बिहार पुलिस मेनुअल में अंकित पुलिस के अर्थ इस प्रकार लिखे गये हैं

समस्तीपुर : पुरूसार्थी, लि –लिपसारहित, स –साहसी, अपवादों में ये गुण दिख जाते हैँ. कुछ साहसी, गुणी, अपराध उन्मूलन को समर्पित पुलिस पदाधिकारी, वर्षों -वर्ष बीतने के बावजूद लोगों के दिलो -दिमाग में छाये रहते हैँ. जैसे कि श्री वी.नारायणन साहब, पुलिस की मीटिंग में वो बोलते थे कि जो भी एफ. आईं. आर करने आते हैँ, उनका एफ. आईं.आर करिये. किसी अधिकारी ने कहा अपराध का डाटा बढ़ जायेगा. उन्होंने कहा अपराध होगा, तो डाटा जरूर बढेगा. हमारा काम क़ानून के अनुसार अपराध नियंत्रित करना है, अपराध को छिपाना नहीं,एक उप चुनाव में पहली बार किसी आईं. पी. एस. ने पुलिस को कर्तव्य बोध कराया था. लगता था जिला की पुलिस कर्तव्यनिस्ठ हो गई है. उन्होंने पुलिस को साहसी बनाया और कहा फेयर पोल और नो पोल, ये भी कहा कि आपके कंधे पर हथियार है माथे पर शासन का शौर्य है फिर भी लुटेरे यदि बूथ लूट लें, ये मैं सुनना नहीं चाहूंगा. गोली नहीं गिनूंगा, खोखला गिनूंगा और डेड बॉडी. पहले मुझे कुछ होगा उसके बाद ही आपको कुछ होने दूंगा. किन्तु एक भी गलत लोग कहीं बूथ लूटेंगे तो आपको नहीं बक्सुंगा. आपके लिए अलग क़ानून नहीं है, जो जनता के लिए है, वही आईं. पी. सी आप पर भी लागू होगा. ये संकेत, ये दिशा, ये कर्तव्य बोध कराने वाला वरीय पुलिस ऑफिसर की जरुरत है समस्तीपुर को. वर्तमान स्थिति बड़ी ही दयनीय और विचित्र दिख रही है, पुलिस को पुलिस होने का गौरव विलुप्त हो चूका है. बदन पर चमकती वर्दी, माथे पर चमकते शासन का शौर्य का एहसास ही भूल चुकी है पुलिस. पहले पुलिस के पास गाड़ियों का अभाव था, अब गाड़ियों की भरमार है फिर भी इन वैध हथियारधारी पर भारी है , अवैध हथियारधारी !है आश्चर्य और कमाल की बातें! अंग्रेजो के दिये क़ानून में इतना बल इन्हें प्राप्त है, ये दिल से चाह लें,तो अपराधी शरीफ बन जायेंगे, वारदात ख़तम हो जायेंगे किन्तु भौतिकवाद ने इन्हें रिश्वत की चपेट में लाकर इस तरह चपेट लिया है कि कर्तव्य – अकर्तव्य का अंतर ही करना भूल गये हैँ. पुलिस मित्र इनके एजेंट बन गये हैँ, नया -नया ड्रेस पहनकर नेतागिरी के शौखिन लोग थाना और ब्लॉक के दलाल बनकर समाज के लोगों का खून चूसवाने में लगे हैँ . शेर का खाल पहन ये सियार शेर बने रहते हैँ. कुछ ऐसे लोग समाज की कृपा से पद भी पा लेते हैँ, ये पद अवैध कारनामें के लिए लाइसेंस का काम करता है . बदनाम नेता शब्द हो जाता है. ये दलाल जब पुलिस अधिकारी के पास पहुँचते हैँ, तब पुलिस और इनके चेहरे ख़ुशी से खिल उठते हैँ, किन्तु एम. एल. ए, एम. पी के पहुंचने पर बाहर से भले ख़ुशी जाहिर करें, अन्दर दुख ही होता है. उनके जाने के बाद बहुत अधिकारी उपहास भी करते हैँ. ये दिन -प्रति दिन की कहानी है, मोटर साईकिल पर सौ दो सौ रूपये के लिए गिद्ध की तरह टूट पड़ते हैँ, जैसे हेलमेट नहीं पहनना ही सबसे बड़ा जुर्म हो. जब से सरकार थाना प्रभारी शब्द की जगह थानाध्यक्ष बना दिया, तब से वास्तव में ये भी राजनीतिक भूमिका में आ गये. इसका कमाल शराब बंदी पर दिखा 12 लाख लोगों की चेकिंग में 9लाख लोग पूर्ण शराब बंदी में नशे में मिले. फिर गाली नीतिश कुमार को देंगे. हमारी मर चुकी चेतना को कौन जगायेगा? हत्या, लूट बढ़ते अपराध शराब बंदी में पुलिस की बढ़ती कमाई की लालच और अवैध कारोबार से बढ़ी आमदनी से असामाजिक तत्वों के हाथ में अवैध हथियार जमा होने के कुपरिणाम है अपराध में विर्धी. पुलिस वालों के लिए भी एक चुनौती है. समय रहते चेतना में ना आये और वैध से ज्यादा अवैध हथियार जब आ जायेंगे, तो अपराध नियंत्रित होगा क्या? समस्तीपुर में बढ़ते अपराध चिंता का विषय है. एम. पी. तो हमने दूर के लोगों को बनाया ही है, तो वो दूर ही रहेंगे, श्री राम नाथ ठाकुर जी को हमलोग बनाये नहीं हैँ, किन्तु उनका घर यहाँ है, तो मिलते भी हैँ, समय -समय पर आवाज भी उठाते हैँ. श्री महेश्वर हजारी जी की भूमिका बदल गई है फिर भी उन्होंने माननीय मुख्य मंत्री जी से समस्तीपुर में बढ़ते अपराध पर चिंता व्यक्त की है, असर का इंतजार है. बाकी माननीय एम. एल. ए से हमारी अपेक्षा है आप जनता की भावना से सरकार को अवगत कराने में नहीं चुकें. शासन के अंग हैँ आप ,मजबूत प्रशासन कायम करने में सरकार और जनता दोनों की सहायता करें.

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