यादों में राजनीति के ब्रह्म बाबा,श्रद्धांजलि

 


जेटीन्यूज़

पटना: सफेद धोती और कुर्ता, पांव में हवाई चप्पल, कंधे पर गमछा, सर्दी में गर्दन से लिपटी गांव की चादर, बिखरे बाल, चेहरे पर मुस्कान, ठेठ भाषा और दिल में उतर जाने वाला गंवई अंदाज, यही रघुवंश बाबू की सादगी और ईमानदारी थी। वह कहीं भी किसी भी विषय पर बेबाक बोल लेते थे। मनरेगा योजना के निर्माता राजनीति में ब्रह्म बाबा के नाम से मशहूर रघुवंश प्रसाद सिंह उर्फ रघुवंश बाबू का कल उनके गृह क्षेत्र में अंतिम संस्कार कर दिया गया। पूरा क्षेत्र गमजदा हो गया। सभी लोगों ने रघुवंश बाबू को अश्रुपूर्ण विदाई दी।

जिस वैशाली की धरती पर गौतम बुद्ध का तीन बार आगमन हुआ था उसी वैशाली से रघुवंश बाबू 5 बार सांसद रहे। गणित के प्रोफेसर की नौकरी से जीवन की शुरुआत करने वाले रघुवंश बाबू ने केंद्रीय मंत्री तक की यात्रा की व राज्यसभा को छोड़कर सभी सदनों के सदस्य रहे। वह विधान परिषद के सभापति, विधानसभा के उपाध्यक्ष की गरिमा को भी सुशोभित किया।

राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद से रघुवंश प्रसाद सिंह का संबंध जेपी आंदोलन से रहा है। दोनों एक दूसरे से बेहद करीब रहे। रघुवंश बाबू 1977 में पहले विधायक बने और बाद में कर्पूरी ठाकुर सरकार में मंत्री भी बने। 1990 में वह विधानसभा के चुनाव हार गए थे तो लालू प्रसाद ने उन्हें विधान परिषद में भेजा था। जब एच डी देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने तो लालू प्रसाद यादव ने उन्हें बिहार के कोटे से मंत्री बनवाया था।
1996 में रघुवंश प्रसाद सिंह वैशाली से लोकसभा का चुनाव जीते उसके बाद लगातार वे वैशाली से लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया। 1996 से 97 तक केंद्रीय पशुपालन राज्य मंत्री और 1997 से 98 तक केंद्रीय खाद्य राज्य मंत्री रहे।

2004 में जब यूपीए 1 में मनमोहन सिंह की सरकार बनी तब उन्हें ग्रामीण विकास मंत्री बनाया गया। रघुवंश बाबू कभी दिल्ली और पटना में अपना घर नहीं बनाया। वह गांव में ही रहते थे। मनरेगा योजना के वे शिल्पकार थे। और बेरोजगारों को साल में एक सौ दिन रोजगार मुहैया कराने वाले इस कानून को लोगों ने ऐतिहासिक माना।

रघुवंश बाबू का ग्रामीण जीवन से ताल्लुक बहुत गहरा था। ग्रामीण विकास मंत्री के तौर पर उनका पूरा जोर समाज के अंतिम पायदान में खड़े व्यक्तियों तक सुविधाएं पहुंचाने का था।

जानकार बताते हैं कि मंत्रालय के कामकाज पर उनकी मजबूत पकड़ थी। लालू प्रसाद यादव के जेल जाने के बाद रघुवंश प्रसाद सिंह के लिए परिस्थितियां पहले जैसे नहीं रहे। इंटरनेट और सोशल मीडिया के दौर में ऐसे नेता जिसे मोबाइल भी रखना पसंद नहीं था उसके नई पीढ़ी के साथ मतभेद तो होंगे ही।

बताया जाता है कि उन्हें तेजस्वी यादव की कार्यशैली पसंद नहीं थी। वह कुछ नेताओं से दूर रहना चाहते थे। जिन्हें पार्टी जगह दे रही थी तो वह शायद इससे बिल्कुल सहमत नहीं थे। आज की राजनीति में वह शायद फिट नहीं थे। जिस सामाजिक न्याय की लड़ाई को लेकर वह चले थे उसमें अंत तक नहीं भटके। रघुवंश बाबू ऐसे रत्न थे जिन्हें विपक्ष के नेताओं ने भी अपना आदर्श माना।

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