11 मार्च को पूरे देश में स्टेट बैंक के सभी मुख्य शाखाओं का घेराव करो

भारतीय स्टेट बैंक मोदी सरकार का तोता निकला

आलेख – प्रभुराज नारायण राव
जे टी न्यूज़, नई दिल्ली :आखिर भारतीय स्टेट बैंक ने 6 मार्च तक सुप्रीम कोर्ट को चुनावी बांड का हिसाब नहीं ही दिया ।भारतीय स्टेट बैंक ने 5 मार्च को ही एक आवेदन देकर सुप्रीम कोर्ट से यह कहा कि इसके लिए हमें 30 जून यानी 136 दिन का समय चाहिए। जबकि सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय

सदस्यीय खंडपीठ ने भारतीय स्टेट बैंक को यह आदेश दिया था। इसे कोर्ट की अवमानना नहीं तो और क्या माना जाए। जिस भारतीय स्टेट बैंक ने 16000 करोड रुपए का चुनावी बांड 22217 लोगों के माध्यम से बेचा है । वह भी शर्तों के अनुसार बॉन्ड खरीदने वाले सभी दाताओं का नाम पता उनका

केवाईसी रहना अनिवार्य है। अब वह बॉन्ड जिस दल के पास भी जाता है । तो उस दल के द्वारा किस ब्रांच से पैसे निकाले गए या बॉन्ड जमा किए गए । इसकी सूचना भारतीय स्टेट बैंक के मुख्य शाखा को तुरंत मिल जाती है । यह भी जानकारी हो चुकी है की मात्र 19 बैंक के शाखाओ से चुनावी बॉन्ड बेचे

गए हैं और 14 शाखों में शाखाओं में उसे भजाया गया है। इतनी जानकारी स्टेट बैंक के द्वारा पहले से ही प्राप्त है। आरटीआई यानी सूचना का अधिकार जो 2005 में मनमोहन सिंह की सरकार को वाम दलों द्वारा समर्थन देने की एवज में हासिल किया गया था। इसके पूर्व सूचना का अधिकार विशेष सुविधा

संपन्न यानी सांसद और विधायकों को ही सरकार की किसी भी विभाग के अंतर्गत की कोई भी जानकारी हासिल करने का अधिकार था ।2004 के लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस के नेतृत्व में जब मनमोहन सिंह की सरकार बनी तो उसे वाम दलों के समर्थन की आवश्यकता पड़ गई। यानी वाम दलों

के समर्थन के बगैर मनमोहन सिंह की सरकार नहीं बन सकती थी। वैसी स्थिति में वाम दलों ने अपने 14 सूत्री कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के तहत खेत मजदूरों को 100 दिन काम की गारंटी देने के लिए नरेगा तथा आर टी आई यानी सूचना का अधिकार मनमोहन सिंह की सरकार से हासिल किया था। इस

अधिकार के तहत सरकार के किसी भी विभाग से किसी भी महत्वपूर्ण जानकारी को 75 दिन के अंदर प्राप्त हो जाने की गारंटी है। लेकिन चुनावी बॉन्ड के संदर्भ में आरटीआई से भी किसी प्रकार की जानकारी लेने के अधिकार पर मोदी सरकार ने रोक लगा दी थी। वैसे स्थिति में देश के अंदर देश की जनता

के पैसे को लूटने वाले लुटेरे कुछ पैसे लूटकर विदेश भगा दिए गए और बाकी बचे हुए लुटेरे आज सरकार को चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। आखिर 16000 करोड रुपैया का कितना हिस्सा किस दल को प्राप्त हुआ और किसके द्वारा हुआ ।यह बताने में मोदी सरकार क्यों डरती है। इसका तो

गंभीर मायने हैं ।आखिर 22217 बॉन्ड खरीदने वाले कौन से लोग हैं और किन-किन दलों को वह पैसे प्राप्त हुए हैं। इसकी जानकारी ही तो जनता मांग रही है। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की केंद्रीय कमेटी को सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बॉन्ड की जानकारी आम जनता को प्राप्त करने के लिए अपील

दायर करनी पड़ी ।काफी दिनों के बाद सुप्रीम कोर्ट के सात सदस्यीय खंडपीठ ने भारतीय स्टेट बैंक को चुनावी बॉन्ड की विस्तृत जानकारी सुप्रीम कोर्ट को देने की मांग की ।अब सुप्रीम कोर्ट को स्टेट बैंक जो इस डिजिटल दौड़ में सेकंड के अंदर सभी सूची को दे सकती है। आखिर कौन सी ऐसी बात है कि इसे

30 जून के बाद यानी 136 दिन के बाद इसकी जानकारी सुप्रीम कोर्ट को देना चाहती है। यह और भी गंभीर संदेह जनता के बीच पैदा करता है ।यहां यह बात साफ हो चुका है कि बॉन्ड खरीदने वाले का पूरा नाम पता बैंक को जानकारी है । तो उसकी सूचना ही तो सुप्रीम कोर्ट द्वारा मांगा जा रहा है। तो क्या

यह नहीं दर्शाता कि मोदी सरकार और भारतीय स्टेट बैंक के अधिकारियों की मिली भगत के चलते लोकसभा चुनाव के पूर्व इसे सुप्रीम कोर्ट को सूचना देने से रोका जा रहा है।क्योंकि इसका बहुत बड़ा हिस्सा भारतीय जनता पार्टी को मिला है ।वह किन लोगों के द्वारा भारतीय जनता पार्टी को दिया गया है।

यह बात सामने आने से लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की मिट्टी पलीत होने की संभावना है ।इसलिए इसको अभी प्रकाशित करने पर रोक लगाई जा रही है । नवंबर 2019 में मोदी सरकार ने भारतीय स्टेट बैंक को यह आदेश दिया था कि कुछ बॉन्ड जो पहले से एक्सपायर पड़े हुए हैं।उन सभी

बंद को स्वीकार करने के लिए 10 दिनों के लिए एक विशेष खिड़की खोली जाए।जिसके माध्यम से सभी एक्सपायर बॉन्ड को प्राप्त कर लिया जाए । भारतीय स्टेट बैंक ने ऐसा ही किया और 10 करोड़ रुपए के एक्सपायर बॉन्ड को खरीदने का काम किया ।आज देश को तमाम सरकारी घोटालों की

जानकारी से वंचित रखने का साजिश जारी है। यह जानकारी देश के सर्वोच्च संस्थाओं के अंदर दबे हुए हैं ।मोदी सरकार आज इतनी निरंकुश और मजबूत हो चुकी है कि देश के सभी शीर्ष संस्थाओं पर उसके अपने संघ परिवार के लोग बैठे हुए हैं । जो मोदी सरकार की इच्छा के विपरीत यानी देश हित

में, संविधान हित में कोई भी काम करने को तैयार नहीं है।इसका ताजा मिसाल सुप्रीम कोर्ट को चुनावी बॉन्ड की जानकारी प्राप्त करने से रोकना है। भारत को कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की पोलितब्यूरो ने निर्णय लिया है कि देश भर मे सभी प्रधान शाखाओं पर 11 मार्च को प्रतिवाद स्वरुप धरना , प्रदर्शन

कर सभी बॉन्ड को किन किन दलों के खाते में कितने रुपए किन किन लोगों के द्वारा दिया गया है। इसको जनहित में प्रसारित करने का मांग पत्र दिया जाय।

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