बौद्धिजम और मार्क्सवाद ही एकमात्र रास्ता: डा. पाल

बौद्धिजम और मार्क्सवाद ही एकमात्र रास्ता: डा. पाल

 

जे. टी. न्यूज/अरुण नारायण
बहुजन दावेदारी सम्मेलन भाग:4

पटना/बिहार::”हिन्दुत्व भारत में आज दैत्याकार रूप में खड़ा है। उससे संघर्ष में कोई नहीं है। लगभग सारी पार्टियां उसके आगे पस्त हैं। राजनीतिक दलों द्वारा दावतें दी जा रही हैं इससे क्या आपको लगता है कि धर्मनिरपेक्षता को ब़ढ़ावा मिलेगा? इस तरह की प्रवृत्ति से न तो वैज्ञानिक चेतना का प्रसार होगा, न धर्म निरपेक्षता बढ़ेगी, हां धार्मिक तुष्टिकरण को बढ़ावा जरूर मिलेगा।


ये बातें पटना के चर्चित ईनटी विशेष एवं एक्टिविस्ट डा.पीएनपी पाल ने पिछले दिनों पटना के आई.एम.ए हाॅल में कहीं। सामाजिक न्याय आंदोलन बिहार की पहल पर आयोजित यह कार्यक्रम चैतरफा बढ़ते मनुवादी, सांप्रदायिक हमले व काॅरपोरेट कब्जा के खिलाफ बहुजन दावेदारी सम्मेलन के रूप में आहूत की गई थी।

बिहार सहित कई राज्यों से आये इस सम्मेलन को पत्रकार उर्मिलेश पूर्व राज्यसभा सदस्य अली अनवर अंसारी, चर्चित पत्रकार अनिल चमड़िया, आंदोलनकारी प्रो लक्ष्मण यादव, सिद्धार्थ रामू, प्रो. शिवजतन ठाकुर, वाल्मीकि प्रसाद, डाॅ. पी.एन.पी.पाल, जितेंद्र मीणा, सुमित चैहान, बलवंत यादव, राजीव यादव, अयूब राईन, विजय कुमार चौधरी, आईडी पासवान, नवीन प्रजापति, रामानंद पासवान, केदार पासवान, राजेंद्र प्रसाद, और डाॅ विलक्षण रविदास ने भी संबोधित किया।

वक्ताओं ने देशभर में बढ़ते भगवा हमले, आदिवासियों के विस्थापित होने और बहुजन राजनीति के ए टू जेड में तब्दील होने के कारणों पर गहराई से चिंतन मनन किया l

 

डाॅ. परमानंद पाल ने कहा कि धार्मिक संस्थान आज पहले से ज्यादा आक्रामक हुए हैं। एक ही रास्ता बचता है वह है मार्क्सवाद और बौद्धिज्म का । मार्क्सिज्म वस्तु से विचार की यात्रा है और बौद्धिज्म विचार से वस्तु की यात्रा है।

जब तक इन दोनों विचारों का ईमानदारीपूर्वक समझ विकसित नहीं किया जाएगा हम विकास की ओर नहीं बढ़ सकते। उन्होंने माना कि समायोजन और क्लेम जैसे शब्दों के उपयोग से यह ध्वनित होता है कि हम मांगने जा रहे हैं।

मैं उससे ऊपर की बात कह रहा हूं। मैं सामाजिक, सांस्कृतिक दावेदारी की बात कह रहा हूं। संविधान की चर्चा करते हुए डाॅक्टर पाल ने कहा कि उसमें यह कहा गया था कि भारत के जो स्टेट होंगे वे सेक्यूलर होंगे, लेकिन आज तक भारत में इसे लागू नहीं किया गया। भगत सिंह की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हमें मार्क्स की झलक उनमें नजर आती है।

आज भारत में इसकी निहायत जरूरत है। उन्होंने कहा कि हरियाणा, बिहार, उड़िसा और कर्नाटक सोशलिस्ट आंदोलन के गढ़ माने जाते थे।

आज इन राज्यों की सोशलिस्ट पार्टियां पारिवारिक और जातीय राजनीति के पतन में गर्त हो गई हैं।

वे कौन-सा प्रतीक यूज कर रहे हैं यह भी उन्हें नहीं मालूम। तमिलनाडु में स्टालिन हैं तो उनसे एक उम्मीद दिखती है इसका कारण यह है कि वहां लंबे समय तक द्रविड़ आंदोलन चला, जिसके कारण सामाजिक न्याय की शक्तियां ही सत्ता में रहीं। आज जरूरत इस बात की है कि बहुजन समाज का एक राष्ट्रीय विकल्प खड़ा किया जाए।

उन्होंने कहा कि यह दुखद है कि आर्थिक सवालों पर हमारा रूख क्या हो यह राहुल, ममता और तेजस्वी को नहीं मालूम। डाॅ. पाल ने उपस्थित लोगों से आह्वान किया कि आप कथा वाचक की परम्परा से बाहर निकलिये, उन चुनौतियों से जूझिये और महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित कीजिए।

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