एनडीए का अभेद्य गढ रहा है उजियारपुर लोकसभा क्षेत्र –

एनडीए का अभेद्य गढ रहा है उजियारपुर लोकसभा क्षेत्र

राजा, एस कुमार
जे टी न्यूज, समस्तीपुर: बिहार के 40 लोक सभा सीटों में से एक उजियारपुर लोकसभा क्षेत्र समान्य सीट है। 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आया समस्तीपुर जिलान्तर्गत उजियारपुर लोकसभा सीट केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री का सीट होने के कारण राज्य की हॉट सीटों में से एक है। 2002 के परिसीमन आयोग की सिफारिशों के आधार पर 2008 में कुछ नये निर्वाचन क्षेत्रों का गठन किया गया था। जिसमें रोसड़ा लोक सभा क्षेत्र की जगह वैशाली जिले के पातेपुर विधानसभा और समस्तीपुर जिले के उजियारपुर, मोरवा, सरायरंजन, मोहिउद्दीननगर और विभूतिपुर कुल 6 विधानसभा को मिला कर उजियारपुर संसदीय क्षेत्र का गठन किया गया था।


समस्यायें भी बडी हैं यहां
उजियारपुर संसदीय क्षेत्र का शाहपुर पटोरी, मोहिउद्दीननगर, विद्यापतिनगर और मोहनपुर प्रखंड गंगा के किनारे बसे इलाकों के पानी में आर्सेनिक की मात्रा चिन्ताजनक स्तर पर है। सरकार ने सर्वे कराने के बाद 20 साल पूर्व क्षेत्र के अथधिकांश चापाकल पर लाल रंग से निशान लगाकर उसके पानी के उपयोग पर रोक लगा दी थी। किन्तु नल जल योजना के क्रियान्वयन और सफलता के दावों के बावजूद एक बड़ी आबादी अब भी उसी आर्सेनिक युक्त पानी का उपयोग करने को विवश है। नीलगाय का आतंक इस क्षेत्र की दूसरी बड़ी समस्या है जो लोगों खास कर किसानो के मुसीबत का सबब बनी है। हलांकि वन विभाग ने शूटरों की मदद ली है मगर वह नाकाफी है। ताजपुर, मुसरीघरारी व दलसिंहसराय में जाम से जूझना लोगों की नियति बन गई है। तीनों जगह आरओबी की स्वीकृति एनएचआई ने निर्माण शुरू किया था, लेकिन दो साल से काम ठप है। दलसिंहसराय में 32 नं गुमटी पर पुल की बरसो पुरानी मांग चुनावी मुद्दा बन गया, मगर अभी तक पूरा न हो सका। इस गुमटी पर भी घंटो जाम में फंसे रहना आम बात हो गई है।
मतदाताओं की स्थिति


2011 की मतगणना के अनुसार उजियारपुर निर्वाचन क्षेत्र में पुरुष 847704, महिला 740454,अन्य 51 कुल 15,88, 209 मतदाता हैं। हलांकि 2020 में यह आंकड़ा करीब 17 लाख के आसपास है। जिसमें सबसे अधिक आबादी वाले कोइरी और यादव मतदाता हैं। इसके अलावा भूमिहार, ब्राह्मण, राजपूत, मुसलमान और अनुसूचित जाति ,जनजाति के मतदाता की भी अच्छी खासी आबादी है। आंकड़ों के मुताबिक चुंकि इस सीट पर कुशवाहा और यादव जाति के मतदाता सबसे ज्यादा हैं। इसलिए राजनीतिक दल इन दो जातियों को ध्यान में रखते हुए यहां अपनी रणनीति तैयार करते हैं।


इतिहास 2008 में अस्तित्व में आने के बाद से इस लोकसभा सीट पर अब तक तीन आम चुनाव हुए हैं तब से लेकर अब तक यहां एनडीए का ही कब्जा रहा है। 2009 में जेडीयू तो 2014 एवं 2019 के चुनाव में बीजेपी ने जीत दर्ज की थी। आरजेडी या कहें महागठबंधन को यहां जीत का स्वाद चखने को नहीं मिला है। पिछले लोकसभा चुनाव में रालोसपा के टिकट पर उपेंद्र कुशवाहा ने भी यहां से किस्मत आजमाया था, लेकिन नित्यानंद राय के सामने उनका जादू नहीं चल पाया वे दूसरे स्थान पर रहे थे। अब जबकि उपेंद्र कुशवाहा ने एनडीए का दामन थाम लिया है, तो यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी चुनाव में उजियारपुर में उनकी पार्टी रालोजद की क्या रणनीति होगी। 2009 में अश्वमेध देवी ने राजद नेता आलोक मेहता को हरा कर पहली महिला सांसद बनी थी। उसके बाद 2014 से भारतीय जनता पार्टी के नित्यानंद राय का इस सीट पर कब्जा है। खासबात यह है कि माकपा और नोटा का भी इन तीन चुनावों में उल्लेखनीय व दमदार प्रदर्शन रहा है।

दावेदारों पर एक नजर रालोजद सुप्रीमो उपेन्द्र कुशवाहा के साथ आने से एनडीए के समक्ष थोडी असमंजस की स्थिति हो सकती है। क्योंकि भाजपा अपने सबसे भरोसे मंद सिपाही व वर्तमान सांसद सह गृहराज्य मंत्री नित्यानंद राय पर तीसरी बार फिर से दांव खेलना चाहेगी, वहीं रालोजद सुप्रीमों उपेन्द्र कुषवाहा को भी इस क्षेत्र से बडी उम्मीदें हैं। महागठबंधन में यदि उजियारपुर सीट राजद के कोटे में आती है तो आलोक मेहता राजद के पसंदीदा उम्मीदवार हो सकते हैं मगर राजद सुप्रीमों परिवार के किसी बहू को इस क्षेत्र से उतारने की खबरें भी मजबूती से उभर रही हैं। वहीं यदि उजियापुर में माकपा को मौका मिला तो अजय की कुमार की दावेदारी तो लगभग पक्की है। इसके अलावा इस चुनाव में उजियारपुर संसदीय क्षेत्र से बसपा भी मजबूत इरादे से उतरने की फिराक में है, तो सेवा निवृत फौजियों की पार्टी सहित कई नई पार्टियों ने भी उजियारपुर पर अपनी नजरें गडा रखी हैं।

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