#अयोध्या_सुप्रीमकोर्ट_निर्णय : #सीपीएम ● लम्बे समय से अटके अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय दे दिया है । अदालत ने 2.77 एकड़ की विवादित भूमि हिन्दू पक्ष को एक न्यास के जरिये मन्दिर बनाने के लिए दी है । सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को अलग से 5 एकड़ जमीन मस्जिद बनाने के लिए निर्देश दिए हैं । ● इस आदेश के जरिये सर्वोच्च न्यायालय ने उस विवाद का अंत करने की कोशिश की है, जिसका इस्तेमाल साम्प्रदायिक ताकतें उन्माद फैलाने के लिए करती रही थीं, जिसके चलते बड़े पैमाने पर हिंसा हुई और लोगों की जानें गईं । ● सीपीएम शुरू से ही कहती रही है कि यदि समझौते से समाधान संभव नही है तो न्यायालयीन निर्णय से इसका हल किया जाना चाहिए । हालांकि इस निर्णय ने एक न्यायिक समाधान प्रस्तुत किया है मगर इस फैसले के कुछ आधार ऐसे है जिन पर सवाल खड़े होते हैं । ● खुद अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि दिसम्बर 1992 में बाबरी मस्जिद का ढहाया जाना गैरकानूनी था । यह एक आपराधिक कार्यवाही थी, धर्मनिरपेक्ष सिध्दांतों पर हमला था । मस्जिद ध्वंस के मामलों की सुनवाई तेज की जानी चाहिए और अपराधियों को सजा दी जानी चाहिए । ● कोर्ट ने 1991 के धार्मिक पूजागृह कानून की सराहना की है । कानून के कड़ाई से पालन और भविष्य में किसी भी धर्म स्थल को लेकर दोबारा ऐसा विवाद उठाने और उसका इस्तेमाल करने की सख्त मनाही की है । ● माकपा पोलिट ब्यूरो ने इस निर्णय का ऐसा कोई भी भड़काऊ इस्तेमाल न करने का आग्रह किया है जिससे साम्प्रदायिक सौहार्द्र में बिगाड़ पैदा हो । (See English version on www.cpim.org)

#अयोध्या_सुप्रीमकोर्ट_निर्णय : #सीपीए

● पश्चिम चंपारण::- लम्बे समय से अटके अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय दे दिया है । अदालत ने 2.77 एकड़ की विवादित भूमि हिन्दू पक्ष को एक न्यास के जरिये मन्दिर बनाने के लिए दी है । सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को अलग से 5 एकड़ जमीन मस्जिद बनाने के लिए निर्देश दिए हैं ।
● इस आदेश के जरिये सर्वोच्च न्यायालय ने उस विवाद का अंत करने की कोशिश की है, जिसका इस्तेमाल साम्प्रदायिक ताकतें उन्माद फैलाने के लिए करती रही थीं, जिसके चलते बड़े पैमाने पर हिंसा हुई और लोगों की जानें गईं ।
● सीपीएम शुरू से ही कहती रही है कि यदि समझौते से समाधान संभव नही है तो न्यायालयीन निर्णय से इसका हल किया जाना चाहिए । हालांकि इस निर्णय ने एक न्यायिक समाधान प्रस्तुत किया है मगर इस फैसले के कुछ आधार ऐसे है जिन पर सवाल खड़े होते हैं ।
● खुद अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि दिसम्बर 1992 में बाबरी मस्जिद का ढहाया जाना गैरकानूनी था । यह एक आपराधिक कार्यवाही थी, धर्मनिरपेक्ष सिध्दांतों पर हमला था । मस्जिद ध्वंस के मामलों की सुनवाई तेज की जानी चाहिए और अपराधियों को सजा दी जानी चाहिए ।
● कोर्ट ने 1991 के धार्मिक पूजागृह कानून की सराहना की है । कानून के कड़ाई से पालन और भविष्य में किसी भी धर्म स्थल को लेकर दोबारा ऐसा विवाद उठाने और उसका इस्तेमाल करने की सख्त मनाही की है ।
● माकपा पोलिट ब्यूरो ने इस निर्णय का ऐसा कोई भी भड़काऊ इस्तेमाल न करने का आग्रह किया है जिससे साम्प्रदायिक सौहार्द्र में बिगाड़ पैदा हो ।
(See English version on www.cpim.org)

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