राजनेताओं में हमारे समाज का कुशल नेतृत्व कर पाने की क्षमता नहीं:- *डाँ० मुकुंद कुमार। *रमेश शंकर झा/राजकुमार राय। समस्तीपुर बिहार।

 

 

रमेश शंकर झा/राजकुमार राय।
समस्तीपुर बिहार।

समस्तीपुर:- एक अर्थशास्त्र का छात्र होने के नाते इस चुनावी समर में बार-बार मेरे मन में एक सवाल उठता है, और यह सवाल मेरी चेतना शक्ति को झकझोर के रख देता है, कि क्या अब इस देश में कभी भी चुनावी भाषणों में आर्थिक मुद्दों की चर्चा नहीं कीया जाएगा क्या। समाज के लिए, समाज की संरचना के लिए आर्थिक मुद्दों से बड़ा कोई मुद्दा है या ऐसे मुद्दे सिर्फ इसलिए बनाए जा रहे ताकि वास्तविक समस्या से जनमानस का ध्यान भटकाया जा सके। क्या बेरोजगारी, गरीब, किसानों की दुर्दशा, उनकी आत्महत्या और ऐसे ही अनेकानेक मुद्दों के लिए चुनावी समर में कोई जगह नहीं बचा है? क्या हमारे देश की सारी राजनैतिक पार्टियों ने यह तय कर लिया है कि चुनाव सिर्फ और सिर्फ गैर आर्थिक मुद्दों पर ही लरा जाएगा? क्या धर्म और जाति की राजनीति करने वाले नेता किसी बेरोजगार के लिए रोजगार, किसी गरीब, भूखे के लिए रोटी और किसी किसान के लिए इतनी आमदनी जितने में कि वह सुसाइड ना करसके, आत्महत्या ना करें की सुनिश्चित कर सकते हैं। क्योंकि मैंने सुना है *”पानी की कोई जात नहीं होती और रोटी का कोई धर्म नहीं होता”*। इसी प्रकार बेरोजगारों के लिए भगवान की प्राप्ति, खुदा की प्राप्ति से ज्यादा महत्वपूर्ण एक नौकरी की प्राप्ति होती है। क्या हमारे राजनेताओं की समझ इतनी कमजोर हो गई हैं कि वह इन बुनियादी बातों को समझ ही ना सके। अगर ऐसा है तो बड़े ही दुख के साथ मुझे कहना पड़ेगा कि इन तथाकथित राजनेताओं में हमारे समाज का कुशल नेतृत्व कर पाने की क्षमता नहीं है। डाँ० मुकुंद कुमार, अर्थशास्त्र विभाग, समस्तीपुर महाविद्यालय समस्तीपुर।

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