कामरेड ज्योति बसु की मनाई गई 108वीं जयंती

कामरेड ज्योति बसु की मनाई गई 108वीं जयंती


जे टी न्यूज़/कुलानंद यादव

सहरसा: आज विश्व के महान वामपंथी नेता कामरेड ज्योति बसु की 108वीं जयंती है। वह एक कुशल राजनीतिज्ञ, योग्य प्रशासक, सुधारवादी और अनेक मामलों में नजीर पेश करने वाले वामपंथी नेता थे।
मई 1996 का दूसरा हफ्ता था। लोकसभा के नतीजे आ चुके थे। बीजेपी को 162 और कांग्रेस को 136 सीटों पर जीत मिली थी। जनता दल 46, सीपीएम 32, तमिल मनीला कांग्रेस 20, द्रमुक 17, सपा 17, तेलगूदेशम 17 सीटों पर थे. इसके अलावा सीपीआई 12, बसपा 11, समता पार्टी 08, अकाली दल 08 और असम गण परिषद को 05 सीटें मिलीं थीं। हरकिशन सिंह सुरजीत तीसरे मोर्चे के सूत्रधार बनकर उभरे थे। वीपी सिंह ने फिर प्रधानमंत्री बनने से साफ मना कर दिया था। तीसरे मोर्चे मे प्रधानमंत्री पद के लिए ऐसे दावेदार की तलाश थी, जिस पर तीसरे मोर्चे की पार्टियां सहमत भी हों।

तब वीपी सिंह ने ही देश के सबसे अनुभवी नेता और मुख्यमंत्री ज्योति बसु का नाम सुझाया, जिस पर आम सहमति भी बन गई। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने अपनी पार्टी की सेन्ट्रल कमेटी की बैठक बुलाई। इस बैठक में ज्योति बसु को प्रधानमंत्री बनने के प्रस्ताव को बहुमत के आधार पर खारिज कर दिया गया। पार्टी का मानना था कि यदि ज्योति बसु प्रधानमंत्री बनते हैं, तो उन्हें ग्लोबलाइजेशन और बाजारवाद की नीतियों पर चलना होगा, जो सीपीएम को मंजूर नहीं था। बसु दा ने पार्टी निर्देश का पालन किया। उन्होंने प्रधानमंत्री का पद ठुकरा दिया था और देश में एक नया इतिहास बनते-बनते रह गया। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों ने इस फ़ैसले को माकपा की ऐतिहासिक भूल भी बताया था। आज की बाजारवादी सियासत में जब एक विधानसभा की सीट के लिए राजनेता हफ्ते भर में पार्टी बदलते हो उसके बरक्स ज्योति बसु ने भारत की राजनीति में एक मिसाल कायम की। 1977 के चुनाव में जब वाम मोर्चा को विधानसभा में पूर्ण बहुमत मिला तो ज्योति बसु बंगाल में मुख्यमंत्री पद के सर्वमान्य उम्मीदवार के तौर पर चुने गए। उन्होंने लगातार 23 साल तक सत्ता की कमान अपने हाथों में रखी। बसु दा के कार्यकाल में कई उल्लेखनीय काम हुए हैं। इनमें भूमि सुधार का काम प्रमुख रहा है, जिसके तहत जमींदारों और सरकारी कब्जे वाली जमीनों का मालिकाना हक भूमिहीन किसानों को दिया गया। पंचायती राज और भूमि सुधार को प्रभावी ढंग से लागू कर निचले स्तर तक सत्ता का विकेन्द्रीकरण किया। ज्योति बसु के कामों का लोहा उनके विपक्षी भी मानते थे। कामरेड बसु और उनसे पहले बंगाल के मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस नेता सिद्धार्थ शंकर राय के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंदिता थी, लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर दोनों के बीच रिश्ते बेहतर रहे। बांग्लादेश बनने से कुछ पहले सिद्धार्थ ने ज्योति बसु की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से उनके निवास स्थान पर एक गुप्त मुलाकात कराई थी।

 

यही नहीं बंगाल के कांग्रेसी नेता गनी खान चौधरी से भी कामरेड बसु के काफी अच्छे संबंध रहे थे। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने भी बसु के कामकाज की सराहना की थी और साल 1989 में पंचायती राज पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया था। इस कार्यक्रम में राजीव गांधी ने ज्योति बसु के काम की काफी तारीफ की थी। इतना ही नहीं समाजवादी नेताओं से लेकर दक्षिण पंथी नेता अटल बिहारी वाजपेयी और एलके आडवाणी के वैचारिक मतभेद भले ही रहे हों, लेकिन ज्योति बसु से रिश्ते बेहतर रहे हैं। विधानचंद्र राय भी बसु की भूमिका की तारीफ किया करते थे।

आजीवन ‘जस की तस धर दीनी चदरिया’ के सिद्धांत का अक्षरशः पालन करने वाले दुर्लभ राजनीतिज्ञ-
कामरेड ज्योति बसु को लाल सलाम!

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