*सुशासन या भ्रमजाल।*

ठाकुर वरुण कुमार।

समस्तीपुर::- उपरी तौर पर देखा जाय तो सुशासन का मतलब होता है सुन्दर शासन, जनपक्षीय शासन, कमजोर, बेबस और लाचार के पक्ष में खड़ा सत्ता का ताकत। बिहार के आदरणीय मुख्यमंत्री नितीश कुमार के शासन को जब देश की मीडिया के विद्वानों ने सुशासन शब्द से नवाजा तो शायद उनके जेहन में नितीश कुमार के शासन के लिए यही सुंदर छवि रही होगी।

हालिया घटना जो बिहार की मिडिया और सोशल मीडिया में खासी तवज्जो पाइ है यदि उसपर आपने गौर किया होगा तो देखा होगा कि कोरोना नामक वैश्विक महामारी के कारण लौक डाउन के बीच बिहार सरकार के एक मंत्री मछली पार्टी में शामिल होते हैं तो मंत्री जी पर कोई कार्रवाई नहीं होती जबकि प्रखंड, अनुमंडल स्तर के छोटे पदाधिकारियों पर कार्रवाई हो जाती है।

वर्तमान में कोटा में बिहार के हजारों छात्र/छात्रा फंसे हैं। उनके घर वापसी के सारे रास्ते नितीश कुमार की सरकार ने बंद कर दिए हैं। ऐसे में नितीश जी के सत्ता साझेदार बिहार में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के विधायक जी ने सरकार से विशेष अनुमति प्राप्त कर कोटा से अपने बेटी को वापस ले आया।

इस मामले में भी विधायक जी पर कार्रवाई का हिम्मत यह सरकार नहीं दिखा पाई। और बलि का बकरा बेचारे ड्राईवर को बना दिया गया। हां! यहां अनुमंडल पदाधिकारी पर भी कार्रवाई की गई लेकिन जब इसी तरह के समान मामले में मुजफ्फरपुर के जिलाधिकारी की संलिप्तता सामने आई तो नितीश जी की सरकार बेबस और असहाय नजर आई।

बेगुसराय जिले की एक घटना जो मीडिया की घोर जातिवादी चरित्र के कारण सुर्खियां नहीं बन पाई उसमें भी पिछड़े समाज का लड़का विक्रम पोद्दार का सवर्ण समाज की लड़की से प्रेम विवाह उसकी हत्या का कारण बना। थाने में हुई इस हत्या को आत्म हत्या का रंग देने में जुटी बेगुसराय पुलिस के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले अति पिछड़ा समुदाय के एक्टिविस्ट संतोष कुमार शर्मा की भी निर्मम पुलिसिया पिटाई के बाद मौत हो गई लेकिन उच्च सत्ता संरक्षित इस बर्बर घटना में भी कोई कठोर कदम नहीं उठाया गया।

एक बहुचर्चित घटना जो आपलोगो ने अवश्य देखा होगा। अररिया के जिला कृषि पदाधिकारी द्वारा लौक डाउन अवधि में गाङी के उपयोग का पास दिखाने की मांग पर पुलिस के चौकीदार से कान पकड़ कर उठक बैठक कराया गया और उसे बुरी तरह लताङा गया, लताङने में पुलिस के एक जवान ने भी सहयोग किया। चौकीदार को लताड़ने में कृषि पदाधिकारी का सहयोग करने वाले पुलिस के जवान पर कार्रवाई तो की गई लेकिन कृषि पदाधिकारी पर कार्रवाई की हिम्मत नहीं दिखा सकी नितीश कुमार की सरकार।उल्टे उस पदाधिकारी का प्रमोशन कर उप निदेशक बना दिया गया।

सुशासन शब्द जिसका मूल उद्देश्य कमजोर, बेबस और लाचार के साथ अन्याय, असमानता और भेदभाव को समाप्त करना था वह अपने उद्देश्य से भटकी दिख रही है।

जब मंत्री बच जाते हैं और पीए पर कार्रवाई हो जाती है, जब विधायक बच जाते हैं और ड्राईवर पर कार्रवाई हो जाती है, जब थानेदार बच जाते हैं और प्रेमी अपने समर्थक के साथ मार दिए जाते हैं, जब पदाधिकारी का प्रमोशन हो जाता है और जवान पर कार्रवाई हो जाती है और जिलाधिकारी बच जाते हैं और अनुमंडल/प्रखंड पदाधिकारी पर कार्रवाई हो जाती है।

तो सुशासन पर सवाल तो खङा हो ही जाता है। देश के मीडिया जगत के प्रखर आवाज और धारदार लेखनी ने क्या इसी शासन को सुशासन का नाम दिया था जिसमें साधन सम्पन्न और ताकतवर के सामने सरकार नतमस्तक हो जाए और बेबस, लाचार और कमजोर पर दमनात्मक कार्रवाई करे। वाकई मुख्यमंत्री नितीश कुमार जी आपने सत्ता में सुशासन शब्द का व्याकरण हीं बदल दिया।

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