हर सनातन धर्मी को अपने माता पिता के मृत्यु उपरांत श्राद्ध कार्य करना चाहिए और मृत्यु के उस गम को भुलाने के लिए भोज करना चाहिए: बड़ा बाबू मिश्र जेटी न्यूज

हर सनातन धर्मी को अपने माता पिता के मृत्यु उपरांत श्राद्ध कार्य करना चाहिए और मृत्यु के उस गम को भुलाने के लिए भोज करना चाहिए: बड़ा बाबू मिश्र
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डी एन कुशवाह

रामगढ़वा पूर्वी चंपारण- भगवान रामचंद्र ने अपने पिता एवं माता का श्राद्ध कार्य किया और तिलांजलि दी थी। उसी परंपरा को हम लोग आज भी निभाते आ रहे हैं। उक्त बातें ब्राह्मण समाज के रामगढ़वा प्रखंड अध्यक्ष व पूर्व पहलवान तथा रामगढ़वा प्रखंड क्षेत्र के धनहर दिहुली गांव निवासी बड़ा बाबू मिश्र ने अपनी माता स्वर्गीय गोनी देवी के श्राद्ध कार्य कर्म के दिन प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि हर सनातन धर्मी को अपने माता पिता के मृत्यु उपरांत श्राद्ध कार्य करना चाहिए और मृत्यु के उस गम को भुलाने के लिए भोज करना चाहिए। अगर ऐसा नहीं करते हैं तो हम लोग भी उसी गम के साथ चले जाएंगे। जबकि कहा गया है कि हिंदू धर्म के शास्त्रों व पुराणों में हर किसी के लिए श्राद्ध का भोजन करना शुभ नहीं माना जाता।

इसका कारण ये है क्योंकि श्राद्ध का भोजन पितरों के नाम से बनाया जाता जो वासनामय अर्थात- रज-तम से युक्त होता है। इसलिए कहा जाता है श्राद्ध का भोजन हर किसी को नहीं बल्कि कुछ खास लोगों को ही करना चाहिए। अगर इस बात को नज़रअंदाज़ किया जाए तो और श्राद्ध का भोजन किया जाए तो उसे ग्रहण करने वाले की लाइफ में कष्ट पैदा होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। मगर ऐसा क्यों हैं इसके बारे में जानना भी अति आवश्यक है तो आइए जानते हैं कि ऐसा न करने का कारण-

कुल व गोत्र के परिवार में कर सकते हैं श्राद्ध का भोजन
शास्त्रों में श्राद्ध का भोजन करने के विषय में कुछ खास व आवश्यक नियम बताए गए हैं। जो व्यक्ति श्राद्ध के दौरान इनका पालन करते हैं तो उनकी लाइफ में आने वाले कष्टों से उसका बचाव खुद उनके पूर्वज करते हैं। श्राद्ध का भोजन किसी दूसरे के घर का नहीं ग्रहण करना चाहिए, लेकिन अपने कुल गोत्र के परिवार जन में भोजन करने पर कोई दोष नहीं लगता।

कहा जाता है साधक को श्राद्ध का भोजन नहीं करना चाहिए। क्योंकि इससे स्वाध्याय की बढ़ोत्तरी होती है। स्वाध्याय, अर्थात अपने कर्मों का चिंतन करना। कहा जाता है अगर हम ऐसे संस्कारों के साथ श्राद्धस्थल भोजन करने जाएंगे, तो वहां के रज-तमात्मक वातावरण का अधिकतर प्रभाव हमारे शरीर पर होता है। जिससे हमें अधिक कष्ट हो सकता है। वहीं यदि कोई इंसान साधना करता है, तो श्राद्ध का भोजन करने से उसके शरीर में सत्त्वगुण की मात्रा घट सकती है। इसलिए, आध्यात्मिक दृष्टी से श्राद्ध का भोजन करना लाभदायक नहीं माना जाता।

ऐसा माना जाता है श्राद्ध का रज-तमात्मक युक्त भोजन ग्रहण करने से उसकी सूक्ष्म-वायु हमारी देह में घूमती रहती है। ऐसी अवस्था में जब हम पुनः भोजन करते हैं, तब उसमें यह सूक्ष्म-वायु मिल जाती है। इससे, इस भोजन से हानि हो सकती है।

यही कारण है कि हिंदू धर्म में बताया गया है कि उपरोक्त कृत्य टालकर ही श्राद्ध का भोजन करना चाहिए। अन्यथा कलह से मनोमयकोष में रज-तम की मात्रा बढ़ जाती है। नींद तमप्रधान होती है। जिससे हमारी थकान तो अवश्य मिट जाती है, पर शरीर में तमोगुण भी बढ़ जाता है। इसलिए कोशिश करें कि श्राद्ध पक्ष से तेरवीं आदि तक मृतकों के निमित्त बनाएं गए भोजन को ग्रहण न करें।

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