खानाबदोशों को भी है चुनाव की परवाह और मतदान की चिंता। रमेश शंकर झा के साथ मणि भूषण की रिपोर्ट, समस्तीपुर बिहार।

 

 

रमेश शंकर झा के साथ मणि भूषण की रिपोर्ट,
समस्तीपुर बिहार।

समस्तीपुर/उजियारपुर:- जिले के विभूतिपुर लोकसभा चुनाव को लेकर निर्वाचन आयोग द्वारा कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। जिसके माध्यम से मतदाताओं को क्षेत्र में जागरूक किया जा रहा है। ताकि शतप्रतिश मतदान कराने की लालसा को पूरा हो सके। इस आलम में संवादताता की टीम क्षेत्र भ्रमण को निकली। इस क्रम में एक वर्ग खानाबदोशों का मिला। जिसे चुनाव की परवाह भी है और मतदान की चिंता भी है। अक्सर यह देखा जाता है कि कभी इस प्रखंड में तो कभी उस प्रखंड में जाकर इस समुदाय के लोग प्रवास करते नजर आते हैं। उन्हें न आर्थिक जनगणना और ना ही मतदान से कुछ लेना देना होता है। इतना ही नहीं एपीएल और बीपीएल की भी कोई परवाह नहीं रहती है। कोई स्थाई पता का तो उसे दूर-दूर तक ठिकाना नहीं होता है। जहां तम्बू डाला वहीं उसका रैन बसेरा हो गया। न धूप की परवाह और न ही आंधी-बरसात का डर है। सिर्फ पेट भरने से मतलब है। इनके परिवार की महिलाएं, पुरुष एवं बच्चे अलग-अलग खेमों में दिन भर अलग-अलग तरीकों से रोजीरोटी की जुगाड़ करते रहते हैं। किसी स्थाई व्यवसाय से दूर-दूर तक कोई सरोकार नहीं होता है। इन समुदायों को शिक्षा, सरकारी योजनाओं आदि के लाभ से वंचित रहने का कोई मलाल तक नहीं रहता है। लेकिन इन समुदायों का समाज की मुख्य धारा से अलग होना सरकार के साथ-साथ समाज के सभी वर्गों के लिए एक कठिन चुनौती बनी है। इन्हें सरकार की योजनाओं में सम्मिलित कर समाज की मुख्य धारा में लाने के संदर्भ में प्रखंड स्तरीय पदाधिकारीगण कुछ भी बताने से अपने को परहेज व नवपदस्थापित होने की वजह से अनभिज्ञता जाहिर करते दिख रहे हैं। वहीँ संवाददाता की टीम चकफतेहगंज पोखरा पर पहुंची तो रंजु कुरैरी से मुलाकात हुई। बातचीत शुरू हुई, उसने बताया कि वे वहां अपने दो भाई नरेश कुरैरी और विकास कुरैरी के परिवार के साथ निवास करते हैं। करीब 30 वर्ष पूर्व अपने पिता के साथ आए थे और वहीं बस गए है। मतदाता सूची में परिवार के कुछ सदस्यों का नाम भी जुड. गया है। मतदान करने लगे हैं, जबकि कुछ का नाम नहीं है। लोकतंत्र के इस त्यौहार में वे लोग राष्ट्रहित में मतदान अवश्य करेंगे। ऐसा उनका मानना है। स्थानीय लोगों में नूर आलम अंसारी, मो. दाऊद, गजेन्द्र साह, राजा सिंघानियां आदि बताते हैं कि इनके लिए भी सरकारी स्तर पर विशेष पहल की आवश्यकता है।

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