* बसत *

* बसत *

आम केबगीचे से
मंजरियों से एक – एक सुन्दरतम
हाँ ! कोयल की ,कूक की सी
आती आवाज
जैसे आती थी कभी
पी एम चौराहे से
या कि लंका चौराहे से
कइ एक मनचलो को झपकते हुए
रिक्शे ,स्कुटी, या फिर सायें-झायें करती हुइ साइकिल
याद आता है-काशी का अस्सी
काशी नाथ सिंह के
दर्द और दवा के बीच का वह
तड.पता है
कड़वे मन
उछलता यह देख
खडा मधुमाश
इठला रहा/बन्धे पाश बसंत
*****
डा.रणजीत कुमार दिनकर

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