन्हें स्वायंभु और विश्व का निर्माता माना जाता है।उन्होंने द्वारका के पवित्र शहर का निर्माण किया जहां कृष्ण ने शासन किया, पांडवों की माया सभा, और देवताओं के लिए कई शानदार हथियारों के निर्माता थे। उन्हें लुहार कहा जाता है, ऋग्वेद में उल्लेख किया गया है, और इसे यांत्रिकी और वास्तुकला के विज्ञान, स्टैप्टा वेद के साथ श्रेय दिया जाता है। विश्वकर्मा की विशेष प्रतिमाएँ और चित्र सामान्यतः प्रत्येक कार्यस्थल और कारखाने में स्थापित किए जाते हैं।सभी कार्यकर्ता एक आम जगह पर इकट्ठा होते हैं और पूजा करते हैं। विश्वकर्मा पूजा के तीसरे दिन हर्षोल्लास के साथ सभी लोग विश्वकर्मा जी की प्रतिमा विसर्जित करते हैं।

दुनिया के अरबो मजदूरों-किसानों, कामगारों-मेहनतकशों की अदम्य साहस खून और पसीने की एक एक बूँद से सृजित है यह खूबसूरत दुनियां, ऊंचे-ऊँचे महल अट्टालिका, राजाओं का वैभवशाली किला, मीनारें, सड़क, पूल, गाड़ियां, सज़ावाट के सामान, खिलौने, कपडे, लहलहाती फसल और मेज पर सजा हुआ व्यंजन, जीवानोपयोगी हर एक कृत्रिम वस्तु यह सब कुछ मजदूरों के श्रम से सृजित हुआ है. ये चकाचौंध करती झिलमिल आलिशान दुनिया में इठलाते-इतराते धनपशु मेहनतकशों की रहमो करम पर अपनी सल्तनत का गुमान पाल रहे हैं. हे मेहनतकशों तुम्हारे हाथों में वो जादू है जो किसी निर्जीव लकड़ी पर पड़ जाए तो उसे मूल्यवान फर्नीचर में बदल दे, लोहे के टुकड़ों पर पड़ जाए तो उसे महँगी गाड़ियों में बदल दे।

इन्हीं हाथों से तुमने हजारों वर्षों में दुनियां का रंग रोदन किया है, खून का एक एक कतरा मिला है ,श्रम से गिरता पसीने की बूँद में और जज्ब हुआ है इस धरती की पवित्र मिट्टी में, वहां से सृजित हुआ नवजीवन का कोपल, तुमने ही प्रकृति से हमें सिखाया है जीवन में रंग भरना और रंग दिया है तुमने प्रेम रंग में इस जहाँ को पूंजी के गुलामों ने मानो समझ लिया कि ये सृष्टिकारी रंगशिल्पी महज गुलामों की पैदाइश है, जिन्हें मोटे मोटे जंजीरों में जकड़कर अपने मुताबिक अपनी वैभवशाली कायनात का निर्माण करेंगे, और सच ही कर तो रहे हैं! हे सृष्टिकारी कामगारों-किसानों तुम बेहतरीन चित्रकार , कलाकार, शिल्पकार, कवि, नाटककार आदि आदि सब कुछ हो, पर तुम्हारे पांव के छाले-हाथों की लकीरों पर बड़े-बड़े गहरे निशान-फटे, पुराने चीथड़े में लपेटा हुआ यह अभाव में दिखता यह शरीर बार -बार यह कह रहा कि आज मुट्ठी भर धनपशुओं ने तुम्हें गुलाम बना रखा है…हां सच! तुम्हीं विश्वकर्मा हो जिसे बांधकर घसीटते हुए लाया गया है कि देखो आज विश्वकर्मा पूजा है।

नए-नए कपड़े चन्दन टिका पुजा-अर्चना, मंगल-आरती, मिठाई का भोग लगेगा….पर कल फिर तुम्हें घसीटते हुए ले जाया जाएगा कि खटो अब तुम्हारी यही औकात है। तपती दोपहरी में कंक्रीट के जंगलों को श्रम की असीमित क्षमता जब अपने घायल आँखों से निहारे तो अपने टूटी-फूटी झोपड़ियों, जिंदगी, कुरूप-विद्रूप सामाजिक-आर्थिक हालात पर रोना न आये बल्कि यह ताकत दे कि इन्हीं हथौड़ों से हम अपना हक भी पा के रहेंगे। महान प्रकृति के वंशजों ये जो तुम्हारे हाथों में जो हथौड़ा, हंसिया, मशीनें, हल, ट्रैक्टर है ये चित्र बनाने की कूची है उसमें रंग भर लो लाल रंग और रंग दो फैक्टरियों, सड़कों, महलों, पहाड़ों, नदियों, झरनों, तालाबों, धरती को.हर तरफ से लाल रंग
सूरज की किरणों से भोर की लाली बिखेर दे, पूरी दुनिया में – “हे सृष्टि के सृष्टिकारी मेहनतकशों तुम्हीं इस सृष्टि के शिल्पकार हो। तुम्हारे हथौड़े की चोट से पूंजीवादी खण्डहर पर समाजवाद का सृजन होगा!”

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