*प्रवासी मजदूरों का दिल्ली छोड़ना: पलायन या सियासी षड्यंत्र? आँकड़ें और तस्वीरें बयां करती है हकीकत…।*

*ये तस्वीरें कर देंगी भावुक, वाॅक डाउन में न तो पैर रूक रहे न आंसू...।*

*प्रवासी मजदूरों का दिल्ली छोड़ना: पलायन या सियासी षड्यंत्र? आँकड़ें और तस्वीरें बयां करती है हकीकत…।

*ये तस्वीरें कर देंगी भावुक, वाॅक डाउन में न तो पैर रूक रहे न आंसू…।

आर. के. राय/ठाकुर वरुण कुमार।

आज का भारत::- *”दिल्ली पूरी तरह तैयार है। दिल्ली के विश्वस्तरीय शेल्टर होम में खाने-रहने की व्यवस्था की गई है।”* बीते एक सप्ताह से यह लगातार कहा जा रहा है। लेकिन पिछले कुछ दिनों से आने वाली खबरें, आंकड़े और तस्वीरें कुछ और ही बयां कर रही हैं। आंकड़े और तस्वीरें दिल्ली प्रशासन की पोल खोल रहीं हैं। आखिर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इस देश को क्या बताना चाह रहे हैं? क्या दिल्ली उत्तर पूर्वी लोगों की नहीं है?

*दिल्ली पलायन और कोरोना वायरस*

बीते 5 दिनों से दिल्ली से बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिकों का पलायन हो रहा है। हालत ये है कि दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर लोगों की भीड़ जमा हो गई है। ऐसी हालत तब है, जब देश में लॉक डाउन है। लोगों को घरों में रहने के लिए देश में अघोषित कर्फ्यू जैसे हालात हैं।

फिर सवाल उठता है, आखिर दिल्ली से इतनी बड़ी भीड़ पैदल ही सौ-हजार या हजार से ज्यादा किलोमीटर की यात्रा कर घर जाने को क्यों मजबूर हुई? उन दावों का क्या हुआ, जिसमें कहा जा रहा था कि दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने कोरोना वायरस की स्थिति सँभालने के लिए बढ़िया काम किया है?

आइए इन प्रश्नों से जानते हैं हकीकत। क्या है समझने की जरूरत?

*खाने-रुकने की कैसे हुई बेहाल व्यवस्था?*

दिल्ली सरकार द्वारा कहा गया कि दिल्ली पूरी तरह तैयार है। बीते एक सप्ताह से यह कहा जा रहा है कि दिल्ली के विश्वस्तरीय शेल्टर होम में खाने-रहने की व्यवस्था की गई है। लेकिन आँकड़े कुछ और ही बयां करती दिखाई दे रही है।

शेल्टर होम के आँकड़े बताते हैं कि दिल्ली सरकार के पास 223 शेल्टर होम हैं। यहाँ जाने वाले कुल लोगों की संख्या में 5 दिनों में 2 से 3 गुना इजाफ़ा हुआ है। लेकिन रोचक बात ये है कि लोगों की संख्या सभी शेल्टर होम में नहीं बढ़ी है। 223 में से 30 से भी कम शेल्टर होम में लोगों की आवाजाही ज्यादा बढ़ी, बाकी जगहों पर आज भी जाने वाले लोगों की संख्या 20 से 50 ही है।

यही नहीं, बीते 5 दिनों में शेल्टर होम में भीड़ में खाना खिलाने और खाने की गुणवत्ता को लेकर भी सवाल उठ रहे थे। स्थिति ये है कि जब आलोचना अधिक होने लगी तो केजरीवाल के मीडिया सलाहकार रहे नागेन्द्र शर्मा ने कहा कि यमुना विहार में अभी तक 2000 लोगों को खाना खिलाने की व्यवस्था थी लेकिन उस दिन अचानक से 7000 लोग आ पहुँचे। इसलिए ऐसी नौबत आई।

जबकि आँकड़े बताते हैं कि यमुना पुश्ता नाम के शेल्टर होम में सबसे अधिक लोग पहुँचे, लेकिन वहाँ भी आँकड़ा एक समय में 7000 का नहीं हुआ, जैसा बताया गया। कई शेल्टर होम में तो खाने की व्यवस्था भी नहीं थी, जहाँ दिल्ली पुलिस की मदद से भोजन के पैकेट पहुँचाए गए।

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या केजरीवाल सरकार को अंदाजा हो गया था कि उसे लोगों को खिलाने की व्यवस्था करनी पड़ेगी? क्या इसलिए शुरुआती 5 दिनों में कम लोगों की व्यवस्था की और लोगों को दिल्ली से भागने दिया गया?

यहाँ पर गौर करने वाली बात ये भी है कि जब 223 शेल्टर होम में महज 20000 लोगों की ही व्यवस्था हो सकती है तो सरकार कैसे यह दावा कर रही है कि 235 स्कूलों में 2 लाख लोगों तक उसने खाना पहुँचाया? कहा यह भी गया कि लंच और डिनर दोनों दिए जा रहे है लेकिन भीड़ में खिचड़ी परोसते विडियो वायरल हुए।

अब ऐसे में दिल्ली के लाखों दिहाड़ी मजदूर क्या करते, जब राज्य सरकार की ओर से कोई इंतजाम ही नहीं किया गया।

*क्या गैर-निवासियों के साथ किया जा रहा भेदभाव?*

राज्य सरकार द्वारा जितनी भी घोषणाएँ की गईं, वे सब दिल्ली के नागरिकों के लिए थे। कंस्ट्रक्शन क्षेत्र के मजदूरों के लिए सहायता राशि की घोषणा में वे दिहाड़ी मजदूर शामिल नहीं थे, जो बड़ी संख्या में गैर पंजीकृत थे लेकिन कंस्ट्रक्शन कंपनी अथवा ठेकेदारों के साथ कार्य करते थे। दिल्ली छोड़कर जा रहे मजदूरों ने यह इल्जाम भी लगाया कि हेल्पलाइन नंबरों पर उन्हें न तो कोई मदद मिली, न कोई आश्वासन। यहाँ तक कि आवासीय प्रमाण पत्रों की माँग की गई और जो दिल्ली के नहीं थे, उनके साथ भेदभाव किया गया, उन्हें खाने को नहीं मिला।

*क्या बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था से मुँह छिपाने की, की जा रही कोशिश?*

कोरोना वायरस जहाँ से शुरू हुआ, उस वुहान (चीन) में हुए एक अध्ययन से ये बात सामने आई कि वायरस की चपेट में आए लोगों में साँस लेने की दिक्कत होती है। कोरोना पॉजिटिव मरीजों में से 5 प्रतिशत मरीजों को ICU अर्थात इंटेंसिव केयर यूनिट की आवश्यकता पड़ती है। वही 2.3 प्रतिशत मरीजों को वेंटिलेटर की नितांत जरूरत पड़ती है। नार्मल साँस लेने की दर प्रति मिनट 15 होती है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति 28 साँस/मिनट के आँकड़े को छू ले तो उसकी स्थिति सँभालने के लिए वेंटिलेटर अवश्य चाहिए होता है।

बात अगर दिल्ली के पास उपलब्ध वेंटिलेटर की करें तो 2 दिसंबर 2019 को दिल्ली विधानसभा में राज्य के स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि केवल 466 वेंटिलेटर हैं दिल्ली में, जिनमें से 23 काम नहीं कर रहे, वहीं 11 को ठीक करवाने की प्रक्रिया चल रही थी। यानी केवल 432 वेंटीलेटर काम के हैं। बीते तीन महीनों में इजाफ़ा नहीं हुआ, क्योंकि इसी जबाब में यह कहा गया कि कोई माँग लंबित नहीं है।

बात यहीं खत्म नहीं हो जाती। दिल्ली के किन-किन अस्पतालों में ICU की सुविधा उपलब्ध है, इस प्रश्न के जबाब में दिल्ली सरकार के दिए आँकड़े और अचंभित करते हैं। दिसंबर, 2019 में ही विधानसभा के पटल पर दिए जबाब के मुताबिक दिल्ली के 28 अस्पतालों की सूची दी गई, जिनमें से 12 में ICU ही नहीं हैं। वहीं 6 अस्पतालों में वेंटिलेटर की कोई सुविधा नहीं है। 28 में से एक अस्पताल के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।

आज न्यूयॉर्क जैसे बेहतरीन हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर वाले शहर की कमर टूट चुकी है। वहाँ हालत ये है कि वेंटिलेटर की आवश्यकता पूरी करने के लिए अमेरिकी सरकार को निजी कंपनियों से मदद लेनी पड़ रही है। ऐसे में कोरोना वायरस से लड़ने की तैयारी को दिल्ली की आबादी के साथ जोड़कर देखें तो भले ही मुख्यमंत्री केजरीवाल बड़े-बड़े दावे कर रहे हों, 434 वेंटिलेटर और 16 ICU वाले अस्पतालों से कोरोना की जंग कितना लड़ पाएँगे, यह कहना मुश्किल नहीं है।

ICU और वेंटिलेटर तक ही बात सीमित नहीं है। दिल्ली सरकार ने कोरोना की जाँच के बाद अच्छी सुविधाएँ मुहैया न होने से झल्लाए मिडल क्लास के लिए तो 3100 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से प्राइवेट आलिशान होटल मुहैया करवा कर उनका मुँह बंद करवा दिया गया, लेकिन अगर गरीब लोग बड़ी संख्या में कोरोना के मरीज बने या मरीजों के चपेट में आ गए तो उन्हें रखेंगे कहाँ, यह समस्या भी दिल्ली सरकार के सामने खड़ी है।

हाल में जारी दिल्ली सरकार के इकॉनमिक सर्वे (2019-20) की मानें तो वर्तमान में यहाँ के सरकारी अस्पतालों में केवल 11770 बेड हैं। दिल्ली के सभी अस्पतालों में उपलब्ध बेड की बात करें तो कुल 57709 बेड मरीजों के लिए उपलब्ध है। प्रतिशत में देखें तो 52 प्रतिशत बेड प्राइवेट अस्पतालों में है, वहीं केंद्र सरकार, दिल्ली म्युनिसिपल के अस्पतालों में 28 प्रतिशत। महज 20 प्रतिशत हिस्सा दिल्ली सरकार के अस्पतालों में है।

सभी तरह के अस्पतालों में उपलब्ध बेड को दिल्ली की आबादी के हिसाब से देखें तो 2011 में प्रति हजार लोगों पर 2.50 बेड उपलब्ध थे, यह संख्या 2018 तक आते-आते 2.94 हुआ। यानी एक हजार लोगों के ऊपर अस्पतालों में आज भी पूरे 3 बेड उपलब्ध नहीं है। इसलिए दो करोड़ की आबादी में 11770 बेड वाले अस्पतालों के मालिक प्रवासी लोगों से भयभीत हों तो स्थिति समझना कठिन नहीं है।

यही नहीं, दिसंबर 2019 तक दिल्ली में चल रहे जिन 315 मोहल्ला क्लिनिक को वर्ल्ड क्लास कहा गया, वहाँ न तो कोरोना का टेस्ट हो सकता है, न ही वहाँ कोरोना के मरीजों के इलाज अथवा रुकने की व्यवस्था है। अफ़सोस, जब पूरा देश कोरोना से जंग लड़ रहा है, मोहल्ला क्लिनिक से कोरोना के मरीज ही निकले, वे कोरोना से लड़ने की जगह नहीं बन पाए। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो आज हालत यह है कि जबसे यह पता चला है कि एक डॉक्टर कोरोना पॉजिटिव निकला है, कई मोहल्ला क्लिनिकों में डॉक्टर ही नहीं आ रहे। अधिकांश मोहल्ला क्लिनिक न साफ़-सुथरे हैं, न ही कोरोना वायरस से बचने के वहाँ कोई उपाय।

*क्या बिहार विरोधी रचा गया राजनीतिक षड्यंत्र?*

24 मार्च को लॉक डाउन की घोषणा के बाद जहाँ देश एकतरफ लोगों को घरों में रहने के लिए प्रेरित करने में जुटा था, उपलब्ध संसाधनों के साथ वायरस को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहा था, केजरीवाल के सलाहकार प्रशांत किशोर और आम आदमी पार्टी के सोशल मीडिया के बड़े चेहरे अंकित लाल *”नितीश कुमार शर्म करो”* का ट्रेंड चलाने और आपदा के समय बिहार की सर्व विदित कमियों को उजागर करने में व्यस्त थे। यहाँ तक कि 27 मार्च को अंकित लाल गाज़ियाबाद के पास जाकर प्रवासी मजदूरों के पलायन का लाइव स्ट्रीमिंग करने और प्रशासनिक विफलता की बात कर रहे थे। यह समझना कठिन नहीं है कि सोशल मीडिया ट्रेंड और लाइव स्ट्रीमिंग क्यों और किसके कहने पर चलाए गए होंगे।

जब बड़ी संख्या में पलायन की ख़बरें 24 मार्च से ही आने शुरू हुए, तबसे लेकर अगले 5 दिनों तक किसी भी तरह के उपाय की घोषणा दिल्ली सरकार द्वारा नहीं की गई, जो प्रवासी श्रमिकों के भले के लिए हो, उन्हें राहत पहुँचाए। पलायन रोकने के लिए भी कोई पहल नहीं की गई। जब स्थिति आउट ऑफ़ कंट्रोल होने लगी तो पहले स्कूलों में लंगर चलाने के आँकड़े बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने का काम हुआ, फिर पब्लिसिटी बटोरने के लिए सिसोदिया प्रवासी मजदूरों के साथ विडियो शेयर करके अपने कर्तव्यों से इतिश्री कर रफू-चक्कर हो गए। दिल्ली सरकार चलाने वाले इस बात को भी समझते हैं कि जिस तरीके से दुनिया के बड़े शहरों जैसे न्यूयॉर्क, न्यूजर्सी में कोरोना का दहशत पैदा हुआ है, अस्पताल परेशान है, संसाधन नहीं है, वैसी स्थिति दिल्ली में बनी तो केजरीवाल की बनी बनाई छवि बर्बाद हो जाएगी। इसलिए गरीबों की मौत का ठीकरा किसी और पर फूटे, इसलिए भी लोगों को दिल्ली से भगाने की कोशिशों को अंजाम दिया जा रहा है।

*क्या मजबूर हैं मजदूर?*

लॉक डाइन में कई शहरों में फंसे हैं बिहार के लाखों लोग। जब रोजी रोटी इस लॉक डाउन ने छिन लिया तो वह अपने घरों के लिए निकलने लगे। लेकिन सबसे अधिक परेशानी गाड़ियों को लेकर हो रही है। लॉक डाउन में सबकुछ बंद है। फिर भी हजारों लोग मजबूरी में पैदल ही कई शहरों से चल दिए हैं। भूख से परेशान है फिर ही दिन रात चलते जा रहे हैं, उनके न तो पैर रूक रहा है और न इनके आंखों के आंसू।

*दिल्ली, नोएडा और गाजियाबाद से आ रहे लाखों लोग*

सबसे अधिक इस लॉक डाउन का असर बिहार के लोगों पर दिल्ली, नोएडा और गाजियाबाद में काम करने वाले लोगों पर पड़ा है। इन शहरों के मकान मालिकों ने भी कम जुर्म नहीं ढाया है। फिर भी सरकार शांत है। कोरोना के डर के कारण हजारों बिहार के लोगों को घर से निकाल दिया गया है।जिससे विवश लोग अपने घर की ओर पैदल ही चल दिए हैं। राजस्थान और बंगाल के मजदूरों का भी यही हाल है। वह भी पैदल गांव के लिए निकल गए है। सैकड़ों पहुंच भी गए है। हजारों मजदूर केरल, हिमाचल, पंजाब में फंसे हुए हैं। वह घर तो नहीं आ सकते हैं, लेकिन जहां पर पर है वहीं पर मदद मांग रहे हैं।

*क्या हजार कि.मी. चलना आसान है?*

दिल्ली से बिहार के आना पैदल आसान नहीं है। करीब एक हजार कि.मी. की दूरी है फिर भी लोग पैदल ही चलते आ रहे हैं। इनका पैर रूक नहीं रहा है। सिर्फ एक ही मकसद है कि किसी तरह से वह अपने घर पहुंच जाएं। सिर और पीठ पर बैग लिए हुए, हाथ से बच्चे का हाथ पकड़े हुए चलते आ रहे हैं। कई कंधों पर दो-दो बच्चे लिए चल रहे हैं।

आखिर इस परिस्थिति का कारक कौन है? क्या यही मजदूर देश में कोरोना जैसी महामारी लेकर आए? अगर हां! तो इन्हें खत्म कर दिया जाना चाहिए, अगर ना! तो सरकार को समुचित व्यवस्था करना चाहिए। नहीं तो देश को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

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