माकपा नेता और कार्यकर्ता ने शहीद कामरेड अजीत सरकार का 24वां सहादत दिवस पार्टी कार्यालय सहरसा में मनाया

माकपा नेता और कार्यकर्ता ने शहीद कामरेड अजीत सरकार का 24वां सहादत दिवस पार्टी कार्यालय सहरसा में मनाया

जे टी न्यूज़/ कुलानन्द यादव

सहरसा :- माकपा के पूर्णियाँ के लोकप्रिय विधायक, गरीब और बेजुबानों की आवाज, आजीवन शोषितों और पीड़ितों के हक के लिए संघर्षरत कॉमरेड अजीत सरकार जी के पुण्यतिथि पर सादर नमन साल 1980 में पूर्णिया विधानसभा सीट से माकपा ने अपने युवा नेता अजित सरकार को उम्मीदवार बनाया था। अजित सरकार शहर के चर्चित होम्योपैथ डॉक्टर के बेटे थे। इस नेता को 107 गोलियां मारकर हत्या की गई थी। अजित सरकार का जन्म 1947 में बिहार के पूर्णिया में हुआ था। पूर्णिया और आसपास के इलाके को सीमांचल कहते हैं। क्योंकि यह इलाका नेपाल और पश्चिम बंगाल का सीमावर्ती है। सीमांचल के तहत सुपौल, अररिया, किशनगंज, सहरसा, मधेपुरा और कटिहार आते हैं। सीमांचल में कोसी नदी बहती है। इसके बाढ़ के प्रकोप के चलते यहां के लोग गुरबत की जिंदगी जीते हैं। सामंतवाद के खिलाफ थें। अजित सरकार

 

इसी जमीन पर पले बढ़े अजित सरकार के मन में बचपन से ही सामंतवाद के खिलाफ नफरत की भावना पनप गई थी। बड़े होकर अजित सरकार जुझारू मार्क्सवादी बन गए। उन्होंने जमींदारों की सीलिंग से फाजिल जमीन कब्जा कर उसे गरीबों में बांटना शुरू कर दिया। गरीब लोग अजित सरकार को अजित दा कहकर बुलाते थे।
एक रुपये के सिक्के जुटाकर करते चुनाव प्रचार
अजित सरकार का दफ्तर पूर्णिया के झंडा चौक के पास था। चुनाव लड़ने की अजित सरकार की अनोखी शैली थी। वह चुनाव प्रचार के नाम पर एक लाल गमछा विभिन्न चौंक चौराहे पर बिछाकर बाजार में बैठ जाते और आने जाने वालों को कहते कि जो हमें एक वोट दोगे वे हमें एक रूपया गमछे में सिक्का डाल दें। एक रुपये से ज्यादा डालने की किसी को भी मनाही थी। देखते ही देखते अजित सरकार के गमछे में एक रुपये के सिक्कों का ढेर लग जाते थें। अजित सरकार
अजित सरकार उन सिक्कों को लेकर घर लौटते और उनकी गिनती करते। इससे अनुमान लगा लेते की कम से कम हमें इतने वोट तो मिलेंगे ही। अजित सरकार लगातार चार बार पूर्णिया से विधायक बने। उस दौर में बिहार की राजनीति में बंदूक और संदूक का दौर था। बंदूक यानी बाहुबल और संदूक यानी धनबल। यानी जिस प्रत्याशी के पास गुन्डे और पैसे होते ही नेता सांसद या विधायक बनता था। बिहार की ऐसी राजनीति में अजित सरकार का उदय एक अनोखी घटना थी। अजित सरकार चार-चार बार विधायक बनने के बाद भी अपने लिए कोई निजी संपत्ति अर्जित नहीं की थी। वे पूर्णिया के दुर्गाबाड़ी मोहल्ले में एक किराए के मकान में रहते थे।
अजित सरकार को मारी गई थी 107 गोलियां
बताया जाता है कि उस दौर में मकान का किराया छह सौ रुपये थे। घर का खर्च अजित सरकार की पत्नी माधवी सरकार चलाती थीं। माधवी एक सरकारी स्कूल का टीचर थीं। अजित सरकार के उदय से पूरे पूर्णिया जिले के पूंजीवादी और सामंती लोग परेशान थें। 14 जून 1998 की शाम को पूर्णिया शहर के अंदर घूम रहे थे। तभी अपराधियों ने उन्हें घेर लिया। अपराधियों ने उनपर लगातार फायरिंग शुरू कर दी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पता चला कि अजित सरकार को 107 गोलियां मारी गई थी। इस निर्मम हत्या से साफ संकेत मिल रहे थें। कि अजित सरकार के प्रति अपराधियों के मन में कितना गुस्सा और नफरत थी।
भीड़ को शांत करने के लिए पहुंचे थे लालू प्रसाद यादव
अजित सरकार की हत्या के बाद पूर्णिया में हालात बेहद खराब हो गए। अजित सरकार के समर्थकों ने पूरे पूर्णिया शहर में विरोध-प्रदर्शन शुरू कर दिए। हालात खराब होते देख तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव हेलीकॉप्टर से पूर्णिया पहुंचे। भरी भीड़ में लालू प्रसाद यादव पहुंचे और लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की। लालू यादव के साथ अजित सरकार के बेटे ने अमित सरकार ने भी लोगों को शांति बनाए रखने की अपील की। भीड़ के शांत होने पर आखिरकार अजित सरकार के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया। इस हत्याकांड में आजतक फैसला नहीं आ पाया है।

देश से बाहर चले गए अजित सरकार के बेटे अजित सरकार हत्याकांड में पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव, राजन तिवारी और अनिल कुमार यादव को आरोपी बनाया गया था। इस मामले में पप्पू यादव को आठ साल जेल में भी बितानी पड़ी, लेकिन आखिरकार वे पटना हाईकोर्ट से बरी हो चुके हैं। इस हत्याकांड के बाद अजित सरकार के बेटे अमित सरकार आस्ट्रिया में पढ़ने के लिए चलें गए।
उनके 24वीं पुण्यतिथि पर माकपा सहरसा पार्टी कार्यालय में बारी बारी से पुष्पांजलि अर्पित कार अजीत सरकार अमर रहे , अजीत सर का तेरे अरमानों को मंजिल तक पहुंचाने का नारा लगा रहे थे समर्थक उपस्थित सीपीआईएम के जिला सचिव मंडल सदस्य कॉमरेड गणेश प्रसाद सुमन कुलानन्द कुमार नसीम मिस्त्री दुखी शर्मा चंद्रकला देवी मोहम्मद अजमत दिलखुश कुमार प्रमोद कुमार सोनू कुमार सहित दर्जनों कार्यकर्ता ने श्रद्धांजलि अर्पित किया।

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