तीन कृषि काला कानून के खिलाफ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन को भाकपा-माले, खेग्रामस, किसान महासभा,ऐक्टू, निर्माण मजदूर, इनौस, आइसा आदि सभी संगठन के कार्यकर्ता 14 दिसम्बर को विशाल जन प्रदर्शन में भाग लेगें*

 

*बिना किसी सीमा के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान खरीद की गारंटी करे सरकार: माले*

 

*मंडियों को बहाल करे, रजिस्ट्रेशन करवाने का प्रावधान वापस ले.-विधायक*

 

*धान खरीद की व्यवस्था की स्थिति में बिहार में सबसे खराब*

 

*पैक्स को बोरे तक उपलब्ध नहीं करवाती सरकार.*

 

 

 

जेटी न्यूज।

बेतिया/पश्चिम चम्पारण:- 13 दिसंबर 2020

भाकपा-माले केन्द्रीय कमिटी सदस्य सह सिकटा विधायक विरेंद्र प्रसाद गुप्ता ने कहा है कि मोदी सरकार द्वारा किसानों के प्रति संवेदनहीनता के विरुद्ध देशव्यापी विरोध प्रदर्शन को भाकपा-माले, खेग्रामस, किसान महासभा,ऐक्टू, निर्माण मजदूर, इनौस, आइसा आदि सभी संगठन के कार्यकर्ता 14 दिसम्बर को विशाल जन प्रदर्शन में भाग लेगें और जन आंदोलन को तेज करेंगे, उनहोंने कहा कि जबतक तीनों कृषि संबंधित काला कानून रद्द नहीं होता और किसानों के फसल को एम एस पी पर खरिदने की कानून नहीं बनता आंदोलन जारी रहेगा,

सिकटा विधायक ने आगे कहा कि मोदी सरकार तीनों काला कानून रद्द करने की बजाय कह रही है कि राज्य सरकारें कुछ सुधार कर सकती हैं, सवाल यह उठता है कि खेती में केन्द्रीय कानून क्यों बनाए गये – केवल कारपोरेटों को बढ़ावा देने के लिए ?

मोदी जी बार-बार जोर देकर कह रहे है कि ये कानून किसानों के लिए लाभदायक हैं और किसानों द्वारा इन कानूनों के विरोध के सवालों पर उत्तर देने से साफ बच रहे है। यह नहीं चलने वाला है,

आगे कहा कि ये कानून स्पष्ट तौर पर कारपोरेट व विदेशी कम्पनियों को कानूनी अधिकार देते हैं और कहते हैं कि सरकार इन कम्पनियों की कृषि मंडियों को स्थापित करने और भारत के किसानों को ठेकों में लपेटने में मदद करेगी। इससे एक तरफ सरकारी मंडियां समाप्त हो जाएंगी और दूसरी ओर किसान बरबाद हो जाएंगे।

 

फसल के भंडारण, प्रसंस्करण और उच्च मुनाफे वाले प्रसंस्कृत खाद्य बाजार पर कारपोरेट का कब्जा होगा। ये कानून अब जमाखोरी व कालाबाजारी को भी अनुमति देते हैं और राशन व्यवस्था समाप्त करने का इशारा करते हैं। जिससे करोड़ों करोड़ गरीब जो जनवितरण कि दुकान से सस्ता दर पर खरीद कर पेट भर लेते थे वे अब भूखे मरने के लिए बेबस होगें,

मोदी जी कह रहे हैं कि किसानों की जमीन की सुरक्षा की गारंटी होगी, पूरी तरह से उन्हें बेवकूफ बनाने का मसला है, क्योंकि ठेका कानून में उनकी जमीन गिरवी रखने का प्रावधान है।

 

उनहोंने मांग किया कि सी2$50 फीसदी फार्मूला के हिसाब से सभी फसलों का एमएसपी घोषित हो और उस दाम पर सभी किसानों की फसलों के खरीद की सरकारी गारंटी का कानून हो।

उनहोंने कहा कि किसान कम्पनियों के साथ अनुबंधों में नहीं बधेंगे, वे अपनी जमीन से बेदखल होने तैयार नहीं हैं व भारतीय व विदेशी कारपोरेट के शोषण से सुरक्षा प्राप्त करना उनका संवैधानिक अधिकार है। ये कानून उनके इस शोषण को बढ़ावा दे रहे हैं।

 

जाहिर है मोदी सरकार कारपोरेट हितों की सेवा कर रही है और इस ठंड के बावजूद उसे किसानों की कोई चिन्ता नहीं है।

बिहार सरकार पर बोलते हुए विरेंद्र प्रसाद गुप्ता ने कहा कि नीतीश सरकार द्वारा किसानों के खरीद की अधिकतम सीमा में बढ़ोतरी छलावा के अलावा कुछ नहीं है. आखिर सरकार धान खरीद में सीमा का निर्धारण क्यों कर रही है? देशव्यापी किसान आंदोलनों के दबाव में सरकार झुकी तो है लेकिन धान खरीद की सीमा निर्धारण और रजिस्ट्रेशन का नियम लाकर वह मामले को लटकाना चाहती है.

 

बिहार सरकार ने 2006 में ही मंडियों की व्यवस्था खत्म कर, जिसे अब पूरे देश में लागू किया जा रहा है, बिहार के किसानों को बर्बादी के रास्ते पर धकेलने का काम किया है. बिहार में धान व अन्य फसलों की खरीद की व्यवस्था की स्थिति सबसे खराब है.

 

हमारी मांग है कि बिना किसी भेदभाव और बिना रजिस्ट्रेशन के सरकार बटाईदार किसानों सहित सभी किसानों का, जो अपना धान बेचना चाहते हैं, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उसकी खरीद की गारंटी करे. यह बेहद चिंताजनक है कि लंबे समय से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान खरीद की मांग हो रही है, लेकिन सरकार इसपर तनिक भी गंभीर नहीं है.

 

सुनील कुमार यादव

भाकपा-माले, बेतिया।

Website Editor :- Neha Kumari

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