दहेज़ की रजाई

दहेज़ की रजाई
जे टी न्यूज़


घर में चारों ओर खुशी का माहौल था ।बच्चे ,बूढ़े ,जवान और घर में आए हुए दूसरे अतिथि बहुत प्रसन्न थे, क्योंकि थोड़ी ही देर में कलावती के इकलौते लड़के राजेश की बारात वापस आनी थी। तभी शोर हुआ कि दुल्हन आ गई ,दुल्हन आ गई, सभी लोग बाहर की तरफ दौड़े, कलावती भी पूजा की थाली लेकर गई और दुल्हन का प्रवेश हुआ । सभी औरतों और बच्चे बारी-बारी से दुल्हन देखने के लिए कमरे में गए।
बुआ सबको बैठाकर सबकी आवभगत करने में लगी रही ।औरतों ने मंगल गीत गाना शुरू किया , मौसी मिठाई के डब्बे खोलकर सबको पानी पिलाने लगी सभी दुल्हन आने की खुशी में आनंदित हो रहे थे । इधर कलावती की नजर दुल्हन के साथ आए सामानों पर थी ।कलावती ने एक-एक करके सभी सामान को देखा बर्तन जेवर कपड़े , कभी बक्सा खोलती तो कभी अलमारी जैसे कुछ तलाश रही हो । हताश होकर सारा सामान उलट- पलट करने के बाद, बड़बड़ाती हुई अपने आप से बातें करते “अरे बहु रजाई नहीं लाई क्या?” सर्दियों में क्या ओढ़ेगी । मां-बाप को इतनी भी सुध नहीं रही। मेरे इकलौते बेटे पर अपने रूप का जाल बिछाकर हम लोगों को ठग लिया.. मां की बातें सुनकर राजेश मां की ओर देख मुस्कुरा कर बोला ..”मेरी मां से सुन्दर भला कोई है क्या”

राजेश: मेरी प्यारी अरे मां जाने दो नाराज़ मत हो गुस्सा तेरे चेहरे पर अच्छा नहीं लग रहा. कलावती:क्या जाने दूं कैसे-कैसे दुख काटकर तुझे पढ़ाया लिखाया उसके बदले बस इतना ही। अरे मां मेरी अच्छी मां, क्या कमी रह गई मै पूरी कर दूंगा….. तू तो नासमझ है ,अभी सयाना नहीं हुआ , मां की बात सुनकर राजेश बोला, चल गुस्सा छोड़ , खाना खा ले ,मुझे भी नींद आ रही……. तभी छोटी बुआ आ गई … ए भाभी बहुत रात हो गई है , चलो खाना खा लो , छोटी अब मुझे खाना नही सूझ रहा,देख न बहु के घर वाले कितना चालू हैं , छोटा मोटा सामान देके फँसा दिये, क्या जाने दूं , मेरी तो किस्मत ही फूट गई। किसी तरह रात बीती लेकिन कलावती की आंखों में नींद नहीं थी वह यही सोच रही थी… लड़की के पिता से बात करूंगी…. राजेश ने अपनी नई नवेली पत्नी को यह कहते हुए समझाया “मेरी मां ने मुझे बहुत मुश्किलों से पाला है मेरे लिए वही देवी है, तुम भी सदैव उसका आदर सम्मान करना”दिल की बुरी नहीं है लेकिन उसूलों की पक्की है कभी-कभी यह बिना बात लड़ जाती है…. सुबह हो गई सारे मेहमान अपने-अपने घर के लिए विदा लेने लगे …. सबके जाने के बाद… कलावती बहु के कमरे में गई बोली अभी तक सो रही है ये पिताजी का घर नहीं है तुम्हारा ससुराल है जाकर स्नान आदि कर लो रसोई घर में रस्म करनी है… बहु नहाने चली गई कलावती बुदबुदाती रही …”. फूल कुमारी हह्ह्ह”.. मन मुताबिक सामान न पाकर कलावती को हर एक अच्छी चीज भी बुरी लग रही थी…..राजेश: जो नहीं दिया तो वो सब मैं ला दूंगा।। समान क्या और कैसा दिया इसमें उसे बेचारी का क्या दोष है वह तो उसके परिवार वालों ने दिया।

कलावती:करने लगा अभी से बहू की चाकरी ,एक रात में उसके वश में हो गया.अरे इतना छोटा बक्सा इसमें क्या आएगा कल को लड़के बच्चे होंगे तो सामान कहां रखेगी। अरे बहुत तो कूलर भी नहीं लाई हवा खाने क्या अपने मायके जाएगी। कलावती की बातें सुनकर बहू सुशीला अपने कमरे में सुबक सुबक के रोने लगी… राजेश ने उसके सर पर हाथ रख कहा की चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा. बहू: मैंने तो इतना सुना मेरी मां देवी है प्रेम की मूर्ति है और न जाने क्या-क्या। पर आज ही ऐसा रूप दिखा रही तो आगे न जाने मेरा क्या होगा। रोज कलावती इधर-उधर हाथ पैर पटक रही थी,सामान देखकर मानो गुस्से के बादल और काले हो रहे थे,अब तो यह सब रोज की कहानी हर छोटी बड़ी बात पर ताना देना तो जैसे कलावती का अधिकार हो गया , कलावती: राजेश अपने मामा से बोल बहू के घर फोन लगाएं यह सब नहीं चलेगा उन्होंने कहा था आपको शिकायत का मौका नहीं देंगे गृहस्थी का पूरा सामान भी नहीं दिया, कल को जब तुम अलग हो जाओगे कैसे बनाओ खाओगे पूरे बर्तन भी नहीं दिए। एक तो लड़की सुंदर नहीं ऊपर से हमारे सर पर मढ़ दी मेरे राजेश को तो एक से एक सुंदर लड़कियां मिल रही थी। हम इसके बाप की चिकनी चुपड़ी बातो में आ गए। अब यह सब तो रोज की बातें हो गई थी सुशीला को भी इन सब चीजों की आदत पड़ गई। सुशीला ने कलावती से कहा “मां जी मुझे माफ करिएगा पर आपने कहा था कि हम लोगों को पांच लाख नगद दे दो सामान से हमें क्या लेना ” वह तो तुम्हारी बेटी के काम आएगा।

इसीलिए जो जरूरत का सामान था वह पिताजी ने दिया है। कलावती: देख बहू आज तो तूने बोल दिया आगे से मुंह मत खोलना यह तेरा मायका नहीं है। बहुत चुप होकर अंदर ही अंदर रोने लगी अगले दिन पिताजी को फोन किया बहू: पिता जी आपने रजाई, नहीं दिया है सासू माँ जी ऐसा बोल रही थी।
लड़की के पिताजी: कुछ दिनों में रजाई बनवा कर भेज दूंगा, इतनी छोटी सी चीज का ध्यान ही नहीं रहा बेटी। मान मनौव्वल करते किसी तरह कुछ दिन और बीते घर की सारी जिम्मेदारी बहु को सौंप दी गई , सुबह शाम गृहस्थी के चूल्हे में झाड़ू बर्तन करके उसका दिन बीतने लगा । यदि कभी घर फोन करके अपने मन की बात भी कहती तो घर वाले यही कहते कि बेटी घर से डोली में विदा होकर जाती है और अर्थी पर वापस आती है ससुराल में एक बेटी के घर होता है और मायका पराया …. हर एक चीज को अपनी नियति समझ कर सुशीला सर झुका के पति राजेश और सास कलावती की हर बात को स्वीकार करती चली गई.. शादी के कुछ महीने बाद राजेश दिल्ली वापस अपनी कंपनी चला गया। प्रेम का सुहाना सावन खत्म हो गया था अब दुर्दिन की शुरुआत हो गई.. दिसंबर में कड़ाके की ठंड पड़ती है, ठंड में दस्तक देना शुरू कर दिया… इसी बीच बारिश भी शुरू हो गई रात बहुत सर्दी थी घर के सभी लोग अपनी अपनी रजाई ओढ़ कर सोने लगे….बहू को सर्दी लग रही थी चादर को ओढ़ना बना कर, किसी तरह रात गुजारी। बहु सुबह कलावती के पास जाकर बोली… मां जी रात को बहुत ठंड लग रही थी आज रात कुछ ओढ़ने को दे दीजिएगा। सास कलावती: क्यों तुम्हारे बाप ने नहीं दिया कुछ ओढ़ने को मैं कहां से लाऊं कहकर कलावती चली गईं। बहू सुशीला ने पति राजेश को फोन लगाकर कहा की सर्दियों बढ़ गई है समय मिले तो गांव आ जाइए । पिताजी से रजाई के लिए कहा है मां की तबीयत नहीं ठीक है उसका इलाज चल रहा है इसलिए वह आ नहीं पा रहे हैं ; आशा करती हूं आप जल्दी आएंगे। फोन रख कर बहू सुशीला सोने चली गई रात में ठंड ज्यादा होने के कारण उसको नींद नहीं पड़ रही थी ,रात को पाला बहुत बढ़ गया वह फिर मां के पास गई …. आधी नींद में कलावती ने उसको फटकार लगाई, जा देख गोदाम के बक्से में कुछ पुराने बिस्तर रखे हैं ,बक्से में बहुत खोजने के बाद उसे एक पुरानी रजाई मिली… वह बहुत पुरानी थी , धूल मिट्टी और फफूंद से भरी वो रजाई सुशीला को किसी काम की नहीं लग रहा थी , उसने पुरानी रजाई को बेमन से निकाल कर बक्से के ऊपर रख दिया और वापस चली आई,, रात अपने जोरों पर थी और सर्दी भी… ठंड और बुखार के कारण सुशीला कांप रही थी… आधी रात को ठंड से बचने के लिए फफूंद लगी रजाई उठा लाई उसे झाड़ कर उसने सर्दी से बचने के लिए उसे ओढ़ लिया। बाहर घना अंधेरा और सर्दी, जोर-जोर से कुत्तों के रोने की आवाज आ रही थी घर के अंदर बीमार पड़ी सुशीला किसी बीमार जानवर की तरह रजाई में लिपटी आंसू बहा रही थी ,रात उसे खाँसी आयी बहुत उल्टियाँ हुईं। कब उसकी आंखें बंद हो गयीं पता ही नहीं चला। उसकी सांस बैठ गई थी ह्रदय जम गया नसें नीली पड़ गई थी। सुबह हुई रोज की तरह रसोई घर में आज कोई हलचल नहीं थी
कलावती ने बहु को आवाज लगाई अरे मर गई क्या आज सारे घर का काम फैला रहा है बारह बजे तक सोती ही रहेगी आज चाय नहीं मिलेगी क्या ? कलावती में अपने कमरे से आवाज लगाई लेकिन बहु का कोई जवाब नहीं आया। कलावती को लगा कि शायद रात में ओढ़ने के लिए ओढ़ना नहीं दिया इसीलिए नाराज होगी… अपनी अकड़ में सो रही है देर तक ,कलावती को बहुत गुस्सा आया गुस्से में पहले उसने अपने बेटे राजेश को फोन किया और कहा की देखो तुमने सर पर जो चढ़ा रखा है बारह बज गया अभी तक महारानी जी सो रही हैं।
कलावती ने राजेश के साथ बहू के मायके वालों को फोन किया। आप लोगों ने अपनी बेटी को संस्कार नहीं दिए कल रात वह मुझे रजाई मांगने के लिए आई भला मैं उसको ओढ़ने के लिए कहां से दूं , मुंह फुलाए बैठी है.. मैं न जाऊंगी महारानी को मनाने अगर उसने खुद से मुझे दाना पानी नहीं पूछा तो आज बहुत बुरा होगा… आपने कहा शादी के बाद कहा था कि मुझे कुछ मोहलत दीजिए समान और रजाई पहुंचा दूंगा आपकी रजाई नहीं आई कलावती का फोन सुनकर बहू के पिता, रजाई लेकर भागे- भागे बेटी के ससुराल पहुंचे। गुस्से में मुंह फुलाई कलावती में द्वार पर आए पिताजी को पानी भी नहीं पूछा उसके पिताजी अपनी बेटी के कमरे की तरफ गए ।कलावती की ऐठन अभी भी नहीं गई थी, बोल पड़ी रजाई तो ले आए हैं इसको रखने का बक्सा साथ नहीं लाए। कलावती की तरफ ध्यान न देते हुए पिताजी बेटी को जगाने लगे बहुत जगाने के बाद बेटी न उठी पिता को लगा कि शायद ठंड से सो गई है पिता ने उसको रजाई ओढ़ा दी । बेटी के ससुराल में पिता का सर वैसे भी नीचे ही रहता है बिना खाए पिए सब को प्रणाम करके चले गए। पिता के जाने के बाद कलावती को लगा कि ,अभी बहू कमरे से बाहर आएगी । कुछ देर तक जब वह बाहर नहीं आई , कलावती ने देखा कि शरीर नीला सा पड़ गया है , मेज पर रखे जग के पानी को उठाकर उसे पर छींटे मार उसको बहुत उठाने की कोशिश की गई ..जब वह न उठी तो कलावती में उसका हाथ सहलाया , शरीर में कोई हलचल नहीं हुई वह और घर के लोग घबरा गए ,तब घर के सभी लोग परेशान हो गए , डॉक्टर को फोन किया गया डॉक्टर आए बहू की नब्ज जांच की तो पता चला कि वह मृत हो गई है। राजेश को फोन हुआ वह अगली ट्रेन पड़कर अपने घर आ गया मृत पड़े हुए पत्नी को देख फूट फूट कर रोने लगा , सब लोग उसको लाश के पास से हटाने का प्रयास करते रहे लेकिन वह नहीं हटा. कलावती को अपने हरकत पर बहुत पछतावा हुआ सोच रही थी कि आखिर बेटे को क्या जवाब देगी अगली ट्रेन पकड़ के राजेश घर पहुंचा , तो कलावती ने कहा कि न जाने लड़की के पिताजी कैसी रजाई ले आए अशुभ हो गया कि उसे ओढ़ कर बहू का दम घुट गया । अपने व्यवहार पर उसकी पछतावा तो हो रहा था लेकिन उसके मन में चोर था की कहानी सच्चाई खुल जाने पर बात बढ़ जाएगी अंतिम संस्कार की तैयारी होने लगी राजेश को सभी समझा रहे थे कि विधि का विधान है जो लिखा था वह होना था हो गया, तुम्हारा और सुशीला का साथ यही तक था। बाहर सभी मृत पड़ी लाश को देखकर इधर-उधर की बातें करने लगे , उन सब की बातें सुन कलावती को भी मनोबल मिल गया उसने कहा कि , अब जो हो गया उसे भूल जा बेटा तुम्हारे जाने के बाद मेरा बिल्कुल ख्याल नहीं रखती थी समय से खाना दवाई कुछ भी नहीं देती हमेशा अपने मायके वालों से फोन पर बात करती थी और जब देखो तब अपने घर ही चली जाती थीं, उसका तो यहां मन भी नहीं लगता था, कलावती की बात सुनकर बुआ ने भी कहा कि “कोई बुरा साया था हमारे घर की बला टली” अब कोई अच्छा सा रिश्ता देखकर राजेश की दूसरी शादी कर दो….यह सारी बातें सुनकर राजेश को गुस्सा आया वह झल्ला कर बोला “डॉक्टर तो कह रहे हैं कि संक्रमित बदबूदार कपड़े के चलते सुशीला की सांस फूलने के कारण उसकी मौत हुई… जब उसके पिता नई रजाई लेकर आए तो , भला इस रजाई से सुशीला की मौत का क्या ताल्लुक है। बात और न बढ़े इसलिए सब लोग चुप होकर अंतिम संस्कार की तैयारी करने लगे ब्राह्मणों को बुलाकर पूजा पाठ कर हवन यज्ञ शांति पाठ के साथ बहू सुशीला को अंतिम विदाई दी गई।
रात को फलाहार करके सब लोग अपने-अपने कमरे में सोने के लिए गए ,भूखा प्यासा राजेश स्टोर रूम में जाकर उसे पुरानी रजाई को ढूंढ रहा था ,उसे रजाई कहीं नहीं मिल रही थी अंत में उसने देखा कि किसी ने जाकर उस रजाई को घर की छत पर फेंक दिया है, उस रजाई को उठाकर अपने कमरे में ले आया और उसको अपनी बाहों में भरकर रोने लगा, उसके रोने की आवाज सुनकर मां दौड़कर कमरे में आई और राजेश को पकड़ कर रोने लगी बेटा जो हुआ उसे भूल जाओ”मां बार-बार उस रजाई को राजेश से दूर करने की कर रही थी लेकिन अत्यंत वेदना से भरा हुआ राजेश बोला “मां मुझे भी मर जाने दे” राजेश उस रजाई को ओढ़कर , सो गया ,मां के बहुत चेष्टाओं के बाद भी वह रजाई राजेश से दूर नहीं कर पा रही… अंत में मां ने हाथ जोड़कर राजेश से माफी मांगते हुए कहा “बाबू मुझको माफ कर दो”मैं तुम्हारे पांव पड़ती हूं बेटा….राजेश की खून भरी आंखों से गिरते आंसू से रजाई निरंतर भीगती जा रही थी.. राजेश सुबक सुबक करके रोते जा रहा था…की मां इसी रजाई में मेरी भोली मासूम प्यारी पत्नी के प्राण गए… और मेरी पत्नी सुशीला मेरी प्राणों से प्रिय थी भला देह से प्राण कैसे जुदा हो सकते हैं…..
बेटे की ऐसी हालत देखकर कलावती की आंखें पथरा गई…दहेज की एक रजाई के चलाते आज उसका सारा संसार उजड़ गया।

फेसबुक से साभार

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