*संस्कारी भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार नहीं होता!*

*संस्कारी भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार नहीं होता!*
*(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)*

देखी, देखी, इन विपक्षियों की चंटई देखी। मोदी जी को भ्रष्ट भी कह रहे हैं। और अगर ईडी-सीबीआइ-आइटी पूछें, तो झट कह देंगे कि हमने कब मोदी जी को भ्रष्ट कहा है। तमिलनाडु वाले स्टालिन साहब कह रहे हैं कि अगर देश में भ्रष्टाचार की कोई यूनिवर्सिटी खुली, तो मोदी जी उसके चांसलर होंगे। चुनावी बांड के जरिए वसूली, भगवा पार्टी की वाशिंग मशीन, रफाल सौदा वगैरह, सब इसी के इशारे हैं। पर चुनाव आयोग पूछेगा, तो वही इंडिया वाले झट से कह देंगे कि न नरेंद्र मोदी को और न सारे मोदियों को, हमने तो भ्रष्ट कहा ही नहीं। हमने तो सिर्फ अनुभव की, विशेष योग्यता की बात की है, जो मोदी जी को किसी भ्रष्टाचार यूनिवर्सिटी के चांसलर के पद के लिए उपयुक्त बनाते हैं।

वैसे भी चुनाव के बाद मोदी जी को दूसरे रोजगार की जरूरत पड़ सकती है और किसी यूनिवर्सिटी की चांसलरी से बेहतर रोजगार दूसरा क्या होगा? हां! अगर गवर्नर लोग तब भी मोदी जी के चलाए हुए चलन पर चलते हुए, विपक्षी राज्यों में सुपर चांसलरी झाड़ते रहें, तब जरूर चांसलरी के साल चैन से गुजारने में मुश्किल हो सकती है। पर कैसी भी हो चांसलरी, झोला उठाकर निकल जाने से तो बेहतर ही है। खैर ये इंडिया वालों की तो फिर भी देखी जाए, पर उनकी देखा-देखी भारत वर्ष के लोग भी जो मोदी जी के राज में भारत के भ्रष्टाचार का विश्व गुरु बन जाने की तस्दीक कर रहे हैं, उसका मोदी जी क्या करेंगे, सिवाए आंख-कान-मुंह बंद कर के, बापू के बंदर बन जाने के।

नये सर्वे में 55 फीसद पब्लिक ने यह एलान कर दिया है कि उनके हिसाब से तो मोदी जी के राज के पिछले पांच साल में भारत में भ्रष्टाचार खूब फला-फूला है। 2019 के चुनाव के मौके पर, ऐसा ही सोचने वाले सिर्फ 40 फीसद थे। दूसरी तरफ, भ्रष्टाचार में भी कमी देखने वाले भक्तों का हिस्सा, जो पिछले चुनाव से पहले 37 फीसद था, इस बार आधा ही रह गया यानी 19 फीसद पर आ गया। और यह हाल तो तब है, जब मीडिया मोदी जी की गोद में अठखेलियां कर रहा था। खैर, मीडिया अगर मीडिया हो जाता, तब भी भ्रष्टाचार यूनिवर्सिटी की मोदी जी की चांसलरी कहीं गयी नहीं थी। मोदी जी का सेवानिवृत्ति के बाद रोजगार का जुगाड़ तो पक्का है।

*(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*

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