चोरी के सीसीटीवी फुटेज रहने के बाद भी पुलिस ने नहीं दर्ज की एफआईआर सुशासन बाबू की मेहनती पुलिसकर्मी का लगातार खुल रहें पोल यहीं कानून व्यवस्था को आधार बनाकर मांगें जा रहें हैं जनता से वोट राजनीतिक दलों के मेनोफेस्टो से महंगाई और भ्रष्टाचार के मामले ने नहीं बनाई अपनी जगह

 

जेटी न्यूज

 

बेगूसराय :- एक ओर सुशासन बाबू बिहार के मुख्यमंत्री कानून व्यवस्था दुरुस्त होने के दावे कर रहें हैं दूसरी ओर देखा जा रहा है कि जब किसी पिड़ित का कोई समान, चोरी हो जाती है तो हमारे बिहार के तेजतर्रार होनहार पुलिसकर्मी चोरों से समान बरामद करना दूर की बात, पिड़ित को इतना सवाल करतें हैं कि जैसे पिड़ित ने चोरी का रिर्पोट दर्ज नहीं कराने आये बल्कि कोई बड़ा गुनाह कर दिए। हम बात कर रहे हैं बेगूसराय जिलें की नगर थाना की जहां मुफस्सिल थाना क्षेत्र के अरविन्द कुमार ने नगर थाना में लिखित आवेदन देकर बताया कि उनकी पुत्री जब कपड़े खरीदने V Mart के सामने बजरंग रेडिमेड के दुकान पर गई तब उसके मोबाइल को एक महिला ने चोरी कर ली जो कि मामला सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गई। वहीं थानें के ओ०डी० में मौजूद मनीष कु० सिंह के द्धारा पिड़ित के परिजन से ऐसा सवाल किया गया जैसे वो पिड़ित मोबाइल चोरी का रिपोर्ट करने नहीं आये बल्कि कोई बड़ा गुनाह कर दिया ।चलिए बताते हैं कि सुशासन बाबू की पुलिस ने क्या सवाल किया, जो चोरी कर मोबाइल ले उसका नाम बतावे तब मामला दर्ज होगा? जिसने चोरी किया उसका घर कहां है ? आप थानें को आवेदन दें रहें हैं अपना उद्देश्य बतावे एफआईआर क्यों दर्ज करानी है? अभी बहुत चोरी का मामला पेंडिंग है थानें का दरोगा बाबू चुनाव में व्यस्त हैं समय मिलेगा तब तहकीकात किया जायेगा। ऐसे पिड़ित को समझा रहें हैं जैसे ओडी में मौजूद एस०आई० मनीष कु० सिंह के पहचान के चोरी करतें हैं। वहीं 48 घंटे होने को आए , एफआईआर तो दूर की बात सनहा भी नहीं दर्ज की गई। एफआईआर दर्ज करने के बाद अपने पहचान वालें को गिरफ्तार करना है, वहीं थानें पर एक और पिड़ित मौजूद थें छपरा (सीवान) के पिंटू कुमार जिन्होंने बताया कि फाइनेंस कंपनी में काम करतें हैं घर के आगे अपनी मोटरसाईकिल लगाकर खाना खानें गये चोर ने घर के आगे से मोटर साइकिल चोरी कर ली।जिसका आवेदन देने जब थानें पहुंचें तब पांच घंटे के बाद, पैरवी लगानें के बाद आवेदन तो लें लिया गया। एफआईआर दर्ज हुआ या नहीं वो भगवान के भरोसे मौजूद है। अब सवाल बनता है कि जब पिड़ित को चोर के बारे में जानकारी अगर हो तो वह थानें का चक्कर क्यों लगाएं? क्या थानें में बैठकर चोरों के हमदर्द बनने के लिए ही टैक्स के रूपये से इनका तनख्वाह (वेतन) दी जाती है। आखिर पिड़ित चोरी होने के बाद सुशासन बाबू के राज में अपना शिकायत किसके पास दर्ज कराएंगे? देखा जा है कि इस विधानसभा चुनाव में आरोप-प्रत्यारोप तो लगाया जा रहा है वहीं राजनीतिक दलों के मेनोफेस्टो से भ्रष्टाचार और मंहगाई बिलकुल गायब दिख रहें हैं। वहीं सत्ताधारी पार्टी इसे कहते हैं कानून की राज जहां थानें में आवेदन देने के बाद भी एफआईआर दर्ज नहीं होती अंततः पिड़ित को या तो अपना दु:ख (पीड़ा) को सहना पड़ता है नहीं तो आखिरकार माननीय न्यायालय के शरण में नालिसीवाद दायर की जाती है। वहीं अभी बिहार के थानें की अगर बातें करें तो वो आवेदन तो कभी कभार ले तो लेते हैं मगर रिसिविंग नहीं देते हैं ताकि पिड़ित का आवेदन फाड़ के रद्दी के टोकरी में फेंकने का काम आएं। हम ये भी कह सकते हैं सुशासन बाबू के राज में कानून व्यवस्था बिलकुल बेअसर दिख रहा है। यहीं है सुशासन बाबू की राज।

Website Editor :- Neha Kumari

Related Articles

Back to top button